एक संत तो निकल लिए बाकी का क्या ?
(सावधान ! सूचना क्रांति बनेगी अवसाद का सबसे बड़ा कारण)
- आचार्य अनेकांत ,नई दिल्ली
अवसाद की अनेक वजहों में एक बड़ी वजह स्वाभाविक अभिव्यक्ति में आने वाली लगातार कमी भी है | आपको जब गुस्सा आ रहा हो और आप सिर्फ इसीलिए अभिव्यक्त न कर पायें कि कोई फ़ोन रिकॉर्ड कर लेगा ,विडियो बना लेगा,सी सी टी वी में कैद हो जायेगा और यह सब कुछ बिना वजह उनके सामने उस समय पेश किया जायेगा जिनसे जिस वक्त गुस्सा छोड़कर आपने किसी तरह सम्बन्ध अच्छे बना लिए हैं और सब कुछ शांति से चल रहा है |
तब इन्हीं कुछ कारणों से लोग मित्रों ,रिश्तेदारों तक से अपना ह्रदय खोलने में घबड़ा रहे हैं | इस प्रकार की प्रवृत्ति परिवार,समाज,कार्यालय ,शिक्षा संस्थान आदि में एक कृत्रिम वातावरण का निर्माण कर रही है जहाँ किसी के साथ खुल कर हंसना बोलना रोना चिल्लाना आदि सारे मनो भाव स्वाभाविक रूप से अभिव्यक्त न होने के कारण लोगों को कुंठाग्रस्त कर रहे हैं |
संवादहीनता की वृद्धि -
हमें अगर किसी से कोई समस्या है और अगर हम किसी कारण से उससे न कह सकें तो दूसरों से कह कर तो मन हल्का कर ही सकते हैं ,किन्तु अविश्वसनीय और स्वार्थी माहौल ने मन ही मन घुटना एक मजबूरी बना दिया है | हम जिस पर विश्वास करके अपना मन हल्का करते हैं वह उसे रिकार्ड करके प्रतिपक्षी का मन हमारे प्रति भारी कर आता है | क्षणिक भावों को स्थायी भाव बता कर प्रस्तुत करने वाले नारदीय गुण वाले बंदरों के हाथ में सोशल मीडिया का उस्तरा जब से हाथ में आया है तब से वे पहले से ज्यादा व्यस्त हो गए हैं |इधर की उधर भिड़ाकर लोगों को लड़ाने में . संघर्ष करवाने में और राग द्वेष भड़काने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है |
एक संत तो निकल लिए बाकी का क्या ?
सोशल मीडिया सूचना तकनीकी क्रांति भले ही बहुत कुछ प्रदान कर रही है पर हमारे स्वाभाविक जीवन को तहस नहस भी कर रही है | अवसाद से आज मोक्ष के लिए तपस्या रत साधू समाज भी ग्रसित हो रहा है | आत्म शून्य अध्यात्मवाद के चक्कर में वे स्वयं आत्मप्रवंचना के शिकार हो रहे हैं | जबरजस्ती दबाई गयी वासना और पवित्रता-पूज्यता का क्षद्म चोला ओढ़ कर वे स्वयं को भगवान समझने की भूल कर रहे हैं और यद्वा तद्वा विकृत सेक्स की घटनाओं में लगातार फंस रहे हैं |
कृत्रिम अभिव्यक्ति की आजादी वाला मोबाइल,इन्टरनेट,लैपटॉप भी उनके हाथों में है | जिससे वे भी लगातार लोकेषणा, आत्ममुद्घता और आत्म प्रवंचना के शिकार हो रहे हैं | वे ध्यान कम करते हैं ,किन्तु उस मुद्रा की फोटो खिंचवा कर इन्टरनेट पर ज्यादा डालते हैं | हमसे ज्यादा वे अवसाद से ग्रसित हैं ,लगातार मंच पर मुस्कुराते हुए बैठना और खुद को शांत रस की मूर्ति बना कर प्रस्तुत करते रहना किसी गहरे तनाव से कम नहीं |अकूत संपत्ति एकत्रित करते समय शास्त्र की ये पंक्तियाँ विस्मृत कर देते हैं कि अर्थ ही अनर्थ का मूल होता है - अत्थो अणत्थ मूलं |
सारा अध्यात्म सारे प्रवचन सारा ज्ञान सारा वैभव बेमानी लगने लग जाता है जब कोई संत कहलाने वाला बाहर से संपन्न मनुष्य आत्महत्या कर लेता है | काश अन्दर से संपन्न लोगों को समाज में संत कहा जाता और पूजा जाता तो संत आत्महत्याओं से बच जाता और समाज लुटने से |
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