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बंधन जो स्वतंत्रता देता है : रक्षाबंधन

पर्युषण-दशलक्षण पर प्रवचन - पर जरा सम्भल कर

*पर्युषण-दशलक्षण पर प्रवचन - पर जरा सम्भल कर* प्रो.डॉ.अनेकान्त कुमार जैन** पर्युषण- दशलक्षण पर्व में अन्य पूजा पाठ अभिषेक विधान और कार्यक्रमों के अलावा एक अनिवार्य और महत्त्वपूर्ण आयोजन है - प्रवचन ।  प्रवचन न हों तो अन्य क्रियाओं का कभी महत्त्व समझ में नहीं आ सकता । अन्य सभी क्रियाओं में हम भगवान को सुनाते हैं - बस प्रवचन ही एक ऐसा माध्यम है जब हम भगवान की सुनते हैं ।  प्रवचन ,शास्त्र विराजमान करके श्रुत परंपरा के अनुसार आप्त की वाणी को प्रकट करना है । अन्य प्रलाप जो मंचों से होते हैं वे भाषण कहलाते हैं - प्रवचन नहीं ।  अतः हम सभी की बहुत बड़ी जिम्मेदारी यह बनती है कि हम प्रवचन परंपरा को बंद न होने दें । कभी कभी यह भी देखने में आता है कि श्रोताओं की कमी का बहाना बना कर पर्व के दिनों में भी कितने ही स्थानों पर प्रवचन बंद हो गए हैं- जो अशुभ संकेत हैं । हमें कैसे भी करके किसी भी प्रकार से शास्त्र सभा बरकार रखनी चाहिए अन्यथा धर्म सिर्फ कोरे क्रियाकांड में उलझ कर रह जाएगा और उसकी मूल आत्मा मर जाएगी । उसके जिम्मेवार हम होंगे।  इसके बाद बहुत बड़ी जिम्मेदारी प्रवचनकार की भी होती है

काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रमाण जैन ग्रंथ में

*काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रमाण जैन ग्रंथ में*    प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली  13 वीं- 14वीं शती में जैन आचार्य जिनप्रभ सूरी ने सम्पूर्ण भारत में भ्रमण किया और संस्कृत भाषा में  भारत के अधिकांश जैन और हिन्दू तीर्थों का आंखों देखा हाल लिखते हुए एक ग्रंथ विविधतीर्थकल्प नाम से लिखा ।  यह ग्रंथ सिंघी जैन ज्ञानपीठ,शांतिनिकेतन,बंगाल से सन् 1934 में प्रकाशित हुआ था । इसका शोधपूर्ण संपादन विश्व भारती शांति निकेतन के प्रोफेसर जिनविजय जी ने किया था ।  इस ग्रंथ में 38 नम्बर पर उन्होनें वाराणसी कल्प नामक अध्याय में काशी का रोचक वर्णन किया है ।  उसी वर्णन में उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर का भी बहुत रोचक वर्णन किया है । उसमें उन्होंने यह भी लिखा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के मध्य एक जैन चतुर्विंशति तीर्थंकर का फलक आज भी पूजा के लिए विराजमान है - *वाराणसी चेयं सम्प्रति चतुर्धा विभक्ता दृश्यते । तद्यथा - देववाराणसी , यत्र विश्वनाथप्रासादः। तन्मध्ये चाश्मनं जैनचतुर्विंशति पट्टं पूजारूढमद्यापि विद्यते ।*(विविधतीर्थकल्प,पृष्ठ 72)

भारतीय ज्ञान परंपरा (जैन ) Indian Knowledge system (Jain )

#भारतीयज्ञानपरंपरा  #Indian Knowledge system प्रो.अनेकांतकुमारजैन:  भारतीयसभ्यतायाः आदिकालादेव जैनधर्मदर्शनस्य अस्तित्वस्य प्रमाणानि उपलभ्यन्ते । जैन आगमानुसारेण  जैनधर्मः अनादिकालतः प्रवाहमानः । जैनमान्यतानुसारेण भूतकाले भिन्न चतुर्विंशतिः तीर्थङ्कराः आसन् , वर्तमानकाले ऋषभादि चतुर्विंशतिः तीर्थङ्कराः सन्ति तथा च भविष्यत्कालेऽपि चतुर्विंशतिः तीर्थङ्कराः भविष्यन्ति ।  भारतीयवाङ्मयस्य प्राचीनतायाः निर्देशकाः ग्रन्थाः ऋग्वेदादयः वेदाः सन्ति । तेष्वपि व्रात्यानां वर्णनं उपलभ्यन्ते,ते वस्तुतः जैनश्रमणाः एव सन्ति । उपनिषत्सु यत्र तत्र अपि श्रमणानां चर्चा उपलभ्यते । वेदेषु जैनतीर्थंकराणां मुख्यतः ऋषभदेवस्य अजितनाथस्य अरिष्टनेमेः च वर्णनं प्राप्यते । भारतगणतन्त्रस्य पूर्वराष्ट्रपतयः विश्वप्रसिद्धदार्शनिकाश्च डॉo सर्वपल्ली राधाकृष्णमहोदयाः अपि लिखन्ति- ‘There is evidence to show that so far back as the first century B.C. there were people who were worshipping Ṛṣabhadeva, the first tīrthaṅkara. There is no doubt that Jainism prevailed even before Vardhamāna or Pārśvanātha. The Yajur

हम सब मरे हुए हैं

हम सब मरे हुए हैं सच तो यह है  कि  हम सब मरे हुए हैं  छद्म अध्यात्म की आड़ लेकर  कर्तव्य से दूर खड़े हैं  खुद को सुरक्षित करके  वीरता का बखान करते  डरे हुए हैं  सच तो यह है  कि  हम सब मरे हुए हैं सीना तानने की जगह  बच निकलने में  लगे हुए हैं  हर जगह स्वार्थ और  कहते हैं परमार्थ  भूल गए जीवन जीने का अर्थ  बस अपना उल्लू सीधा  करने में लगे हुए हैं  डरे हुए हैं  सच तो यह है कि  हम सब मरे हुए हैं । © कुमार अनेकांत

आचार्य फूलचन्द्र जैन प्रेमी : व्यक्तित्व और कर्तृत्त्व

 आचार्य फूलचन्द्र जैन प्रेमी  : व्यक्तित्व और कर्तृत्त्व   (जन्मदिन के 75 वर्ष पूर्ण करने पर हीरक जयंती वर्ष पर विशेष ) #jainism #jainphilosophy #Jainscholar #Jain writer #jaindarshan #Philosophy #Prakrit language #Premiji #Prof Phoolchand jain ( विशेष निवेदन  : 1.प्रो प्रेमी जी की  इस जीवन यात्रा में  निश्चित ही आपका भी आत्मीय संपर्क इनके साथ रहा होगा ,आप चाहें तो उनके साथ आपके संस्मरण ,रोचक वाकिये,शुभकामनाएं और बधाई आप नीचे कॉमेंट बॉक्स में लिखकर पोस्ट कर सकते हैं | 2. इस लेख को पत्र पत्रिका अखबार वेबसाइट आदि प्रकाशन हेतु स्वतंत्र हैं । प्रकाशन के अनन्तर इसकी सूचना 9711397716 पर अवश्य देवें   - धन्यवाद ) प्राच्य विद्या एवं जैन जगत् के वरिष्ठ मनीषी श्रुत सेवी आदरणीय   प्रो.डॉ. फूलचन्द्र जैन प्रेमी जी श्रुत साधना की एक अनुकरणीय मिसाल हैं , जिनका पूरा जीवन मात्र और मात्र भारतीय प्राचीन विद्याओं , भाषाओँ , धर्मों , दर्शनों और संस्कृतियों को संरक्षित और संवर्धित करने में गुजरा है । काशी में रहते हुए आज वे अपने जीवन के पचहत्तर वर्ष और विवाह के पचास वर्ष पूरे कर र