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हमारे अधूरे जिनालय

*हमारे अधूरे जिनालय*
प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com
अभी कुछ दिन पहले  किसी निमित्त दिल्ली में वैदवाडा स्थित जैन मंदिर के दर्शनों का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ । बहुत समय बाद इतने भव्य , मनोरम और प्राचीन जिनालय के दर्शन करके धन्य हो गए ।
दिल्ली के प्राचीन मंदिरों में जाओ तो लगता है हम फिर वही शताब्दियों पूर्व उसी वातावरण में पहुंच गए जब पंडित दौलतराम जी जैसे जिनवाणी के उपासक अपनी तत्वज्ञान की वाणी से श्रावकों का मोक्षमार्ग प्रशस्त करते थे ।
वैदवाडा के उस मंदिर में एक माली सामग्री एकत्रित कर रहा था । हमने सहज ही उससे पूछा - भाई , यहां नियमित शास्त्र स्वाध्याय होता है ?
नहीं... कभी नहीं होता - उसका स्पष्ट उत्तर था । मुझे आश्चर्य हुआ । मैने कहा- ऐसा क्यों कहते हो भाई , दशलक्षण पर्व में तो होता होगा ?
बोला - हां ,उसी समय होता है - बस ।
मैंने उसे समझाते हुए कहा - तो ऐसा क्यों कहते हो कि कभी नहीं होता ? कोई भी पूछे तो बोला करो होता है , मगर कभी कभी विशेष अवसरों पर होता है ।
मैंने उसे तो समझा दिया , लेकिन मेरा मन आंदोलित हो उठा ? ये क्या हो रहा है ? बात सिर्फ वैदवाडा के मंदिर की नहीं है , ऐसा अनुभव आए दिन कई मंदिरों में देखने को मिलता है ।कई जगह ऐसी भी हैं जहां दशलक्षण में भी प्रवचन नहीं होते । कमोबेश अधिकांश की स्थिति ऐसी ही है । बहुत कम मंदिर ऐसे हैं जहां नियमित स्वाध्याय होता है और जहां होता है वहां का वातावरण भी अलग ही होता है ।
हम महावीर को मानते हैं यह सच है किन्तु महावीर की नहीं मानते यह उससे भी बड़ा कड़वा सच है । मानेंगे तब जब उनकी सुनेंगे ।
हमारा तो ये हाल हो रहा है कि मंदिर में भी हम सिर्फ सुनाने जाते हैं । यह वन वे ट्रैफिक ठीक नहीं है ।
सुनाने के साथ साथ हमें महावीर की सुननी भी चाहिए । सुनेंगे कहां से जब शास्त्र सभा ही नहीं होगी ?
फिर एक दिन मैं अपने घर के समीप स्थित गुरुद्वारा अपने एक सिक्ख मित्र के साथ गया । वहां देखा कि एक विद्वान् बैठकर गुरु ग्रंथ साहिब को संगीत के साथ बांच रहे हैं । लोग मत्था टेक कर आ रहे हैं , जा रहे हैं ।
कुछ सज्जन सर पर रुमाल बांधकर चुपचाप बैठकर गुरुवाणी सुन रहे हैं । थोड़ी देर रुकने के बाद देखा कि वहां कोई नहीं था लेकिन वे गुरुवाणी लगातार पढ़ रहे थे ।
क्या हम जैन मंदिर में ऐसा नहीं कर सकते ?
अक्सर यह कह कर शास्त्र सभा नहीं चलाई जाती कि कोई सुनने तो आता नहीं है ?या यह कहकर कि शास्त्र पढ़ेगा कौन ? इत्यादि
समाधान के लिए कुछ सुझाव रख रहा हूं । यदि इन्हें अपनाया जाय तो शास्त्र सभा पुनः गुलजार  हो सकती हैं -
१. प्रत्येक मंदिर की कैमेटी में अनेक पद होते हैं उनमें एक पद *शास्त्र सभा मंत्री* का भी अवश्य हो , उस पर चयनित श्रावक की जिम्मेदारी शास्त्र सभाओं के संचालन , पाठशाला के संचालन, पुस्तकालय के रखरखाव आदि की हो ।
२. समाज में कोई न कोई श्रावक या श्राविका ऐसी जरूर होती है जो स्वभाव से ही स्वाध्याय शील और रूचिवंत होते हैं उनसे निवेदन करें कि सभी की सुविधानुसार एक समय निश्चित करें और सभी की रुचि के अनुसार किसी भी अनुयोग के ग्रंथ का नियमित वाचन प्रारंभ करवा दें ।
३. कोई सुने या न सुने ,आप नियमित क्रम अवश्य चलाएं । एक निश्चित समय में जिनवाणी मंदिर में गूंजनी जरूर चाहिए ।
४. समय समय पर किन्हीं विद्वान्  या विदुषी को साप्ताहिक या मासिक रूप से आमंत्रित कर विशेष प्रवचन या गोष्ठी का आयोजन अवश्य करें ।
५.मुनिराज या आर्यिका माता जी जिन भी मंदिर में विराजें वहां वहां अपनी सत्प्रेरणा से नियमित शास्त्र सभाओं को पुनः जीवित अवश्य करावें ।
६. मंदिर के सूचना स्थल पर शास्त्र सभा का एक बोर्ड स्थाई रूप से हो जिसमें शास्त्र सभा का समय, वक्ता,शास्त्र का विषय स्पष्ट रूप से उल्लिखित हो । प्रत्येक आने जाने वाले दर्शनार्थी को यह पता होना चाहिए कि इस जिनालय में शास्त्र सभा चलती है ।
७. किन्हीं कारण से अभी रोज न चल सके तो सप्ताह में एक दिन चला कर यह प्रारंभ अवश्य कर दें फिर एक एक दिन बढ़ाते जाएं ।
यह बात स्वीकार कर लीजिए यदि जैन शास्त्रों की सभा न हो तो हमारे जिनालय अधूरे हैं । उन्हें अधूरा न रखें , सम्पूर्ण बनाएं ।
आपका यह छोटा सा योगदान ,  एक छोटी सी शुरुआत जिनवाणी तथा जैन धर्म दर्शन की सुरक्षा ,संवर्धन में नया कीर्तिमान स्थापित कर सकता है और अनेक भव्य जीवों का मोक्षमार्ग प्रशस्त कर सकता है ।
धन्यवाद

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