सादर प्रकाशनार्थ ‘ मिच्छामि दुक्क डं’ और ‘ पर्युषण पर्व ’ कहना गलत नहीं है’ प्रो.अनेकांत कुमार जैन अध्यक्ष-जैनदर्शन विभाग श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ नई दिल्ली -१६, drakjain2016@gmail.com वर्तमान में दिगंबर जैन समाज में व्यवहार में मूल प्राकृत आगमों के शब्दों के प्रायोगिक अभ्यास के अभाव कई प्रकार की भ्रांतियां उत्पन्न हो रही हैं जिस पर गम्भीर चिन्तन मनन आवश्यक है | मैं इस विषयक में कुछ स्पष्टीकरण देना चाहता हूँ - १. एक भ्रान्ति यह फैल रही है कि ‘ मिच्छामि दुक्क डं’ शब्द श्वेताम्बर परंपरा से आया है |कारण यह है कि श्वेताम्बर श्रावकों में मूल प्राकृत के प्रतिक्रमण पाठ पढने का अभ्यास ज्यादा है | दिगंबर परंपरा में यह कार्य मात्र मुनियों तक सीमित है | दिगंबर श्रावक भगवान् की पूजा ज्यादा करते हैं ,कुछ श्रावक प्रतिक्रमण करते हैं तो हिंदी अनुवाद ही पढ़ते हैं ,मूल प्राकृत पाठ कम श्रावक पढ़ते हैं अतः ‘ मिच्छामि दुक्क डं’ का प्रयोग श्वेताम्बर समाज में ज्यादा प्रचलन में आ गया जब...