ऋषभदेव जयंती पर विशेष भारतीय संस्कृति के आराध्य तीर्थंकर ऋषभदेव डा . अनेकान्त कुमार जैन मनुष्य के अस्तित्व के लिए रोटी , कपड़ा , मकान जैसे पदार्थ आवश्यक हैं , किंतु उसकी आंतरिक सम्पन्नता केवल इतने से ही नहीं होती। उसमें अहिंसा , सत्य , संयम , समता , साधना और तप के आध्यात्मिक मूल्य भी जुड़ने चाहिए। भगवान् ऋषभदेव ने भारतीय संस्कृति को जो कुछ दिया है , उसमें असि , मसि , कृषि , विद्या , वाणिज्य और शिल्प इन छह कर्मो के द्वारा उन्होंने जहां समाज को विकास का मार्ग सुझाया वहीं अहिंसा , संयम तथा तप के उपदेश द्वारा समाज की आंतरिक चेतना को भी जगाया। जन - जन की आस्था के केंद्र तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म चैत्र शुक्ला नवमी को अयोध्या में हुआ था तथा माघ कृष्णा चतुर्दशी को इनका निर्वाण कैलाश पर्वत से हुआ था।इन्हें आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है .इनके पिता का नाम नाभिराय तथा इनकी माता का नाम मरुदेवी था. कुलकर नाभिराज से ही इक्क्षवाकू कुल की शुरुआत मानी जाती है। इन्हीं के नाम पर भारत का एक प्राचीन...