समता : सामाजिक विषमता का समाधान प्रो अनेकांत कुमार जैन समकालीन दर्शनों में समतावाद महत्त्वपूर्ण स्थान रखता हैं | समाज में साम्यवाद की स्थापना में यह बहुत बड़ा सिद्धांत बनकर सामने आया है | इस दर्शन पर विचार करते समय कुछ महत्त्वपूर्ण सवाल उत्पन्न होते हैं , [1] जैसे - 1. किस बात की समानता होनी चाहिए ’ तथा 2. ‘ किनके बीच समानता होनी चाहिए। ’ 3. ‘ किन चीज़ों की समानता होनी चाहिए ?’ हालाँकि इन सवालों से जुड़े वाद-विवाद के संबंध में कोई आख़िरी फ़ैसला नहीं हुआ है पर आम तौर पर विद्वानों ने समानता को मापने के तीन आधारों के बारे में बताया है [2] – 1. कल्याण की समानता , 2. संसाधनों की समानता और 3. कैपेबिलिटी या सामर्थ्य की समानता। १.कल्याण की समानता कल्याण के समतावाद का सिद्धांत मुख्य रूप से उपयोगितावादियों के विचार से जुड़ा है। यहाँ ‘ कल्याण ’ को मुख्य रूप से दो तरीकों से समझा जाता है - · पहले तरीके को जेरेमी बेंथम जैसे क्लासिकल उपयोगितावादी चिंतकों ने आगे बढ़ाया। इनके अनुसार , किसी व्यक्ति द्वारा अनुभव किये गये दर्द या कष्ट की तुलन