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ये कैसा अनेकान्त ?

मैंने जो भी पढ़ा खुद को और खुद के पक्ष को पुष्ट करने के लिए पढ़ा तुम्हें पढ़कर भी यही किया तुम्हें तुम्हारे पक्ष को कभी समझने का प्रयास भी नहीं किया तुम्हें पढ़ने का पुरुषार्थ उसके पीछे बैठा मेरा स्वार्थ कि तुम्हें कर सकूँ असिद्ध ताकि मैं हो सकूँ स्वतः सिद्ध मेरा स्वार्थी एकान्त फिर भी कहलाता अनेकान्त - ©कुमार अनेकान्त 7/12/2016

कुरआन में अहिंसा सम्बन्धी आयतें

कुरआन में अहिंसा सम्बन्धी आयतें जामिया मिलिया इस्लामिया में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के निमित्त मुझे कुरान देखने एवं पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। मक्तबा अल-हसनात, रामपुर (उ.प्र.) से सन् १९६८ में हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित कुरआन मजीद, जिनके मूल संदर्भों का प्रयोग मैंने किया है, को ही मैंने पढ़ा है। इसी ग्रन्थ से मैंने कुछ आयतें चयनित की हैं जो अहिंसा की भावना को व्यक्त करती हैं। प्रस्तुत हैं वे चयनित आयतें - १. अल्लाह ने काबा को शान्ति का स्थान बनाया है। (२८:५७) २. नाहक खून न बहाओ और लोगों को घर से बेघर मत करो। (२:८४) ३. दूसरे के उपास्यों को बुरा न कहो। (६:१०८) ४. निर्धनता के भय से औलाद का कत्ल न करो। (१७:३१) ५.नाहक किसी को कत्ल न करो। मानव के प्राण लेना हराम है। (१७:३३) ६. यतीम पर क्रोध न करो। (९३:९) ७. गुस्सा पी जाया करो और लोगो को क्षमा कर दिया करो। (२:१३४),(२४:२२) ८. बुराई का तोड़ भलाई से करो। (१३:२२), (२८:५४,५५), (४१:३५) ९. कृतज्ञता दिखलाते रहो। (१४:७) १०. सब्र करना और अपराध को क्षमा

क्या आगम ही मात्र प्रमाण है ?

क्या आगम ही मात्र प्रमाण है ?                                  -डॉ अनेकान्त कुमार जैन                               anekant76@gmail.com जैन आचार्य समन्तभद्र ने चतुर्थ शती में एक संस्कृत ग्रन्थ लिखा  " आप्तमीमांसा " । यह अद्भुत ग्रंथ  किन परिस्थितियों में लिखा गया ? यह हमें अवश्य विचार करना चाहिए । भगवान की परीक्षा करने का साहस आचार्य समन्तभद्र ने क्यों किया ? किसके लिए किया ? यह हम सभी को मिलकर अवश्य विचार करना चाहिए । हम लोग या तो पंथवाद में फँसे हैं या फिर संतवाद में । अनेकांतवाद की शरण में  कब  जायेंगे पता नहीं ? हमें ईमानदारी पूर्वक बिना किसी आग्रह के सत्य का अनुसन्धान करना चाहिए क्योंकि दुर्भाग्य  से यदि हम धर्म की गलत व्याख्या कर बैठे  , और वैसा ही समझ बैठे तो अपना यह मनुष्यभव व्यर्थ गवाँ देंगे ।यह भव , भव का अभाव करने के लिए मिला है किसी सम्प्रदाय या मत का पोषण करने के लिए नहीं। वर्तमान में कुछ ज्वलंत समस्यायें ऐसी सामने आ रहीं हैं जिनपर यदि समय रहते हमने विचार नहीं किया तो वीतरागी जैन धर्म की मूल अवधारणा विलीन हो जायेगी । समन्तभद्राचार्य की चिन्ता को समझे

TREAT ALL VIEWS WITH EQUANIMITY AND RESPECT