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स्वच्छता अभियान और भगवान् महावीर

भगवान् महावीर का स्वच्छता और शुद्धता अभियान प्रो अनेकांत कुमार जैन* वर्तमान में स्वच्छ भारत अभियान आन्दोलन से स्वच्छता ने हमारी भारतीय संस्कृति  के गौरव को पुनः स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है  | भारतीय समाज में इसी तरह का स्वच्छता अभियान भगवान् महावीर ने ईसा की छठी शताब्दी पूर्व  चलाया  था  | उस अभियान को हम शुद्धता का अभियान कह सकते हैं  | भगवान् महावीर ने दो तरह की शुद्धता की बात कही -1. अन्तरंग शुद्धता 2. बहिरंग शुद्धता  | क्रोध, मान, माया,लोभ ये चार कषाये हैं  | ये आत्मा का मल-कचड़ा  है  | भगवान्महावीर ने मनुष्य में सबसे पहली आवश्यकता इस आंतरिक कचड़े को दूर करने की बतायी | उनका स्पष्ट मानना था की यदि क्रोध, मान, माया, लोभ और इसी तरह की अन्य हिंसा का भाव आत्मा में हैं तो वह अशुद्ध है और ऐसी अवस्था में बाहर से चाहे कितना भी नहाया-धोया जाय, साफ़ कपडे पहने जायें वे सब व्यर्थ हैं, क्यों कि किसी पशु की बलि देने से पहले उसे भी नहलाया-धुलाया जाता है, पुजारी भी नहाता है और उस पशु की पूजा करता है  |             भगवान् महावीर का मानना था की उस निर्दोष प्राणी के जीवन को स

भगवान् महावीर की भाषा को समझें

महावीर जयंती पर विशेष - भगवान् महावीर की भाषा को समझें प्रो.डॉ अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली हम भगवान् महावीर को जानना समझना चाहते हैं किन्तु जब तक हम उनकी भाषा और शैली को नहीं समझेंगे तब तक क्या हम उनके उपदेशों को सही अर्थों में समझ पाएंगे ? भगवान् महावीर ने जो सबसे बड़ी क्रांति की थी वह थी उनकी संवाद शैली | जिस अतीन्द्रिय ज्ञान के माध्यम से उन्होंने आत्मा के सत्य के बहुआयामी स्वरुप को जान लिया था उसे व्याख्यायित करते समय उनके सामने दो समस्याए थीं एक तो सभी लोग संस्कृत नहीं जानते थे और दूसरा इन्द्रिय ,वाणी और शब्दों की सीमित शक्ति वस्तु के परस्पर विरोधी प्रतीत होने वाले बहु आयामी स्वरुप को यथावत् अभिव्यक्त करने में समर्थ नहीं थी | इसके समाधान के लिए उन्होंने सबसे पहले उस समय पूरे भारत की जनभाषा प्राकृत में प्रवचन देना प्रारंभ किया – ‘भगवं च अद्धमागिए भासाए धम्मं आइक्ख’ |उस समय प्राकृतभाषा अनेक रूपों में प्रचलित भाषा थी बाद में सम्राट अशोक ने भी अपने अनेक शिलालेख प्राकृत भाषा में ही लिखवाए |कालिदास,शूद्रक आदि ने अपने नाटकों में प्राकृत भाषा का प्रयोग किया | भाषा वैज्ञानिक इसी

PHD on Phone

*फोन पर पीएचडी* - प्रो अनेकांत कुमार जैन drakjain2016@gmail.com ➡सर मैं पीएचडी करना चाहती हूं । ✅बहुत अच्छी बात है । ➡इसके लिए मुझे क्या करना होगा ? ✅आप पीएचडी क्यों करना चाहती हैं ? ➡ सर, मुझे बहुत शौक है कि मेरे नाम के आगे भी डॉक्टर लगे । ✅शौक के लिए करना है ? ➡जी ✅चलिए , ठीक है । किसी दिन विभाग में समय लेकर आइए , विस्तार से चर्चा करेंगे । ➡मगर , सर ,  विश्वविद्यालय बहुत दूर है , फोन पर चर्चा नहीं हो सकती । आपके पास जब समय हो मैं बात कर लूंगी । ✅ठीक है , कल शाम को ४ बजे बात कीजिएगा । तीन दिन बाद ➡हैलो सर , मैं बोल रही हूं , आपसे पीएचडी के बारे में बात की थी ।वो कौन सा विषय लेना चाहिए ? ✅आप आज फोन कर रही हैं ? ➡sorry sir वो क्या था न कि घर पर कुछ रिश्ते दार आ गए थे तो मैं भूल गई , अभी अचानक याद आया । ✅चलिए , ठीक है , बतलाए , क्या कहना है ? ➡वो मैं ये पूछ रही थी कि पीएचडी के लिए रोज विश्वविद्यालय आना पड़ेगा ? ✅जी, ➡ क्या , ये पत्राचार से भी हो सकता है ? ✅नहीं , यह नियमित कोर्स है । ➡तब मैं कैसे करूंगी ? मैं तो रोज आ नहीं सकती । ✅तो मत कीजिए , आपसे किसने कहा पीए

चौकीदार आप हो .....हम तो जमींदार हैं.......

चौकीदार आप हो ......          हम तो जमींदार हैं....... - कुमार अनेकांत लगभग बीस वर्ष पहले की बात है । बनारस के अस्सी घाट पर गंगा किनारे एक कवि सम्मेलन हो रहा था । हम छात्र थे ,  कहीं जगह नहीं मिली तो हम कवियों के सामने जमीन पर ही बैठ गए कवियों को सुनने । एक कवि ने हम लोगों की दशा देखकर व्यंग्य करते हुए जो कहा उसने हमारा मन जमीन पर बैठकर भी गौरवान्वित हो गया । सामने गद्देदार सोफों पर नेता,मंत्री, मुख्य अतिथि, श्रेष्ठी बैठे हुए थे , कुछ कवि उनके साथ एक ऊंची चौकी पर बैठे हुए थे । उन्होंने सभी को व्यंगात्मक संबोधन करते हुए कहा मेरे सामने गद्दी पर बैठे हुए आदरणीय गद्दारों , मेरे बगल में चौकी पर बैठे हुए आदरणीय चौकीदारों और  हमारी तरफ इशारा करते हुए कहा , और सामने जमीन पर बैठे हुए आदरणीय जमींदारों को मेरा शत शत प्रणाम ! कसम से हमें उस समय ऐसा लगा था जैसे हम ही मुख्य अतिथि हों ।

आधुनिक युग में  प्राकृत भाषा के विकास की संभावनाएं

आधुनिक युग में  प्राकृत भाषा के विकास की संभावनाएं प्रो अनेकांत कुमार जैन अध्यक्ष – जैन दर्शन विभाग श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ नई दिल्ली -११००१६ ,drakjain2016@gmail.com प्राकृत भाषा भारत की प्राचीनतम भाषा है जिसने भारत की अधिकांश क्षेत्रीय भाषाओँ को समृद्धि प्रदान की है | भगवान् महावीर की दिव्यध्वनि में जो ज्ञान प्रकट हुआ वह मूल रूप से प्राकृत भाषा में संकलित हैं जिन्हें प्राकृत जैन आगम कहते हैं |सिर्फ जैन आगम ही नहीं बल्कि प्राकृत भाषा में लौकिक साहित्य भी प्रचुर मात्रा में रचा गया क्यों कि यह प्राचीन भारत की जन भाषा थी | आश्चर्य होता है कि भारत वर्ष की प्राचीन मूल मातृभाषा होने के बाद भी आज इस भाषा का परिचय भी भारत के लोगों को नहीं है | प्राकृत परिवर्तन प्रिय भाषा थी अतः वह ही काल प्रवाह में बहती हुई अपभ्रंश के रूप में हमारे सामने आई तथा कालांतर में वही परिवर्तित रूप में  राष्ट्र भाषा हिंदी के रूप में ,हिंदी के विविध रूपों में हमें प्राप्त होती है | प्राकृत भाषा ने लगभग सभी क्षेत्रीय भाषाओँ को समृद्ध किया है |  आज भाषा के क्षेत्र में बहुत काम हो रहा ह

संस्कृत बुरी क्यों है ?

संस्कृत बुरी क्यों है ? प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com हम चाहे संस्कृत को देव वाणी कहें पर आज संस्कृत इतनी व्यापक और उपादेय होने के बाद भी बुरी क्यों लगती है ? इसका एक वाकया सामने आया | अभी कुछ समय पूर्व दिल्ली के एक नामी स्कूल में पढ़ने वाले मेरे बेटे ने एक फॉर्म लाकर मुझे दिया | यह क्या है ? पूछने पर उसने मुझसे कहा कि अब मुझे अगली कक्षा में फ्रेंच या संस्कृत में से एक भाषा का चुनाव करना है अतः अभिभावक के हस्ताक्षर सहित , भाषा चुनकर यह फॉर्म मुझे जमा करना है | मैंने बिना किसी पूर्वाग्रह के उससे पूछा तुम कौन सी भाषा पढ़ना चाहते हो ? ‘फ्रेंच’- उसका भोला सा उत्तर था | संस्कृत क्यों नहीं ? मैंने आश्चर्य से पूछा | उस अबोध बालक ने जो मुझे उत्तर दिया उसने हमारे द्वारा चलाये जा रहे सभी आन्दोलनों पर पानी फेर दिया | उसने कहा - फ्रेंच बहुत अच्छी है और संस्कृत बहुत बुरी | मैंने उसे समझाते हुए पूछा- बेटा, फ्रेंच का तो तुमने नाम भी अभी सुना है ,और अभी पढ़ी भी नहीं है ,फिर वह अच्छी है ऐसा कैसे निर्णय किया ? और संस्कृत तो तुमने पढ़ी है उसके कई श्लोक भी तुम्हें याद