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प्राकृत विश्व में जीवंत, जयवंत,प्रभवंत वर्ते

 आगमभासापाइय तित्थयरभगवदो महावीरस्स |

जयवंतो जीवंतो पहवंतो वत्ते विस्सम्मि ||

- तीर्थंकर भगवान् महावीर के आगमों की भाषा प्राकृत विश्व में जीवंत, जयवंत,प्रभवंत वर्ते     

प्रो.डॉ. अनेकांत कुमार जैन 
28/07/24

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