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दिल्ली में सिर्फ दिल्ली विश्वविद्यालय ( DU) नहीं है

(कैरियर कॉउंसलिंग) *दिल्ली में सिर्फ DU नहीं है*  प्रो अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली   दिल्ली में इस बार स्नातक और परास्नातक में प्रवेश में हज़ारों छात्र और छात्राएं इसलिए असफल रहे हैं क्यों कि CUET में फॉर्म भरते समय विश्वविद्यालय और कॉलेज की प्रेफरेंस लिस्ट में उन्होंने बहुत कम विकल्प रखे थे और अज्ञानता के कारण कुछ बहुत ज्यादा प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों के नाम ही रखे थे ।  उनकी कट ऑफ इतनी ज्यादा चली गई कि कई होनहार विद्यार्थियों को उनमें से किसी भी विश्वविद्यालय में प्रवेश ही नहीं मिला ,अतः अब वे वहां पत्राचार माध्यम में प्रवेश की कोशिश कर रहे हैं ।  ऐसे विद्यार्थी सिर्फ सामाजिक क्रेज और ब्रांडिंग के चक्कर में अपना कैरियर दांव पर लगा देते हैं ।  कई लोगों को पता ही नहीं है कि दिल्ली में DU और JNU के अलावा भी अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं जहां शिक्षा की एक खूबसूरत दुनिया है, वहाँ न सिर्फ एक अच्छा कैंपस है बल्कि सुविधाएं भी ज्यादा हैं । फीस भी सबसे कम है और अच्छी संख्या में छात्र वृत्तियां भी हैं ।  भारत सरकार विशेष योजनाएं चला कर इन्हें बहुत उपयोगी और अधिक सुविधा जनक भी बना रह

वस्तु का भेदाभेदात्मक स्वभाव(लघीयस्त्रय के विशेष सन्दर्भ में )

वस्तु का भेदाभेदात्मक स्वभाव (लघीयस्त्रय के विशेष सन्दर्भ में ) प्रो अनेकांत कुमार जैन  जो वस्तु जैसी है उसका जो स्वभाव है उसे उसी रूप से जान लेना और मान लेना ही सम्यज्ञान और सम्यग्दर्शन है | प्रमेयात्मक वस्तु के स्वरुप की चर्चा में अनेक दार्शनिक मतवाद प्रसिद्ध हैं | कोई उसे नित्य कहता है तो कोई अनित्य कहता है | कोई भेद स्वरुप व्याख्यायित करता है तो कोई उसे अभेद स्वरुप ही समझता और कहता है | इसका कारण यह समझ में आता है कि एकान्तवाद के कारण अन्य दार्शनिक वस्तु स्वरुप का वास्तविक स्पर्श चाहते हुए भी नहीं कर पा रहे हैं | जैनाचार्यों का मानना है कि हमारा मुख्य उद्देश्य सत्य का साक्षात्कार करना है अन्य मतवादों का खंडन नहीं,हम वस्तु के वास्तविक स्वरुप को खोजना चाहते हैं ,उसे जानना चाहते हैं | इस स्वरुप अनुसन्धान में यदि कोई समस्या आती है तो उसके समाधान में हम अन्य दार्शनिकों की भूलों या कमियों की समीक्षा करते हैं | वीतरागी आचार्य अन्य दार्शनिकों को उस व्यापक अनेकांत दृष्टि से परिचित करवाना चाहते हैं जिसके अभाव में वे वस्तु के सिर्फ एक पक्ष की व्याख्या कर पा रहे हैं,और अपने पक्ष के दुराग्रह के

आज के युग में दान : एक चिंतन

भारतीय ज्ञान परंपरा की उदार दृष्टि (जैन ज्ञान परंपरा के सन्दर्भ में )

  भारतीय  ज्ञान परंपरा की उदार दृष्टि (जैन ज्ञान परंपरा के सन्दर्भ में ) प्रो .डॉ अनेकांत कुमार जैन भगवान् महावीर के उपदेशों में सभी जीवों के प्रति करुणाभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है |आचरण में अहिंसा, विचारों में अनेकांत,वाणी में स्याद्वाद और जीवन में अपरिग्रह –इस प्रकार का चिंतन ही एक स्वस्थ्य व्यक्ति और शांतिपूर्ण समाज के लक्ष्य को पूरा कर सकता है | जैन धर्म दर्शन संस्कृति साहित्य और समाज इसी उदारवादी विचारधारा के कारण अनंतकाल पूर्व से आज तक समृद्ध रूप से विद्यमान है | भगवान् महावीर ने जो ज्ञान समाज के कल्याण के लिए दिया उसका एक विशाल साहित्य प्राकृत आगमों के रूप में हमें उपलब्ध होता है जिसे द्वादशांग कहते हैं | जैन आचार्य परंपरा ने उनकी वाणी के हार्द को प्राकृत,संस्कृत,अपभ्रंश,हिंदी,कन्नड़,तमिल आदि अनेक भाषाओँ में , अनेक विधाओं में तथा अनेक विषयों पर लाखों की संख्या में साहित्य की सर्जना करके प्रत्येक भाषा के साहित्य को तो समृद्ध किया ही साथ ही तत्वज्ञान और समाज कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त किया | साहित्य को कभी सीमा में नहीं बाँधा जा सकता यही कारण है कि जैन साहित्य में उदार तथा स