*जैन तीर्थ संरक्षण : एक उपाय यह भी*
प्रायः कई प्राचीन जैन तीर्थ हमारी कम जनसंख्या के चलते हमारे हाथ से छूटते जा रहे हैं । अन्य लोग उस पर कब्जा जमा रहे हैं ।
समाज और संस्थाएं उन्हें बचाने का पूरा प्रयास भी करती हैं ...लेकिन फिर भी कब तक खींच पाएंगे यह पता नहीं ... ज्यादा से ज्यादा २००-३०० साल ।
नित नए तीर्थ , धाम, आयतन भी अरबों की लागत से हम बना ही रहे हैं । जहां कालांतर में अन्य मत के बाहुबलियों को सिर्फ तीर्थंकर की मूर्ति बदलने का पुरुषार्थ करना होगा ... बाकी देवी देवता , उनका श्रृंगार , कला , शिखर , मंदिर , बेदी सब उनके अनुकूल बना बनाया मिल ही जाएगा ।
फिर उसके बाद जब जैन जनसंख्या महज २+३ लाख ही रह जाएगी तब कितना क्या हम बचा पाएंगे ? यह तो समय ही बताएगा ।
मेरा एक विनम्र सुझाव यह है कि अभी जो कुछ भी हमारे अधिकार क्षेत्र में है वहां उस तीर्थ से संबंधित वास्तविक इतिहास , वर्तमान स्थिति ,अन्य मत के बाहुबलियों के अतिक्रमण,कब्जे आदि उल्लेखों से संबंधित दो चार शिलालेख,ताम्रलेख संस्कृत प्राकृत भाषाओं में खुदवाकर स्मृति स्वरूप वहां जमीन में गड़वा दें , पत्थर की दीवालों पर , पहाड़ आदि पर अवश्य अंकित करवा दें ।
पत्थर के शिलालेख आज २५०० वर्ष पूर्व के भी मिलते हैं ।
आज हमारी ताकत भले ही कम है लेकिन कालांतर में जब हम पुनः प्रभाव में होंगे तब यही प्रमाण भविष्य के लोगों के लिए ज्ञान के सबसे बड़े स्रोत होंगे । इतिहास हमें प्रमाणित करेगा ।
अन्य सभी उपायों के साथ साथ हमें यह अभियान भी बहुत व्यापक रूप से चलाना चाहिए ।
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