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अस्त हो गया जैन संस्कृति का एक जगमगाता सूर्य


अस्त हो गया जैन संस्कृति का एक जगमगाता सूर्य

प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली

कर्मयोगी स्वस्ति श्री चारुकीर्ति भट्टारक स्वामी जी की समाधि उनके लोकोत्तर जीवन के लिए तो कल्याणकारी है किंतु हम सभी के लिए जैन संस्कृति का एक महान सूर्य अस्त हो गया है । 
स्वामी जी  के जीवन और कार्यों को देखकर लगता है कि वो सिर्फ जैन संस्कृति के लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति और समाज का सर्व विध कल्याण कर रहे थे । 

वे सिर्फ जैनों के नहीं थे वे सभी धर्म ,जाति और प्राणी मात्र के प्रति करुणा रखते थे और विशाल हृदय से सभी का कल्याण करने का पूरा प्रयास करते थे । 

उनके साथ रहने और कार्य करने का मुझे बहुत करीब से अनुभव है । मेरा उनसे अधिक संपर्क तब हुआ जब 2006 में महामस्तकाभिषेक के अवसर पर पहली बार श्रवणबेलगोला में विशाल जैन विद्वत सम्मेलन का आयोजन उन्होंने करवाया था । उसका दायित्व उन्होंने मेरे पिताजी प्रो फूलचंद जैन प्रेमी ,वाराणसी को  सौंपा।उस समय पिताजी अखिल भारतीय दिगंबर जैन विद्वत परिषद के अध्यक्ष थे । 

मेरे लिए यह अविश्वसनीय था कि उन्होंने मुझे इस सम्मेलन का सह संयोजक बनाया था । सम्मेलन के निमित्त मुझे कई कई दिनों तक श्रवणबेलगोला में रहने और स्वामी जी की कार्य शैली समझने का निकट से सौभाग्य प्राप्त हुआ । 

उन्हीं दिनों मेरे छोटे भाई डॉ अरिहंत जैन को उन्होंने श्रवणबेलगोला की डॉक्यूमेंटरी फ़िल्म बनाने का कार्य भी सौंपा था जो प्राकृत भाषा नाम से बहुत चर्चित है और वर्तमान में यू ट्यूब पर उपलब्ध है । 

मेरी मां डॉ मुन्नी पुष्पा जैन ,वाराणसी को उन्होंने ब्राह्मी लिपि पढ़ाने के लिए बुलाया और 2006 में वहाँ विद्यमान समस्त मुनि संघों ने उनसे ब्राम्ही लिपि का अध्ययन किया तथा बाद में 2018 महामस्तकाभिषेक के महिला सम्मेलन में उन्होंने मेरी माँ को ब्राह्मी सम्मान से सम्मानित भी किया । 

मेरी छोटी बहन डॉ इंदु जैन,नई दिल्ली को वे निरंतर प्राकृत अपभ्रंश काव्य गायन के लिए प्रोत्साहित करते थे जिसका सुफल यह रहा कि उसने नवीन संसद भवन के शिलान्यास में प्रधानमंत्री आदि अनेक लोगों के समक्ष प्रवचनसार की प्राकृत गाथाएं सुंदर शास्त्रीय संगीत के साथ प्रस्तुत करके जिन शासन का गौरव बढ़ाया ।

मेरे पिताजी से तो वे हमेशा तत्त्व चर्चा और सलाह मशविरा करते ही रहते थे । भगवान महावीर के 2600वें जन्मकल्याणक महोत्सव के अवसर पर वे वैशाली पधारे थे तब वाराणसी में उनका तीन दिन का प्रवास था । मुझे याद है पूरा एक दिन उन्होंने हमारे घर अनेकान्त-विद्या- भवनम् में बिताया ,वहीं आहार हुए और वहाँ पिताजी की दुर्लभ लाइब्रेरी में वे घंटों स्वाध्याय करते रहे । मेरे पिताजी ने भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित नवीन कृति श्रमण संस्कृति और वैदिक व्रात्य उन्हें ही समर्पित की है ।

 2018 के महामस्तकाभिषेक के अवसर पर कार्यक्रमों की जब शुरुआत हुई तो उन्होंने पहला कार्यक्रम एक विशाल संस्कृत विद्वत सम्मेलन आयोजित करके किया और उसमें भी मुख्य संयोजक मेरे पिताजी प्रो डॉ फूलचंद जैन जी को एवं संयोजक मुझे बनाया । उनकी अपेक्षा के अनुरूप हमने उसमें देश के संस्कृत जगत के चोटी के विद्वानों ,कुलपतियों को वहाँ बुलाया और इस कार्यक्रम को स्वामी जी ने 2018 के सभी कार्यक्रमों का मंगलाचरण कहा था । 
मैं आचार्य विद्यानंद मुनिराज जी की पावन प्रेरणा से प्राकृत भाषा का प्रथम अखबार पागद भासा 2014 से लगातार प्रकाशित कर रहा था । स्वामी जी उसके अंकों को देखकर बहुत प्रसन्नता व्यक्त करते थे और प्रोत्साहित करते थे । उन्होंने कहा कि हम इस अवसर पर ग्रंथ प्रकाशित करके भगवान का अक्षराभिषेक भी कर रहे हैं तुम पागद भासा का महामस्तकाभिषेक विशेषांक निकाल कर भगवान का प्राकृताभिषेक करो । मैंने उनकी कामना के अनुरूप परिश्रम पूर्वक वह विशेषांक मात्र प्राकृत भाषा में निकाला तो वे बहुत प्रसन्न हुए और एक अलग से स्वतंत्र समारोह करके उसका विमोचन करवाया । 
मुझे लगता है शायद ही समाज का कोई व्यक्ति ऐसा होगा जिसका स्वामी जी के साथ खुद का कोई अनुभव न हो । सभी को ऐसा लगता है वे उसके अत्यंत निकट थे । 

ऐसे परम उपकारी जिन शासन प्रभावक महापुरुष का वियोग सिर्फ जैन समाज के लिए नहीं बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए बहुत बड़ी क्षति है ।

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