1.वर्तमान में हम देख रहे हैं कि वक्त सबका आता है ।जैसे पहले इनका था,फिर उनका आया अब इनका फिर से आया है ।
2. जब वक्त एक पक्ष का रहता है तब वे अपने बाहुबल,शासन और स्व निर्मित कानून के बल पर इतर धर्म के धर्म तीर्थ स्थल को या तो पूरा ध्वस्त कर देते हैं या उस पर कब्जा कर लेते हैं ।
3.जब तक तीर्थ हमारे हक में रहता है तब तक हम सिर्फ पूजा भक्ति में डूबे रहते हैं और बिना डरे और विचारे इतर धर्म में प्रयुक्त प्रतीकों , शब्दों ,चिन्हों के प्रयोग बिना किसी संकोच के करते हैं और समन्वय उदारता का परिचय देते रहते हैं ।
4.किन्तु समय बदलते देर नहीं लगती । राजा का सहयोग, संख्या बल , अंध श्रद्धा और बाहुबल सारे कानून पर भारी पड़ता है । हमारी सत्ता,संख्या कम होते ही हमारे ही सामने हमारे धर्म स्थल ,प्रतीक आदि हड़प लिए जाते हैं , अन्य धर्म में तब्दील कर दिए जाते हैंऔर हम कुछ कर नहीं पाते ।
5.किन्तु सैकड़ों हज़ारों साल बाद जब समय बदलता है और हमारे हाथ में सत्ता और संख्या आती है तो अदालतें हमसे सबूत मांगती हैं तब भी यदि सबूतों में इतर धर्म के प्रतीक , शब्द और चिन्ह मिलते हैं तब हमें अपने पूर्वजों की उदारता पर क्षोभ होता है ।
6. इसलिए अभी भी वर्तमान में जहाँ जहाँ भी हमारे तीर्थ हैं वहाँ हमें भविष्य की दृष्टि से बहुत सावधानी पूर्वक निर्माण करवाना चाहिए । लौकिक और इतर धर्म के प्रतीकों ,शब्दों और चिन्हों के इस्तेमाल से जहाँ तक हो बचना चाहिए ।
7.इसके अलावा जहाँ कहीं भी फ़साद चल रहे हों वहाँ अपने कब्जे वाले स्थलों पर ताम्र पत्र या शिलालेख पर संस्कृत या प्राकृत भाषा में अपनी यथार्थ स्थिति लिखवा कर भूमि में गड़वा देना चाहिए ,यह सोचकर कि आज भले ही सत्ता ,संख्या और वक्त हमारे साथ नहीं है लेकिन भविष्य में तो होगा । तब हज़ारों साल बाद खुदाई में प्राप्त हमारे शास्त्रीय प्रतीक ,चिन्ह,शब्द ,लिपि,लेख ,प्रशस्तियाँ आदि हमारी रक्षा करेंगीं ।सभी लेखों में ईशवी सन के साथ वीर निर्वाण संवत का प्रयोग अवश्य करें ।
8.हम अपने तीर्थ पर सप्रमाण ,सचित्र एक पुस्तक भी अवश्य छपवा दें । जिसमें प्रत्येक वेदी और मूर्ति का परिचय और प्रशस्ति भी छपे । इसके लिए किन्हीं विशेषज्ञ विद्वान की मदद अवश्य लें । इस प्रामाणिक पुस्तक को स्थानीय सभी सरकारी ,गैर सरकारी पुस्तकालयों ,कॉलेज,स्कूल,विश्वविद्यालय के पुस्तकालयों में ,संग्रहालय और अदालत के पुस्तकालय में अवश्य रखवा दें । उसे देश के भी सभी बड़े पुस्तकालयों में भिजवा दें ।
9.अपने तीर्थ के बारे में प्रामाणिक सचित्र लेख लिखवा कर सार्वजनिक समाचार पत्रों,पत्र पत्रिकाओं में भी अवश्य प्रकाशित करें ।
यह सब कार्य बिना किसी राजनीति के अवश्य करना चाहिए । ये सब आज के लिए और भविष्य के लिए हमारे अस्तित्व का प्रमाण बनेगा और आगे की पीढ़ी के काम आएगा ।
*मूलस्य नाशो बलवद्विरोधः* अर्थात बलवान से सीधे पंगा लेने से मूल का ही नाश हो जाता है । संस्कृत की इस सूक्ति का आशय समझें और गड़े मुर्दे न उखाड़े । जिनका नरसंहार हुआ उन्हें आप जीवित नहीं कर सकते किन्तु वर्तमान में जो सौहार्द का वातावरण है ,भले ही वह कृत्रिम हो , पुरानी बातें उखाड़ कर नई नफरतों को जन्म देकर कहीं इतिहास की पुनरावृत्ति को तो नहीं उकसा रहे हैं ?
गंभीरता से विचार कीजिये और इतिहास के उन्हीं तथ्यों को प्रकाशित कीजिये जिससे सौहार्द बढ़े न कि घटे ।
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