विरोध की खूबसूरती को समझें ✍️प्रो अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली विरोध सिक्के के हेड और टेल की तरह अस्तित्व का दूसरा पहलू है जो प्रत्येक पहलू को स्वयं ही दिखाई नहीं देता और वह उसे अपने अस्तित्व का सहभागी न मानता हुआ अपने अस्तित्व का ही विरोधी समझने की भूल करने लगता है । हेड इसलिए है क्यों कि टेल है ,टेल इसलिए है क्यों कि हेड है । मगर हमारी संकुचित बुद्धि उसे अपना अस्तित्व विरोधी जानकर और मानकर उसे नष्ट करने का भाव रखती है ,बिना यह विचारे कि इससे स्वयं के नष्ट होने का खतरा भी उतना ही है । *विरोध प्रचार की कुंजी है* ' आदि सूक्तियों को सुन सुन कर और सुना सुना कर हम दो तरह की मानसिकता से ग्रसित हो रहे हैं - 1. यदि स्वयं हमारा विरोध हो रहा हो तो बिना आत्ममूल्यांकन किये खुश रहो कि अच्छा है प्रचार तो हो रहा है । उस प्रचार के लोभ में अपनी कमियों की तरफ़ ध्यान न देना एक बहुत बड़ी भूल है । स्वयं को शुद्ध ,सही और उत्कृष्ट मानने का दम्भ भी हमें आत्म मूल्यांकन से कोसों दूर ले जाता है । यह भी एक प्रकार का गृहीत मिथ्यात्व है जो सम्यक्त्व के नाम पर हमारे दिल औ...