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सावधान ! सूचना क्रांति बनेगी अवसाद का सबसे बड़ा कारण

एक संत तो निकल लिए बाकी का क्या ?  (सावधान ! सूचना क्रांति बनेगी अवसाद का सबसे बड़ा कारण)                                                            - आचार्य अनेकांत ,नई दिल्ली अवसाद की अनेक वजहों में एक बड़ी वजह स्वाभाविक अभिव्यक्ति में आने वाली लगातार कमी भी है | आपको जब गुस्सा आ रहा हो और आप सिर्फ इसीलिए अभिव्यक्त न कर पायें कि कोई फ़ोन रिकॉर्ड कर लेगा ,विडियो बना लेगा,सी सी टी वी में कैद हो जायेगा और यह सब कुछ बिना वजह उनके सामने उस समय पेश किया जायेगा जिनसे जिस वक्त गुस्सा छोड़कर आपने किसी तरह सम्बन्ध अच्छे बना लिए हैं और सब कुछ शांति से  चल रहा है | तब इन्हीं कुछ कारणों से लोग मित्रों ,रिश्तेदारों तक से अपना ह्रदय खोलने में घबड़ा रहे हैं | इस प्रकार की प्रवृत्ति परिवार,समाज,कार्यालय ,शिक्षा संस्थान आदि में एक कृत्रिम वातावरण का निर्माण कर रही है जहाँ किसी के साथ खुल कर हंसना बोलना रोना चिल्लाना आदि सारे मनो भाव स्वाभाविक रूप से अभिव्यक्त न होने के कारण लोगों को कुंठाग्रस्त कर रहे हैं | संवादहीनता की वृद्धि - हमें अगर किसी से कोई समस्या है और अगर हम किसी कारण से उससे न क

हमने दूसरे समुदाय से क्या सीखा ? और क्या सिखाया ?

इस घटना के माध्यम से मैं कुछ कहना चाहता हूँ ...................... हमने दूसरे समुदाय से क्या सीखा ?और उन्हें क्या सिखाया ?                                          -  डॉ अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com  मैं आपको एक नयी ताज़ा सत्य घटना सुनाना चाहता हूँ और उसके माध्यम से बिना किसी निराशा के कुछ कहना भी चाहता हूँ | शायद आप समझ जाएँ |  अभी मेरा दिल्ली में लोधी कॉलोनी में आयोजित एक सर्व धर्म संगोष्ठी में जाना हुआ | जैन धर्म की तरफ से मुझे प्रतिनिधित्व करना था | वह एक राउंड टेबल परिचर्चा थी जिसमें भाषण देने देश के विभिन्न धर्मों के लगभग २४-२५ प्रतिनिधि पधारे थे | अध्यक्ष महोदय ने सभा प्रारंभ की और सभी को वक्तव्य देने से पहले एक शर्त लगा दी कि आपको अपने धर्म के बारे में कुछ नहीं कहना है | आपको अपने से इतर किसी एक धर्म के समुदाय से आपने कौन सी अच्छी बात सीखी सिर्फ यह बताना है | जाहिर सी बात है मेरी तरह सभी अपने धर्म की विशेषताएं बतलाने के आदी थे और अचानक ये नयी समस्या ? खैर सभी ने खुद को किसी तरह तैयार किया इस अनोखे टास्क के लिए | जो हिन्दू धर्म का विद्वान् था उसने

भारतीय संस्कृति के आराध्य तीर्थंकर ऋषभदेव - डा. अनेकान्त कुमार जैन

ऋषभदेव जयंती पर विशेष भारतीय संस्कृति के आराध्य तीर्थंकर ऋषभदेव डा . अनेकान्त कुमार   जैन मनुष्य के अस्तित्व के लिए रोटी , कपड़ा , मकान जैसे पदार्थ आवश्यक हैं , किंतु उसकी आंतरिक सम्पन्नता केवल इतने से ही नहीं होती। उसमें अहिंसा , सत्य , संयम , समता , साधना और तप के आध्यात्मिक मूल्य भी जुड़ने चाहिए। भगवान् ऋषभदेव ने भारतीय संस्कृति को जो कुछ दिया है , उसमें असि , मसि , कृषि , विद्या , वाणिज्य और शिल्प इन छह कर्मो के द्वारा उन्होंने जहां समाज को विकास का मार्ग सुझाया वहीं अहिंसा , संयम तथा तप के उपदेश द्वारा समाज की आंतरिक चेतना को भी जगाया। जन - जन की आस्था के केंद्र तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म चैत्र शुक्ला नवमी को अयोध्या में हुआ था तथा माघ कृष्णा चतुर्दशी को इनका निर्वाण कैलाश पर्वत से हुआ था।इन्हें आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है .इनके पिता का नाम नाभिराय तथा इनकी माता का नाम मरुदेवी था. कुलकर नाभिराज से ही इक्क्षवाकू कुल की शुरुआत मानी जाती है। इन्हीं के नाम पर भारत का एक प्राचीन नाम