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संदेश

मई, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भविष्य के संकेत को देखें (जैन मुनियों से अभद्रता की घटना )

*भविष्य के संकेत को देखें* उत्तराखंड में पूज्य दिगम्बर संतों के साथ एक यूट्यूबर युवक द्वारा जो अभद्र व्यवहार किया गया ,उसके खिलाफ जो विश्व जैन संगठन ने त्वरित कार्यवाही की है वह काबिले तारीफ है ।  इस तरह की कार्यवाही से एक संदेश आम जनता में जाता है कि हमें इस तरह का आचरण नहीं करना चाहिए ।  आश्चर्य है कि इस तरह के प्रकरणों को पूर्व स्थापित बड़ी संस्थाएं गंभीरता से संज्ञान में नहीं ले पाती हैं और त्वरित कार्यवाही भी नहीं कर पा रही हैं ।  वह वीडियो मैंने भी देखा है ।  उसमें कुछ बातें निकल कर हैं - 1. उन दोनों  संतों के साथ कोई श्रावक नहीं दिख रहे ।  2. क्या संघ में दो ही मुनि साथ थे ,या अन्य मुनि गण भी थे और पीछे से आ रहे थे । 3. बिना श्रावकों के ,बिना ध्वजा के कोई भी विहार न हो यह जिम्मेदारी समाज को उठानी ही होगी । 4. दिगम्बर जैन मुनि वेश के बारे में अभी भी आम जन में बहुत भ्रांतियां हैं । इस विषय में जनजागरण हेतु विशेष अभियान चलाने चाहिए ।  5. दिगम्बर जैन मुनि चर्या संघ और धर्म की सकारात्मक जानकारी देने वाले सरल और संक्षिप्त ,प्रभावशाली और भाव...

एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता नहीं है

एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता नहीं है वास्तव में एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता नहीं है । उनमें परस्पर निमित्त नैमित्तिक संबंध अनादि से हैं और निमित्त को व्यवहार से कर्ता कह दिया जाता है । 'यः परिणमति स कर्ता' ,  प्रत्येक द्रव्य अपने अपने स्वभाव रूप ही परिणमन करते हैं ,अतः वे कर्ता हैं और पर में कुछ भी परिणामित नहीं होते अतः उनके वे कर्ता नहीं हैं। प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र है । तिण्हं सद्दणयाणं...ण कारणस्स होदि; सगसरूवादो उप्पण्णस्स अण्णेहिंतो उप्पत्तिविरोहादो। तीनों शब्द नयों की अपेक्षा कषायरूप कार्य कारण का नहीं होता, अर्थात् कार्यरूप भाव-कषाय के स्वामी उसके कारण जीवद्रव्य और कर्मद्रव्य कहे जा सकते हैं, सो भी बात नहीं है, क्योंकि कोई भी कार्य अपने स्वरूप से उत्पन्न होता है। इसलिए उसकी अन्य से उत्पत्ति मानने में विरोध आता है। (कषायपाहुड़/1/283/318/4) कुव्वं सभावमादा हवदि कित्ता सगस्स भावस्स। पोग्गलदव्वमयाणं ण दु कत्ता सव्वभावाण।।    अपने भाव को करता हुआ आत्मा वास्तव में अपने भाव का कर्ता है, परंतु पुद्गलद्रव्यमय सर्व भावों का कर्ता नहीं है। (प्रवचनसार/184) भावो कम्मणि...

सुधरे मतदाता,नेता मतदाता से , राष्ट्र स्वयं सुधरेगा