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नवंबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छल दूसरों से या खुद से ? निर्णय आपका

छल दूसरों से या खुद से ? निर्णय आपका ! प्रो अनेकान्त जैन,नई दिल्ली धोखा या छल करना एक बहुत ही कमजोर व्यक्तित्त्व की निशानी है ,आध्यात्मिक दृष्टि से यह बहुत बड़ा पाप है ही ,साथ ही कानून की दृष्टि में यह एक दंडनीय अपराध है |प्रत्येक दृष्टि से यह अनुचित होते हुए भी आज का इन्सान बिना किसी भय के  दुनियादारी में सफल होने के लिए इसे आवश्यक मानने लगा है और दूसरों से धोखा या छल करता है अतः मैं इसे एक मनोरोग भी कहना चाहता हूँ | सरल व्यक्ति अवसाद में नहीं जा सकता ,अवसाद में कठिन व्यक्ति ही जाता है ,छल कपट कठिन व्यक्तित्त्व की निशानी है । सामान्यतः उदासीनता ,निराशा और अंतरोन्मुखता को अवसाद समझा जाता है किंतु वह ज्यादा गहरा नहीं होता थोड़ी सी प्रेरणा से उससे बाहर आया जा सकता है । अत्यधिक उत्साह ,अत्यधिक महत्त्वाकांक्षा और अत्यधिक बहिर्मुखता और आत्ममुग्धता बहुत गहरा अवसाद है जिससे बाहर आना बहुत कठिन होता है ।क्यों कि इस तरह के अवसाद की स्वीकृति बहुत कठिन होती है । छलिया और कपटिया व्यक्तित्त्व में ये लक्षण बहुतायत देखे जाते हैं । इस तरह के अवसाद का पता लगाना भी बहुत कठिन होता है और उस रोग का इल...

जैन स्तोत्र साहित्य अनुशीलन संगोष्ठी : एक झलक

जैन स्तोत्र साहित्य अनुशीलन संगोष्ठी : एक झलक  ●पूज्य निर्यापक श्रमण मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी मुनिराज के ससंघ सान्निध्य में अभिनंदनोदय तीर्थ ,क्षेत्रपाल जी ,ललितपुर (उ.प्र.) में श्री अखिल भारत वर्षीय दिगंबर जैन विद्वतपरिषद के तत्त्वावधान में दिनांक 11 से 13 नवंबर 2022 तक जैन स्तोत्र साहित्य अनुशीलन विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ ।  ● संगोष्ठी में तीनों दिन विद्वानों ने प्रातः 6 बजे से रात्रि 10 बजे तक जिनेन्द्र पूजन अभिषेक , प्रातःकालीन तकनीकी सत्र, दोपहर तकनीकी सत्र,शंका समाधान कार्यक्रम ,रात्रि तकनीकी सत्र में लगातार भाग लिया ।  सुबह से रात तक जैन स्तोत्र साहित्य ही चर्चा का विषय बना रहा ।  ● पूज्य मुनि श्री ने सभी सत्रों में अपना सान्निध्य प्रदान किया तथा आवश्यकतानुसार  मध्य में एवं अंत में अपने अनुसन्धानयुक्त समीक्षात्मक उद्बोधनों से सभी विद्वानों का मार्ग प्रशस्त किया ।  ● विशेषता यह रही कि शोध पत्रों की संख्या अधिक थी फिर भी लगभग 10 मिनट सभी को प्रस्तुति हेतु दिए गए और उसके बाद उस शोध लेख पर चर्चा का पूरा अवसर दिया गय...

प्राकृत पत्रकारिता

प्राकृत पत्रकारिता : एक अनुभव जिस प्रकार *उदंत मार्तण्ड* हिंदी का प्रथम समाचार पत्र माना जाता है जो कि जुगलकिशोर सुकुल ने 30 मई 1826 को कलकत्ता से पहली बार प्रकाशित किया था । संस्कृत भाषा का प्रथम अखबार *सुधर्मा* श्री के.वी.संपत कुमार ने 14 जुलाई 1970 को मैसूर से प्रारम्भ किया था ।  उसी प्रकार प्राकृत भाषा में प्रकाशित होने वाला  *पागद भासा* नामक अखबार अब तक का प्रथम प्रयास है । यह भारत सरकार के समाचारपत्र पंजीयन कार्यालय में प्राकृत भाषा के प्रथम समाचार पत्र के रूप में पंजीकृत हुआ है । आरम्भ में भारत सरकार के समाचारपत्र पंजीयन कार्यालय ने इसे DELPRA00001जैसा Title code जारी किया ,क्यों कि उनके रिकॉर्ड के अनुसार इस भाषा में आज तक कोई भी समाचार पत्र प्रकाशित नहीं हुआ था । मीडिया के क्षेत्र में भारत की प्राचीन भाषा प्राकृत का प्रयोग ,उसमें समाचार लेखन अब तक की सबसे पहली घटना है । यही कारण है कि विद्वानों के बीच प्राकृत के विभिन्न भेदों के क्रम में अब मीडिया प्राकृत की भी चर्चा होने लगी है । इस पत्रिका का पहला प्रवेश अंक 13 अप्रैल 2014 में महावीर जयंती के दिन कुन्दकुन...