*शास्त्री क्या करे ,क्या न करे ?* *प्रो(डॉ) अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली* सबसे बड़ा सिद्धांत तो यही है कि - *तादृशी जायते बुद्धिर्व्यवसायोऽपि तादृशः।* *सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता॥* किसी भी बड़े सफल व्यक्ति से पूछें कि ये जो आप सफलता के लंबे लंबे भाषण प्रेरणा के लिए दे रहे हैं ,वो भाषण की दृष्टि से भले ही प्रभावशाली हैं पर यथार्थ क्या है ,अपनी छाती पर हाथ रखकर विचार करके अपने अनुभव को सही अभिव्यक्ति दीजिये तो अधिकांश व्यक्तिगत रूप से यही कहेंगे कि मैंने आगे का ज्यादा कभी नहीं सोचा , कभी बहुत बड़ा लक्ष्य नहीं बनाया, बस जो सामने दिखता गया उसे जैसे तैसे करके परिश्रम पूर्वक करता गया और यहां तक आ गया । वास्तविकता यह है कि सभी चीजों को एक ही तराजू पर तौल कर देखा नहीं जा सकता । शास्त्री उत्तीर्ण एक प्राच्य विद्या का विद्यार्थी अपने रोजगार के सीमित अवसरों को लेकर हमेशा चिंतित रहता है - यह एक यथार्थ है । शास्त्र में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले भावुकतावशात् ऐसे द्वंद्व में जीते हैं जहां परिश्रम को तो पुण्य माना जाता है किंतु पारिश्रमिक को अपराध । इसलिए मजबूरीवशात् उसे आजीविका हेतु उन क्