सादगी और संतोष के बिना ईमानदारी कठिन है अनेकांत कुमार जैन भ्रष्टाचार के विरोध में चारो तरफ आंदोलन हो रहे हैं.जो स्वयं भ्रष्ट हैं वे भी इसका विरोध सिर्फ इसलिए कर रहे हैं कि उन्हें भी एक अदद ईमानदार दोस्त तो चाहिए ही. हम कानून बना सकते हैं ,बनना भी चाहिए.लेकिन मैंने देखा है कि जो स्वयं ईमानदार नहीं है उसे दुनिया की कोई भी ताकत ईमानदार नहीं बना सकती.कानून का डर भी सीधे लोगों को ही होता है.दुष्ट प्रकृति के लोग फिर भी नहीं सुधरते. स्वाभाविक ईमानदारी के लिए हमें एक बार फिर उन्हीं पुराने मूल्यों कि तरफ देखना ही पड़ेगा जिन्हें हमनें पुरानी और दकियानूसी बातें कहा कर बहुत पीछे छोड़ दिया हैं . हम केवल दो बातों को लें- सादगी और संतोष. सादगी का मूल्य हम भूल चुके हैं.आज एक क्लर्क भी महंगे कपड़े,महँगी गाड़ी,ऊँची ईमारत,हवाई यात्रा आदि आदि की चाहत तो रखता ही है, उसके लिए प्रयास भी करता है.इसके लायक वेतन तो है नहीं तो बेईमानी करता है.सादगी का सिद्धांत तो यह है कि करोड़पति भी हो तो भी जीवन सादा हो. उसी में सुख माने. संतोष भी नहीं रखेंगे तो इच्छाएं तो अनंत होती हैं.सादगी रहेगी तो जरूरतें कम से कम होंगी,स...