भटकते प्रवचन और प्रवचनकार ! प्रो अनेकान्त कुमार जैन आज जिन धर्म में प्रवचन का स्वरूप सभी को समझना बहुत आवश्यक है । धवला में आचार्य वीरसेन स्वामी लिखते हैं - सिद्धंतो बारहंगाणि पवयणं, प्रकृष्टं प्रकृष्टस्य, वचनं प्रवचनमिति व्युत्पत्तेः । ...(धवला 8/3,41/90/1) सिद्धांत या बारह अंगों का नाम प्रवचन हैं, क्योंकि, ‘प्रकृष्ट वचन प्रवचन, या प्रकृष्ट (सर्वज्ञ) के वचन प्रवचन हैं, ऐसी व्युत्पत्ति है । गोम्मटसार की टीका में लिखा है - प्रकृष्टं वचनं यस्यासौ प्रवचनः आप्तः, प्रकृष्टस्य वचनं प्रवचनं-परमागमः, प्रकृष्टमुच्यते - प्रमाणेन अभिधीयते इति प्रवचनपदार्थः, इति निरुक्त्या प्रवचनशब्देन तत्त्रयस्याभिधानात् । (गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/18/42/17) प्रकृष्ट हैं वचन जिसके ऐसे आप्त प्रवचन कहलाते हैं, अथवा प्रकृष्ट अर्थात् उस आप्त के वचनरूप परमागम को प्रवचन कहते हैं, अथवा प्रकृष्ट अर्थात् प्रमाण के द्वारा जिनका निरूपण किया जाता है ऐसे पदार्थ प्रवचन हैं । इस प्रकार निरुक्ति के द्वारा प्रवचन के आप्त, आगम और पदार्थ ये तीन अर्थ भी होते हैं । भगवती आराधना की टीका में ...