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अध्यात्म योगी भगवान महावीर

अध्यात्म योगी भगवान महावीर                               डा. अनेकान्त कुमार जैन           जैन परंपरा में आठ कर्मो में से निज पुरुषार्थ के द्वारा जो चार घातिया कर्मोको समाप्त कर देते हैं वे अरिहंत परमात्मा बन जाते हैं। उसमें भी जिन्हें तीर्थकरनाम कर्म की प्रकृति का विशेष पुण्योदय होता है वे धर्म तीर्थ का संचालन करते हैं और सभी जीवों को स्व - पुरुषार्थ द्वारा आत्म कल्याण का मार्ग बतलाते हैं। इनकी संख्या चौबीस है। पौराणिक मान्यता में इन चौबीसों तीर्थकरों का विशाल जीवन चरित उपलब्ध है। ईसा से लगभग छह सौ वर्ष पूर्व भारत की धरती पर भगवान महावीर का जन्म साधना के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी युग की शुरुआत थी। चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन वैशाली नगर के राजा ज्ञातृवंशी कश्यप गोत्रीय क्षत्रिय सिद्धार्थ तथा माता त्रिशला के राजमहल में बालक वर्धमान के रूप में एक ऐसे पुत्र ने जन्म लिया जिसने तत्कालीन प्रसिद्ध धर्म की व्याख्याओं में अध्यात्म को सर्वोपरि बतलाकर संपूर्ण चिन्तन धारा को एक नयी दिशा दी। इनका जन्म वैशाली

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साधना की सुरक्षा से भी जुड़ा है रक्षाबंधन

             साधना की सुरक्षा से भी जुड़ा है रक्षाबंधन डा . अनेकान्त कुमार जैन रक्षा शब्द सुनते ही कई बातें सामने आने लगती हैं. राष्ट्र और धर्म की रक्षा ,जीवों की रक्षा ,समाज और परिवार की रक्षा,भाषा और संस्कृति की रक्षा   आदि आदि . रक्षाबंधन पर्व भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। आम तौर पर भाई के द्वारा बहन की रक्षा और इसके लिए बहन के द्वारा भाई को रक्षा सूत्र या राखी बांधने का रिवाज ही रक्षा बंधन पर्व माना जाता है.किन्तु यह बहुत कम लोग जानते हैं कि भाई बहन के आलावा भी प्राचीन भारतीय संस्कृति में यह कई कारणों से मनाया जाता है. इस पर्व से सम्बन्धित अनेक कहानियां प्रसिद्ध हैं।   जैन धर्म में भी यह पर्व अत्यन्त आस्था और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यहां यह त्योहार मात्र सामाजिक ही नहीं वरन् आध्यात्मिक भी है। इस त्योहार का संबंध सिर्फ गृहस्थों से ही नहीं , मुनियों से भी है। जैन पुराणों के अनुसार , उज्जयनी नगरी में श्री धर्म नाम का राजा राज्य करता था। उसके चार मन्त्री थे जिसका नाम क्रमश : बलि ,