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मुनियों के चातुर्मास से होती है आध्यात्मिक क्रांति (दैनिक जागरण में प्रकाशित लेख )

जीवन में संतुलन

समाज आपके दान का भूखा नहीं

संस्कृत शिक्षा का विकास

विकास किसे कहते हैं ?

‘दार्शनिक समन्वय की जैन दृष्टि’ कृति को महावीर पुरस्कार-२०१३

‘दार्शनिक समन्वय की जैन दृष्टि’ कृति को महावीर पुरस्कार-२०१३   ‘महर्षि वादरायण व्यास’युवा राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित विद्वान डॉ अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली की महत्वपूर्ण शोध कृति ‘दार्शनिक समन्वय की जैन दृष्टि : नयवाद’ को जैन विद्या संस्थान ,जयपुर द्वारा प्रदान किये जाने वाले लब्ध प्रतिष्ठित “महावीर पुरस्कार-२०१३”के लिए वहाँ की विशेषज्ञ समिति ने चयनित किया है |यह कृति डॉ अनेकान्त के शोधप्रबंध का प्रकाशित संस्करण है जिसे उन्होंने प्रो.दयानंद भार्गव जी के निर्देशन में जैन विश्व भारती संस्थान ,लाडनूं में रह कर पूर्ण किया था |उक्त ग्रन्थ का गरिमापूर्ण प्रकाशन वैशाली स्थित प्राकृत ,जैन शास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान ने किया है |यह कृति लगभग २३० पृष्ठों की है तथा आठ अध्यायों में विभाजित है |इस कृति की विशेषता यह है कि लेखक ने जैन दर्शन के नयवाद की शास्त्रीय मीमांसा की है और इस सिद्धांत के ऐतिहासिक विकास को दर्शाया है |मुख्यरूप से सात नयों की तुलना विभिन्न भारतीय दर्शनों के साथ प्रामाणिक रूप से करके नयों की व्यापकता को दार्शनिक दृष्टि से खोजने का प्रयास किया है | ज्ञातव्य है...

धार्मिक समारोहों में फूहड़ कवि सम्मेलनों से तौबा करें आयोजक

धार्मिक समारोहों में फूहड़ कवि सम्मेलनों से तौबा करें आयोजक डॉ अनेकान्त कुमार जैन वर्तमान में हास्य कवि सम्मेलनों का स्तर भले ही निरंतर गिरता जा रहा हो ,स्वस्थ्य हास्य व्यंग की जगह द्विअर्थी अश्लील संवाद और चुटकुले बाजी भले ही उपस्थित जन समुदाय की तालियाँ और वाहवाही बटोर रहे हों पर लाखों के बजट वाले इन स्तरहीन कवि सम्मेलनों का आयोजन धार्मिक समारोहों के मंच पर कतई उचित नहीं है | आयोजकों को इस बारे में एक बार पुनः विचार कर लेना चाहिए |प्रातः काल जिस मंच और पंडाल में   वीतरागता के प्रवचन ,शुद्ध मन्त्रों से पूजन होती हो ,मंच पर परदे के पीछे भगवान विराजमान हों और चारों तरफ़ वीतरागी साधुओं के चित्र लगे हों उस वातावरण में ,उसी स्थान पर रात्रि में व्यसनी कवियों द्वारा मनोरंजन के नाम पर अश्लील व्यंग्यों की प्रस्तुति अत्यंत निंदनीय है | मंचपर आसपास तथा सामने अनेक साधक ,त्यागीवृन्द और समाज के लोग अपने परिवार सहित इस आशा से उपस्थित रहते है कि गरिमामय काव्य सुनने को मिलेगा किन्तु जब कवि हास्य के नाम पर उल-जलूल प्रस्तुतियाँ देते हैं तब इनके सामने झेंपने और उठकर जाने के अलावा कोई चारा...

युवा विद्वान डॉ अनेकान्त जैन को राष्ट्रपति सम्मान

  युवा विद्वान डॉ अनेकान्त जैन को राष्ट्रपति सम्मान दिनांक 17 जनवरी २०१४ को मानव संसाधन विकास मंत्रालय ,नई दिल्ली द्वारा राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक भव्य समारोह में भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी जी ने उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष २०१३ का   ‘महर्षि वादरायण व्यास ’ - युवा राष्ट्रपति सम्मान युवा विद्वान डॉ अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली को अपने करकमलों से प्रदान किया | ज्ञातव्य है कि डॉ.जैन प्राच्य विद्या के प्रख्यात मनीषी बी.एल.इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी,नई दिल्ली के वर्तमान शैक्षिक निदेशक प्रो.डॉ.फूलचंद जैन प्रेमी जी तथा सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय ,वाराणसी में जैन   दर्शन विभाग में सम्प्रति कार्यरत,ब्राह्मीलिपि लिपि की विशेषज्ञ विदुषी श्रीमती डॉ मुन्नी पुष्पा जैन के ज्येष्ठ सुपुत्र हैं | डॉ. जैन अपनी इस उपलब्धि में अपने मात-पिता,गुरुजनों का विशेष योगदान मानते हैं | डॉ अनेकान्त कुमार जैन वर्तमान में श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (मानित विश्वविद्यालय),नई दिल्ली में जैनदर्शन विभाग में सहायक आचार्य के रूप में कार्यरत हैं तथा प...

धार्मिक समारोहों में फूहड़ कवि सम्मेलनों से तौबा करें आयोजक

धार्मिक समारोहों में फूहड़ कवि सम्मेलनों से तौबा करें आयोजक डॉ अनेकान्त कुमार जैन वर्तमान में हास्य कवि सम्मेलनों का स्तर भले ही निरंतर गिरता जा रहा हो ,स्वस्थ्य हास्य व्यंग की जगह द्विअर्थी अश्लील संवाद और चुटकुले बाजी भले ही उपस्थित जन समुदाय की तालियाँ और वाहवाही बटोर रहे हों पर लाखों के बजट वाले इन स्तरहीन कवि सम्मेलनों का आयोजन धार्मिक समारोहों के मंच पर कतई उचित नहीं है | आयोजकों को इस बारे में एक बार पुनः विचार कर लेना चाहिए |प्रातः काल जिस मंच और पंडाल में   वीतरागता के प्रवचन ,शुद्ध मन्त्रों से पूजन होती हो ,मंच पर परदे के पीछे भगवान विराजमान हों और चारों तरफ़ वीतरागी साधुओं के चित्र लगे हों उस वातावरण में ,उसी स्थान पर रात्रि में व्यसनी कवियों द्वारा मनोरंजन के नाम पर अश्लील व्यंग्यों की प्रस्तुति अत्यंत निंदनीय है | मंचपर आसपास तथा सामने अनेक साधक ,त्यागीवृन्द और समाज के लोग अपने परिवार सहित इस आशा से उपस्थित रहते है कि गरिमामय काव्य सुनने को मिलेगा किन्तु जब कवि हास्य के नाम पर उल-जलूल प्रस्तुतियाँ देते हैं तब इनके सामने झेंपने और उठकर जाने के अलावा कोई चारा न...