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योग विद्या के प्रवर्तक हैं ऋषभदेव

योग विद्या के प्रवर्तक हैं ऋषभदेव  प्रो.डॉ. अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com         भारत में प्रागैतिहासिक काल के एक शलाका पुरुष हैं- ऋषभदेव,  जिन्हें इतिहास काल की सीमाओं में नहीं बांध पाता है किंतु वे आज भी भारत की सम्पूर्ण भारतीयता तथा जन जातीय स्मृतियों में पूर्णत:सुरक्षित हैं । इतिहास में इनके अनेक नाम मिलते हैं जिसमें आदिनाथ,वृषभदेव,पुरुदेव आदि प्रमुख हैं | भारत देश में ऐसा विराट व्यक्तित्व दुर्लभ रहा है जो एक से अधिक परम्पराओं में समान रूप से मान्य व पूज्य रहा हो । जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव उन दुर्लभ महापुरुषों में से एक हुए हैं। जन-जन की आस्था के केंद्र तीर्थकर ऋषभदेव का जन्म अयोध्या में हुआ था तथा इनका निर्वाण कैलाशपर्वत से हुआ था । आचार्य जिनसेन के आदिपुराण में तीर्थकर ऋषभदेव के जीवन चरित का विस्तार से वर्णन है।              भागवत पुराण में उन्हें विष्णु के चौबीस अवतारों में से एक माना गया है । वे आग्नीघ्र राजा नाभि के पुत्र थे । माता का नाम मरुदेवी था। दोनो परम्पराएँ उन्हें इक्ष्वाकुवंशी और कोसलराज मानती हैं । जैन परम्परा के

जिनवाणी के युवा सपूतों का अकस्मात वियोग : कारण सोचना तो पड़ेगा

प्रिय मित्र पंडित संजीव गोधा के अनंतर 11/03/23 की रात्रि प्रिय अनुज पंडित धर्मेंद्र शास्त्री,कोटा के वियोग का यह अत्यंत दुखद प्रसंग हमें  वैराग्य के साथ साथ पुनः अनुसंधान पर विवश कर रहा है ।  कहना नहीं चाहते लेकिन कहना पड़ रहा है । दोनों ही विद्वानों का युवा अवस्था में वियोग का साक्षात निमित्त अस्वस्थ्यता है ।  ऐसी स्थिति में मैं स्वयं के प्रति संबोधन को सम्मिलित करते हुए अपने सभी विद्वान साथियों से कुछ कहना चाहता हूं । ये जो कुछ हो रहा है अप्रत्याशित है । इसलिए हमें कई चीजें नए तरीके से व्याख्यायित करनी पड़ेंगी ।  यह इक्कीसवीं सदी का चमत्कार ही है कि आज मात्र कुछ संस्थाओं की बदौलत मूल शास्त्रों को पढ़कर प्रतिभाशाली शास्त्री विद्वान जैन समाज को मिल रहे हैं ।  ये वो पीढ़ी है जो अपने जीवन का दांव लगाकर भी शास्त्र सेवा में अपने अपने स्तर पर लगी है ।  समाज से ज्यादा अपेक्षा न करें । वो जितना कर सकते हैं उतना करते हैं ,उन्हें कोसने से कोई फायदा नहीं है । इसलिए आप भी जितना कर सकते हैं उतना ही करें । अभी हम सभी को चाहिए कि अपने स्वास्थ्य की अनदेखी न करें । आप स्वयं महसूस करें कि आप अन

भारतीय संस्कृति के आराध्य तीर्थंकर ऋषभदेव

ऋषभदेव नवमी (जन्मकल्याणक -चैत्र कृष्णा नवमी )पर विशेष *भारतीय संस्कृति के आराध्य तीर्थंकर ऋषभदेव* प्रो. अनेकान्त कुमार  जैन drakjain2016@gmail.com मनुष्य के अस्तित्व के लिए रोटी, कपड़ा, मकान जैसे पदार्थ आवश्यक हैं, किंतु उसकी आंतरिक सम्पन्नता केवल इतने से ही नहीं होती । उसमें अहिंसा, सत्य, संयम, समता, साधना और तप के आध्यात्मिक मूल्य भी जुड़ने चाहिए ।  भगवान् ऋषभदेव ने भारतीय संस्कृति को जो कुछ दिया है, उसमें असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प इन छह कर्मो के द्वारा उन्होंने जहां समाज को विकास का मार्ग सुझाया वहीं अहिंसा, संयम तथा तप के उपदेश द्वारा समाज की आंतरिक चेतना को भी जगाया ।  जन-जन की आस्था के केंद्र तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म चैत्र कृष्णा नवमी को अयोध्या में हुआ था  तथा  माघ कृष्णा चतुर्दशी को इनका निर्वाण कैलाश पर्वत से हुआ था ।इन्हें आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है .इनके पिता का नाम नाभिराय तथा इनकी माता का नाम मरुदेवी था. कुलकर नाभिराज से ही इक्क्षवाकू कुल की शुरुआत मानी जाती है । इन्हीं के नाम पर भारत का एक प्राचीन नाम अजनाभवर्ष भी प्रसिद्ध है .  ऋषभदेव प्रागैतिहासिक काल

तीर्थंकर महावीर निर्वाण महामहोत्सव 2550

तीर्थंकर महावीर निर्वाण महामहोत्सव 2550 जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर चौबीसवें एवं अंतिम तीर्थंकर महावीर तक तीर्थंकरों की एक सुदीर्घ परंपरा विद्यमान है ।  भागवत पुराण आदि ग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख है कि इन्हीं ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश को 'भारत'  नाम प्राप्त हुआ । सृष्टि के आदि में कर्म भूमि प्रारम्भ होने के बाद यही ऋषभदेव जैनधर्म के प्रथम प्रवर्तक माने जाते हैं जिन्होंने अपनी पुत्री ब्राह्मी को लिपि विद्या और सुंदरी को गणित विद्या सिखाकर स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति की थी । इसी परंपरा के  अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन विश्व के प्रथम गणतंत्र वैशाली गणराज्य के कुंडग्राम में ईसा की छठी शताब्दी पूर्व हुआ था ।युवा अवस्था में ही संयम पूर्वक मुनि दीक्षा धारण कर कठोर तपस्या के बाद उन्होंने केवलज्ञान( सर्वज्ञता ) प्राप्त की और अहिंसा,सत्य,अनेकान्त,अपरिग्रह , सर्वोदय आदि सिद्धांतों का उपदेश देते हुए जन जन को कल्याण का मार्ग बताया । उन्होंने 72 वर्ष की अवस्था में वर्तमान के बिहार राज्य के पावापुर क्

प्रिय मित्र ( स्व.)डॉ संजीव गोधा के नाम एक पत्र

प्रिय संजीव  सब कुछ क्रम नियमित है  आयु निश्चित है  राजा राणा क्षत्रपति हाथन के असवार  मरना सबको एक दिन अपनी अपनी बार  आदि आदि  ये सब मुझे पता है ,इन्हें मैं भी सबसे बड़ा सत्य मानता हूँ । फिर भी.....कुछ चीजें मुझे स्वीकार नहीं हो रहीं हैं  जैसे   तुम्हारा इस तरह जाना । तुम्हारी शोक सभाएं सुन रहा हूँ , मुझे ये भी स्वीकार नहीं हो रहीं हैं ।  कई बार सोचा कि तुम्हारी याद में मैं भी कुछ कहूँ ,वीडियो बनाऊं ...पर ये हो न सका ।  तुम्हारा जाना मुझे मंजूर ही नहीं है ।  इसीलिए तुम्हारी किसी भी शोकसभा में उपस्थित न हो सका ,कुछ कह न सका ।  लोग तुम्हारी और टोडरमल जी की आयु एक जैसी बताकर तुलना कर रहे हैं ,मुझे ये भी स्वीकार नहीं है ।  टोडरमल जी मरे नहीं थे ,उन्हें मरवाया गया था ।  तुम्हारे यू ट्यूब पर हजारों प्रवचन , ऑनलाइन कक्षाएं , तुम्हारा देश दुनिया में अथक लगातार प्रचार ,अब मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते ,क्यों कि तुम नहीं हो ।  तुम इतना ज्यादा ऑनलाइन क्यों रहे कि अब ऑफलाइन भी नहीं हो ?  क्या चला जाता यदि तुम थोड़ा कम यात्रा और प्रचार करते ? क्या घट जाता यदि तुम थोड़े कम प्रवच

ढोर गंवार शूद्र पशु नारी सकल मुक्ति के अधिकारी

*ढोर गंवार शूद्र पशु नारी सकल मुक्ति के अधिकारी* प्रो अनेकान्त https://youtu.be/aLlW5mx3TEk

प्राचीन जैन तीर्थ किन्द्रह की खोज

मध्य प्रदेश के दमोह जिले के पथरिया के पास एक छोटा सा गांव है किन्द्रह (स्थानीय बुंदेली में बोला जाने वाला किनरौ ) पिताजी (प्रो फूलचंद जैन प्रेमी जी ) माता जी (डॉ मुन्नी पुष्पा जैन) लगभग 40 वर्ष पहले अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ इस गाँव में आए थे ,सो उन्हें अभी विरागोदय तीर्थ ,पथरिया की वंदना के समय इसकी याद आ गई । पिताजी को यह भी याद आया कि यहाँ एक प्राचीन जैन मंदिर था औ र एक तालाब था । तालाब में नहाते वक्त 40  वर्ष पहले उन्हें जैन मूर्तियों के अवशेष मिले थे ।  उनकी बड़ी गहरी और आत्मीय जिज्ञासा थी इस गाँव में पुनः जाने की और उस तालाब को और पुरातत्व को देखने की ।  12 फरवरी 2023 को सुबह सुबह  हमने एक ऑटो रिक्शा किया और माता पिता एवं श्रीमती सीमा जैन (महिला बाल विकास अधिकारी,पथरिया) के साथ वहाँ पहुंच गए , 40 वर्ष पहले की याद करते वे यहाँ इतनी आत्मीयता से घूमे जैसे कोई पूर्व जन्म का स्मरण कर अपने पुराने गाँव जा कर करता है ।  पता चला अब यहाँ वह जैन मंदिर नहीं है । जैन समाज भी अब यहाँ नहीं रहती । इनके रिश्तेदार भी अब यहाँ

ताड़न के अधिकारी..........

ताड़न के अधिकारी.......... का एक समकालीन अर्थ यह भी किया जा सकता है कि अब उन्हें भी ताड़न करने का अधिकार है ।  #womenempowement  #animalrights  #dalitshakti  #ramcharitmanas #नारीशक्ती  यह अर्थ करने के बाद अब इन पंक्तियों को हटाने की मांग को न सिर्फ वापस ले लिया जाएगा बल्कि इसे मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित करने की मांग की जाएगी ।  प्रो अनेकान्त

अधूरे जिनालय

हमारे अधूरे जिनालय प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com अभी कुछ दिन पहले  किसी निमित्त दिल्ली में वैदवाडा स्थित जैन मंदिर के दर्शनों का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ । बहुत समय बाद इतने भव्य , मनोरम और प्राचीन जिनालय के दर्शन करके धन्य हो गए ।  दिल्ली के प्राचीन मंदिरों में जाओ तो लगता है हम फिर वही शताब्दियों पूर्व उसी वातावरण में पहुंच गए जब पंडित दौलतराम जी जैसे जिनवाणी के उपासक अपनी तत्वज्ञान की वाणी से श्रावकों का मोक्षमार्ग प्रशस्त करते थे ।  वैदवाडा के उस मंदिर में एक माली सामग्री एकत्रित कर रहा था । हमने सहज ही उससे पूछा - भाई , यहां नियमित शास्त्र स्वाध्याय होता है ? नहीं... कभी नहीं होता - उसका स्पष्ट उत्तर था । मुझे आश्चर्य हुआ । मैने कहा- ऐसा क्यों कहते हो भाई , दशलक्षण पर्व में तो होता होगा ?  बोला - हां ,उसी समय होता है - बस । मैंने उसे समझाते हुए कहा - तो ऐसा क्यों कहते हो कि कभी नहीं होता ? कोई भी पूछे तो बोला करो होता है , मगर कभी कभी विशेष अवसरों पर होता है । मैंने उसे तो समझा दिया , लेकिन मेरा मन आंदोलित हो उठा ? ये क्या हो रहा है ? बात सिर्फ

सम्मेद शिखर के रोचक तथ्य : जो आपको ज्ञात होना चाहिए

सम्मेद शिखर के रोचक तथ्य : जो आपको ज्ञात होना चाहिए                                 प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली   ·          जैन भूगोल के अनुसार अढ़ाई द्वीप में कुल  170  सम्मेद शिखर हैं  , उसमें जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र का सम्मेद शिखर वही है जो वर्तमान में भारतवर्ष के झारखंड राज्य में स्थित है तथा पार्श्वनाथ हिल के नाम से विख्यात है । ·          आचार्य कुन्दकुन्द( 1  शती) ने निर्वाण भक्ति में  , आचार्य यतिवृषभ ( 2-3 शती) ने तिलोयपण्णत्ति  के चौथे महाधिकार में  , आचार्य गुणभद्र ने उत्तरपुराण में , आचार्य रविषेण ने पद्मपुराण में  , आचार्य जिनसेन ने हरिवंशपुराण में तथा अन्य अनेक आचार्यों ने अनेक ग्रंथों में सम्मेद शिखर जी को  20  तीर्थंकरों सहित करोड़ों मुनियों की निर्वाण स्थली कहा है । ·          ‘सम्मेद’ शब्द मूलतः प्राकृत भाषा का शब्द है |लगभग  1-3  शती के आगम साहित्य में प्राकृत भाषा में इसके तीन-चार रूप मिलते हैं  –  सम्मेद  ,  सम्मेय,संमेय और संमेअ  , जो कि लगभग एक हैं ,  आचार्य कुन्दकुन्द और आचार्य यतिवृषभ (तिलोयपण्णत्ति) सम्मेद शब्द का प्रयोग करते हैं जबकि पाइय-सद्द-महण्णव जै

संस्कृत बुरी क्यों है ?

  संस्कृत बुरी क्यों है ? प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com हम चाहे संस्कृत को देव वाणी कहें पर आज संस्कृत इतनी व्यापक और उपादेय होने के बाद भी बुरी क्यों लगती है ? इसका एक वाकया सामने आया | अभी कुछ समय पूर्व दिल्ली के एक नामी स्कूल में पढ़ने वाले मेरे बेटे ने एक फॉर्म लाकर मुझे दिया | यह क्या है ? पूछने पर उसने मुझसे कहा कि अब मुझे अगली कक्षा में फ्रेंच या संस्कृत में से एक भाषा का चुनाव करना है अतः अभिभावक के हस्ताक्षर सहित , भाषा चुनकर यह फॉर्म मुझे जमा करना है | मैंने बिना किसी पूर्वाग्रह के उससे पूछा तुम कौन सी भाषा पढ़ना चाहते हो ? ‘फ्रेंच’- उसका भोला सा उत्तर था | संस्कृत क्यों नहीं ? मैंने आश्चर्य से पूछा | उस अबोध बालक ने जो मुझे उत्तर दिया उसने हमारे द्वारा चलाये जा रहे सभी आन्दोलनों पर पानी फेर दिया | उसने कहा - फ्रेंच बहुत अच्छी है और संस्कृत बहुत बुरी | मैंने उसे समझाते हुए पूछा- बेटा, फ्रेंच का तो तुमने नाम भी अभी सुना है ,और अभी पढ़ी भी नहीं है ,फिर वह अच्छी है ऐसा कैसे निर्णय किया ? और संस्कृत तो तुमने पढ़ी है उसके कई श्लोक भी तुम्हें याद है