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संस्कृत बुरी क्यों है ?


संस्कृत बुरी क्यों है ?
प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली
हम चाहे संस्कृत को देव वाणी कहें पर आज संस्कृत इतनी व्यापक और उपादेय होने के बाद भी बुरी क्यों लगती है ? इसका एक वाकया सामने आया | अभी कुछ समय पूर्व दिल्ली के एक नामी स्कूल में पढ़ने वाले मेरे बेटे ने एक फॉर्म लाकर मुझे दिया | यह क्या है ? पूछने पर उसने मुझसे कहा कि अब मुझे अगली कक्षा में फ्रेंच या संस्कृत में से एक भाषा का चुनाव करना है अतः अभिभावक के हस्ताक्षर सहित , भाषा चुनकर यह फॉर्म मुझे जमा करना है | मैंने बिना किसी पूर्वाग्रह के उससे पूछा तुम कौन सी भाषा पढ़ना चाहते हो ? ‘फ्रेंच’- उसका भोला सा उत्तर था | संस्कृत क्यों नहीं ? मैंने आश्चर्य से पूछा | उस अबोध बालक ने जो मुझे उत्तर दिया उसने हमारे द्वारा चलाये जा रहे सभी आन्दोलनों पर पानी फेर दिया | उसने कहा - फ्रेंच बहुत अच्छी है और संस्कृत बहुत बुरी |
मैंने उसे समझाते हुए पूछा- बेटा, फ्रेंच का तो तुमने नाम भी अभी सुना है ,और अभी पढ़ी भी नहीं है ,फिर वह अच्छी है ऐसा कैसे निर्णय किया ? और संस्कृत तो तुमने पढ़ी है उसके कई श्लोक भी तुम्हें याद हैं ? फिर वह बुरी है यह निर्णय किस आधार पर किया ? बहुत खोद खोद कर पूछने पर उसने मुझे जो कारण बताया उसने मुझे इस दिशा में एक अलग ही प्रकार से अनुसन्धान करने पर विवश कर दिया | उसने भोलेपन से  कहा – फ्रेंच की मैडम बहुत अच्छी है ...बहुत प्यार से बोलती है .....डांटती नहीं है .....स्मार्ट भी हैं .....इसलिए हमें फ्रेंच बहुत अच्छी लगती है | मेरे अधिकतर दोस्त भी यही विषय ले रहे हैं | मेरी संस्कृत की मैडम बहुत जिद्दी टाइप की है ...हमेशा क्रोध में रहती है......बहुत डांटती है....हमसे कुछ न कुछ अपना खुद का काम करवाती रहती है........स्मार्ट भी नहीं है अतः हमें संस्कृत अच्छी नहीं लगती | मुझे पहली बार पता लगा कि बच्चों की दृष्टि में विषय अच्छा या बुरा , अध्यापक अच्छे हैं या बुरे , पर निर्भर करता है |
अपनी प्राचीन भाषाएँ पिछड़ने के अनेक कारणों में से एक बहुत बड़ा कारण पहली बार मेरी समझ में आया | अध्यापक के स्वभाव,बोलचाल और ड्रेसिंग सेन्स के आधार पर भी विषय अच्छे या बुरे होते हैं ?
बंधुओं ! संस्कृत पढ़ने वाले विद्यार्थी हमारे नौकर नहीं हैं | वो हमारी प्राचीन धरोहर की रक्षा करने वाले वीर सैनिक और योद्धा हैं , क्या हम उनसे अच्छा वर्ताव नहीं कर सकते ? क्या हम उन्हें अपने मधुर स्वभाव और अच्छे पहनावे से आकर्षित नहीं कर सकते ? उन्हें संस्कृत विद्या पढ़ा कर सिर्फ हम ही उन पर उपकार नहीं कर रहे हैं बल्कि वे ये विद्याएँ पढ़कर हम पर , समाज पर ,राष्ट्र पर , वे भी बहुत बड़ा उपकार कर रहे हैं |
ऐसा नहीं है कि संस्कृत के सभी अध्यापक ऐसे हैं ,कठोर स्वभाव वाले बहुत कम ही होते हैं लेकिन यदि एक भी इस तरह के हैं तो सोचिये कितना बड़ा नुकसान हो रहा है | अन्य विषयों में कठोरता होने पर भी बात इसलिए चल जाती है क्यों कि वहां भीड़ है , मना करने पर भी लोग धन खर्च करके , सोर्स लगाकर और अनेक कष्ट सहन करके भी वह विषय सिर्फ रोजगार के लिए पढ़ते हैं , लेकिन संस्कृत विद्या का विद्यार्थी धर्म और राष्ट्र भावना से भी यह विद्या पढ़ता है ,उसे सामाजिक जीवन के साथ भी संघर्ष करना होता है और आजीविका की रिस्क भी उठानी पड़ती है | इसलिए संस्कृत विद्या के विद्यार्थियों को अपने पुत्र से भी ज्यादा स्नेह देकर उसका पालन पोषण करना होता है | हो सकता है मेरी बात आपको अच्छी न लगे या बहुत तार्किक न लगे लेकिन इस अनुभूत पहलु को आप नज़र अंदाज भी नहीं कर सकते | कुछ बुरा लगा हो तो क्षमा याचना सहित .............धन्यवाद     

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