"पर्युषण पर्व पर इस्लाम मीट बैन का विरोधी नहीं हो सकता"
डॉ अनेकांत कुमार जैन
इस्लाम को आम तौर पर मांसाहार से जोड़ कर देख लिया जाता है |महराष्ट्र में पर्युषण पर्व जैसे पवित्र दिनों में मीट पर प्रतिबन्ध को इस तरह दर्शाया जा रहा है मानो यह कोई इस्लाम का विरोध किया जा रहा हो |जब कि स्थिति इसके विपरीत है |मैंने स्वयं मुस्लिमों द्वारा आयोजित कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में शाकाहार की हिमायत की है ,तब वहां सम्मिलित विद्वानों ने मेरी बात का समर्थन किया है |
ऐसे अनेक उदाहरण देखने में आये हैं जहाँ इस्लाम के द्वारा ही मांसाहार का निषेध किया गया है | इसका सर्वोत्कृष्ट आदर्शयुक्त उदाहरण हज की यात्रा है |मैंने कई मुस्लिमों से इसका वर्णन साक्षात् सुना है तथा कई स्थानों पर पढ़ा है कि जब कोई मुस्लिम हज करने जाता है तो इहराम बांधकर जाता है |इहराम की स्थिति में वह न तो पशु -पक्षी को मार सकता है न किसी भी जीव धारी पर पत्थर फ़ेंक सकता है और न ही घांस नोंच सकता है |यहाँ तक कि वह किसी हरे भरे वृक्ष की टहनी-पत्ती भी नहीं तोड़ सकता है |इस प्रकार हज करते समय अहिंसा के पूर्ण पालन का स्पष्ट विधान है |कुरान मजीद २:१,९५ पर लिखा है कि "इहराम की हालत में शिकार करना मना है |"
वहीँ २७:९१ पर कहा गया है कि "अल्लाह ने मक्का को प्रतिष्ठित स्थान बनाया है "|पवित्र तीर्थ मक्का स्थित कसबे के चरों ओर कई मीलों के घेरे में किसी भी पशु पक्षी की हत्या करने का निषेध है |हज काल में हज करने वालों को मद्यपान और मांसाहार का त्याग जरूरी होता है |इस्लाम में आध्यात्मिक साधना में मांसाहार पूरी तरह वर्जित है जिसे "तकें हैवानात "(जानवर से प्राप्त वस्तुओं का त्याग ) कहते हैं |
कर्णाटक राज्य में गुलबर्गा में अलंद जाने के मार्ग में चौदहवीं शताब्दी में मशहूर दरवेज हज़रत ख्वाजा बन्दानवाज गौसूदराज के समकालीन दरवेज हज़रत शरुकुद्दीन की मज़ार के आगे लिखा है -
"यदि तुमने मांस खाया है तो मेहरबानी करके अन्दर मत आओ "
इसके अलावा कई मुस्लिम सम्राटों ने जैनों के दशलक्षण और पर्युषण पर्व पर कत्लकार्खानों तथा मांस की दुकानों को बंद रखने के आदेश भी दिए हैं |जिसके साक्षात् प्रमाण आज तक मौजूद हैं |पुरानी दिल्ली के एक प्राचीन जैन मंदिर में जहागीर के एक फरमान का लेख लगा है जिसमें उसने दसलक्षण -पर्युषण पर्व पर पशु हिंसा रोकने का आदेश जारी किया था |
इस देश के सिर्फ मुस्लिम ही नहीं ,आधे से अधिक हिन्दू भी मांसाहारी हैं |इसलिए इस फैसले पर राजनीती करने की जगह इसका स्वागत करना चाहिए |नेताओं से तो अपेक्षा करना बेकार है ,मैं मुस्लिम विद्वानों से निवेदन करता हूँ कि वे इस नेक कार्य के समर्थन में आगे आयें और बताएं कि यह इस्लाम विरुद्ध नहीं बल्कि इस्लाम के अनुकूल निर्णय है |
Dr Anekant Kumar Jain
टिप्पणियाँ