भारतमंडपम में महावीर जन्मोत्सव रविवार दिनाँक 21/04/24 तीर्थंकर महावीर जन्मकल्याणक महोत्सव और उनके 2550 निर्वाण महोत्सव के उद्घाटन समारोह के कारण पहली बार भारतमंडपम् जाने का अवसर प्राप्त हुआ । जैन धर्म के सभी संप्रदायों ने एक जुट होकर संस्कृति मंत्रालय के साथ मिलकर इस कार्यक्रम को अत्यंत अनुशासन एवं गरिमा पूर्ण तरीके से सम्पन्न किया । इस कार्यक्रम के प्रमुख श्रद्धा व आकर्षण का केंद्र तीर्थंकर भगवान् महावीर का अनेकांत और अहिंसा सिद्धांत रहा जिसे वहां उपस्थित सभी साधु संतों और साध्वियों सहित आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने वक्तव्यों में शानदार तरीके से अभिव्यक्त किया । 2550 निर्वाण महोत्सव मनाने हेतु आचार्य प्रज्ञसागर जी ने उन दिनों समाज को जगाया जब समाज को इसकी खबर ही नहीं थी ,अतः निश्चित रूप से इसकी मुख्य प्रेरणा का श्रेय उन्हें जाता है । उन्होंने सभी संप्रदायों को जोड़ा और इस कार्य की प्रेरणा आज से दो वर्ष पूर्व से ही देना प्रारंभ कर दिया था । संतों साध्वियों ने प्रधान सेवक को अपना आशीर्वाद प्रदान किया जो जरूरी था किंतु उसमें भी थोड़ा अतिरेक के दर्शन हुए , साधु संतों को भ
मेरी आत्मकथा - तीर्थंकर भगवान् महावीर अनेक लोगों ने मेरे जीवन के बारे में बहुत कुछ लिखा है ,वो सब मेरे ज्ञान का विषय बनता रहता है ,अपने बारे में कुछ न कहो तो जो अन्यान्य लेखक लिखते हैं उसे ही मानकर चलना पड़ता है । इसलिए मैं आज स्वयं ही अपनी कहानी कहना चाहता हूँ । मेरा जन्म और बचपन मुझे मेरी माँ ने ही बताया कि मेरे जन्म के पहले उन्होंने 16 प्रकार के मंगल स्वप्न देखे तो पिताजी ने कहा कि तुम भाग्यशाली हो ,तुम ऐसे पुत्र की माँ बनने वाली हो जो धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करेगा । मुझे पूरा स्मरण तो नहीं लेकिन जब मैं गर्भ में था तब माता पिता इस जगत के विषय भोगों के प्रति अरुचि रखते हुए , बहुत तत्त्व चर्चा करते थे और संसार और शरीर की क्षण भंगुरता का चिंतवन करते हुए , शाश्वत शुद्धात्मा की अनुभूति की बातें करते हुए प्रातः रोज ही उपवन में भ्रमण करते थे ।उनकी इन चर्चाओं का असर अनजाने ही मुझ पर उसी समय से होने लगा था । मेरी माँ प्रतिदिन णमोकार मंत्र की सुबह शाम कई जाप करती थीं , उस मंत्र की अंतर्ध्वनि और तरंगें मुझे उस समय अंदर ही अंदर महसूस होती थीं ।