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विरोध की खूबसूरती को समझें

 विरोध की खूबसूरती को समझें  ✍️प्रो अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली  विरोध सिक्के के हेड और टेल की तरह अस्तित्व का दूसरा पहलू है जो प्रत्येक पहलू को स्वयं ही दिखाई नहीं देता और वह उसे अपने अस्तित्व का सहभागी न मानता हुआ अपने अस्तित्व का ही विरोधी समझने की भूल करने लगता है ।  हेड इसलिए है क्यों कि टेल है ,टेल इसलिए है क्यों कि हेड है ।  मगर हमारी संकुचित बुद्धि उसे अपना अस्तित्व विरोधी जानकर और मानकर उसे नष्ट करने का भाव रखती है ,बिना यह विचारे कि इससे स्वयं के नष्ट होने का खतरा भी उतना ही है । *विरोध प्रचार की कुंजी है* ' आदि सूक्तियों को सुन सुन कर और सुना सुना कर हम  दो तरह की मानसिकता से ग्रसित हो रहे हैं - 1. यदि स्वयं हमारा विरोध हो रहा हो तो बिना आत्ममूल्यांकन किये खुश रहो कि अच्छा है प्रचार तो हो रहा है । उस प्रचार के लोभ में अपनी कमियों की तरफ़ ध्यान न देना एक बहुत बड़ी भूल है । स्वयं को शुद्ध ,सही और उत्कृष्ट मानने का दम्भ भी हमें आत्म मूल्यांकन से कोसों दूर ले जाता है । यह भी एक प्रकार का गृहीत मिथ्यात्व है जो सम्यक्त्व के नाम पर हमारे दिल औ...

सल्लेखना का चालान

जीवन की गाड़ी और समय का पहिया जिस रफ़्तार से चल रहा है  जी करता है उसका  सल्लेखना  से  चालान काट दूँ   निश्चय व्यवहार के कदमों से पैदल चलूं और  समाधि की नौका पर बैठकर  भवपार हो जाऊँ । कुमार अनेकांत

महावीर निर्वाण पंचक

*पाइय-वीर-णिव्वाण-पंचगं* (प्राकृत वीर निर्वाण पंचक) जआ अवचउकालस्स सेसतिणिवस्ससद्धअट्ठमासा ।   तआ होहि अंतिमा य महावीरस्स खलु देसणा ।।1।। जब अवसर्पिणी के चतुर्थ काल के तीन वर्ष साढ़े आठ मास शेष थे तब भगवान् महावीर की अंतिम देशना हुई थी । कत्तियकिण्हतेरसे जोगणिरोहेण ते ठिदो झाणे ।    वीरो अत्थि य झाणे अओ पसिद्धझाणतेरसो ।।2।। कार्तिक कृष्णा त्रियोदशी को योग निरोध करके वे (भगवान् महावीर)ध्यान में स्थित हो गए ।और (आज) ‘वीर प्रभु ध्यान में हैं’ अतः यह दिन ध्यान तेरस के नाम से प्रसिद्ध है ।  चउदसरत्तिसादीए पच्चूसकाले पावाणयरीए ।         ते  गमिय परिणिव्वुओ देविहिं  अच्चीअ मावसे ।।3।। चतुर्दशी की रात्रि में स्वाति नक्षत्र रहते प्रत्यूषकाल में वे (भगवान् महावीर) परिनिर्वाण को प्राप्त हुए और अमावस्या को देवों के द्वारा पूजा हुई । गोयमगणहरलद्धं अमावसरत्तिए य केवलणाणं ।   णाणलक्खीपूया य दीवोसवपव्वं जणवएण ।।4।। इसी अमावस्या की रात्रि को गौतम गणधर ने केवल ज्ञान प्राप्त किया ।लोगों ने केवल ज्ञान रुपी लक्ष्मी की पूजा की और दीपोत्सवपर्व  मनाया ...

मन का विरोध - मौनं विरोधस्य लक्षणम्

मन का विरोध - मौनं विरोधस्य लक्षणम् प्रो अनेकांत कुमार जैन  क्या जरूरी है जुबां बात करे ओंठ हिले  खमोशी देती है पैगाम जो बस खुदा जाने  कभी कभी वातावरण इस तरह के निर्मित हो जाते हैं कि यदि आप समर्थन में नहीं हैं तो भी प्रत्यक्ष विरोध करना आपको इष्ट नहीं होता है ।  खासकर सज्जन, विनम्र और अचाटुकार तरह के लोग अपनी अन्य अनुत्पन्न समस्याओं से बचाव के लिए इस तरह के स्पष्ट और प्रत्यक्ष विरोध से बचते हैं ।  वे अमर्यादित होकर ,चीख और चिल्ला कर विरोध करने की प्रवृत्ति नहीं रखते हैं क्यों कि विरोध के पीछे भी वे कोई अन्य लाभ की वांछा से रहित हैं । अन्य दूसरे लाभ जिन्हें चाहिए वे इससे परहेज नहीं करते और अक्सर उन्हें प्रत्यक्ष अमर्यादित और उग्र विरोध का पुरस्कार भी मिल जाता है ।  सज्जन और विनम्र व्यक्तित्त्व मन से विरोध करके सत्य के प्रति अपनी निष्ठा को बचा कर रखता है ।उसे प्रत्यक्ष विरोध से पुरस्कार की वांछा नहीं है तो अन्य हानि भी उसकी अंतरंग शांति को कहीं भंग न कर दे इसलिए वो भी वह नहीं चाहता । इसलिए कभी वह स्वयं को चुपचाप इस सत्य हनन के तांडव से अलग कर लेत...

वीर निर्वाण दीपोत्सव और सबसे प्राचीन संवत्

  वीर निर्वाण दीपोत्सव और सबसे प्राचीन संवत्   प्रो.डॉ.अनेकांत कुमार जैन आचार्य-जैन दर्शन विभाग श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय                                                                     नई दिल्ली-16 दीपावली भारत का एक ऐसा पवित्र पर्व है जिसका सम्बन्ध भारतीय संस्कृति की सभी परम्पराओं से है ।भारतीय संस्कृति के प्राचीन जैन धर्म में इस पर्व को मनाने के अपने मौलिक कारण हैं ।आइये आज हम इस अवसर पर दीपावली के जैन महत्त्व को समझें ।ईसा से लगभग ५२७   वर्ष पूर्व कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के समापन होते ही स्वाति नक्षत्र में जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का वर्तमान में बिहार प्रान...