दसलक्षण महापर्व(१९ /९/२०१२ से २८/२०१२ तक ) पर विशेष लेख-सादर प्रकाशनार्थ आत्म संयम का पर्व है दसलक्षण महापर्व-डा.अनेकान्तजैन प्राय: प्रत्येक पर्व का संबंध किसी न किसी घटना, किसी की जयंती या मुक्ति दिवस से होता है। दशलक्षणमहापर्व का संबंध इनमें से किसी से भी नहीं है क्योंकि यह स्वयं की आत्मा की आराधना का पर्व है। जैन परम्परा में इन दिनों श्रावक श्राविकायें मुनि आर्यिकायें पूरा प्रयास करते हैं कि अपनी आत्मानुभूति को पा जायें; उसी में डूबें तथा उसी में रम जायें। उत्तम क्षमा, मार्दव, अर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मïचर्य या शुद्धात्मा का स्वभाव है किन्तु हम अपने निज स्वभाव को भूलकर परभाव अर्थात् विभाव में डूबे रहते हैं। जैन धर्म में सारे सांसारिक प्रंपचों की अपेक्षा सम्यग्दर्शन (श्रद्धा), सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र को ही श्रेष्ठ तथा सुखी होने का रास्ता माना गया है। यह माना गया है कि सच्चा सुख प्राप्त करने के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ-साथ सही ज्ञान तथा जीवन में सही चरित्र भी होना चाहिए। कोरी श्रद्धा, कोरा ज्ञान और कोरा चरित्र कभी भी लक्ष्य की प्राप्ति नहीं क...