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पहले धर्म क्षेत्र में हो अणुव्रतों का पालन

प्रो डॉ. अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली   अन्यक्षेत्रे कृतं पापं पुण्यक्षेत्रे विनश्यति | पुण्यक्षेत्रे कृतं पापं   वज्रलेपो भविष्यति ||   अन्य क्षेत्र में किया हुआ पाप पुण्य क्षेत्र में आराधना करने पर संभवतः विनाश को प्राप्त हो भी सकता है किन्तु पुण्य क्षेत्र में किया गया पाप बज्र लेप के समान हो जाता है जिसका नाश करना बहुत कठिन हो जाता है | यह सुभाषित अर्थ सहित प्रत्येक मंदिर , तीर्थ , स्थानक , धर्मशाला आदि सभी धर्म क्षेत्रों में अनिवार्य रूप से लिखवा देना चाहिए | पांच अणुव्रत हमारे जीवन के हर क्षेत्र में पालने योग्य हैं किन्तु उनका धर्म क्षेत्र में पालन अनिवार्य है | जहाँ से हमें इन अणुव्रतों की शिक्षा मिली है उस क्षेत्र में ही यदि उसका पालन नहीं किया जा सकता तो देश दुनिया को उसके पालन की शिक्षा देना व्यर्थ हो जाएगा | धर्म क्षेत्र में हम अणुव्रतों का पालन चाहें तो आसानी से कर सकते हैं यह समझकर कि जाने अनजाने कहीं हम   बहुत बड़ा पाप तो नहीं कर रहे | आये हैं पुण्य के लिए और कहीं पाप की गठरी तो नहीं बाँध रहे | अणुव्रत  अहिंसासमाणुभूइ अकत्ता परदव्वस्स खलु सच्चं ।