उत्कृष्ट योग की अवस्था है सल्लेखना डॉ अनेकांत कुमार जैन एक सैनिक देश की रक्षा के संकल्प के साथ सीमा पर जाता है ,मरने के संकल्प के साथ नहीं ,यद्यपि मृत्यु भी संभावित है ,किन्तु उसका भय नहीं है ,वह उसके लिए भी तैयार है,मृत्यु की कीमत पर भी वह देश की रक्षा करता है |वह युद्ध में मर जाता है तो उसे शहीद कहते हैं,वीर कहते हैं|उसे कायर या आत्महत्या नहीं कहते | ठीक उसी प्रकार साधक जीवन भर भोगों से युद्ध करता है| वह पाँचों इन्द्रियों को जीतकर आत्मा की आराधना करने का पुरुषार्थ करता है |और कोई कितना भी कर ले “अमर” तो है नहीं ,कभी न कभी मृत्यु तो आती ही है| मृत्यु का भय सभी को होता है ,इसलिए कहा गया जो निश्चित है उससे डरो मत बस यह ख्याल रखो कि तुम्हारा यह डर कहीं तुम्हारी जीवन भर की संयम तपस्या को भंग न कर दे ,इसलिए मृत्यु भय से अंत समय तक व्रत संयम को मत छोड़ो , अंत समय तक पूरे होश में साधना करते रहो ,व्रत मत तोड़ो उसे और मजबूत बना लो,अंत तक जियो,संयम तोड़ कर मौत से पहले मत मरो,बल्कि समता पूर्वक मृत्यु से युद्ध करो |यदि तुमने अपनी समता छोड़ दी,व्याकुल हो गए तो मृत्यु जीत जाएगी...