सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

तीर्थंकर महावीर निर्वाण महामहोत्सव 2550

तीर्थंकर महावीर निर्वाण महामहोत्सव 2550

जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर चौबीसवें एवं अंतिम तीर्थंकर महावीर तक तीर्थंकरों की एक सुदीर्घ परंपरा विद्यमान है । 

भागवत पुराण आदि ग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख है कि इन्हीं ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश को 'भारत'  नाम प्राप्त हुआ । सृष्टि के आदि में कर्म भूमि प्रारम्भ होने के बाद यही ऋषभदेव जैनधर्म के प्रथम प्रवर्तक माने जाते हैं जिन्होंने अपनी पुत्री ब्राह्मी को लिपि विद्या और सुंदरी को गणित विद्या सिखाकर स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति की थी ।

इसी परंपरा के 
अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन विश्व के प्रथम गणतंत्र वैशाली गणराज्य के कुंडग्राम में ईसा की छठी शताब्दी पूर्व हुआ था ।युवा अवस्था में ही संयम पूर्वक मुनि दीक्षा धारण कर कठोर तपस्या के बाद उन्होंने केवलज्ञान( सर्वज्ञता ) प्राप्त की और अहिंसा,सत्य,अनेकान्त,अपरिग्रह , सर्वोदय आदि सिद्धांतों का उपदेश देते हुए जन जन को कल्याण का मार्ग बताया ।

उन्होंने
72 वर्ष की अवस्था में वर्तमान के बिहार राज्य के पावापुर क्षेत्र से कार्तिक कृष्णा अमावस्या दीपावली के दिन निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया । उनके निर्वाण दिन से ही भारत का सर्व प्राचीन संवत 'वीर निर्वाण संवत् ' भी तब से ही विख्यात हुआ । 

वर्ष 1974 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भगवान् महावीर का  2500वां निर्वाण महामहोत्सव एक वर्ष तक  तथा वर्ष 2000 में उनका जन्मकल्याणक महामहोत्सव भी एक वर्ष तक भारत सरकार तथा समाज के द्वारा बहुत उत्साह के साथ मनाया गया था । उस समय बहुत सारे ऐतिहासिक कार्य भी हुए थे । 

बहुत ही सौभाग्य का विषय है कि अब उनका 2550वां निर्वाण महामहोत्सव मनाने का सौभाग्य हमें प्राप्त हो रहा है । 

तीर्थंकर भगवान महावीर ने ' अप्पा सो परमप्पा ' कह कर प्रत्येक जीव और आत्मा को परमात्मा बनने का मार्ग बताया ।
 किसी भी जीव को किसी भी प्रकार से कष्ट पहुंचाना या उसका विचार भी करना महापाप है -  ऐसा भगवान महावीर का अहिंसा का सिद्धांत पूरी दुनिया के लिए एक महान संदेश है । 

शुद्ध आचार विचार और शाकाहार के सिद्धांत को जन जन तक पहुंचा कर उन्होंने प्रत्येक मनुष्य के जीवन को कल्याणकारी बनाने का महान कार्य किया और इसका बहुत व्यापक प्रभाव आज भी विद्यमान है । 

आज भी उनकी परंपरा के अनेक आचार्य ,उपाध्याय,मुनि,आर्यिका,साधु एवं साध्वी निरंतर तपस्या पूर्वक बिना किसी वाहन का प्रयोग किये नंगे पैर पद विहार करते हुए देश के नगर नगर गांव गांव में जीवन मूल्य,धर्म एवं संस्कृति की अलख जगाते हुए राष्ट्र उद्धार का कार्य कर रहे हैं ।

भगवान महावीर का  अनेकान्त-स्याद्वाद का सिद्धांत हम सभी को विरोधियों के भी साथ कैसे रहा जाता है और उनसे कैसे संवाद किया जाता है - यह सिखलाता है । 

भगवान महावीर ने भारतीय धर्म दर्शन और संस्कृति के विकास में अभूतपूर्व योगदान दिया और वीतराग भाव से संसार में रहकर दूसरों के कल्याण के साथ साथ स्वयं भी संसार से ऊपर उठकर आत्मानुभूति प्राप्त कर आत्मकल्याण करने की कला स्वयं जी कर सिखलाई ।

भगवान महावीर ने तत्कालीन लोक भाषा प्राकृत में अपने कल्याणकारी उपदेश इसलिए दिए ताकि जन जन इस ज्ञान को समझ सकें और अपना कल्याण कर सके। उनकी वाणी आज भी हज़ारों प्राकृत आगमों के रूप में उपलब्ध है जिसे जिनागम कहा जाता है । 

उनका मानना था कि सभी जाति और वर्ग के लोगों को धर्म करने और उसके द्वारा आत्मविकास करने का अधिकार है । 

उन्होंने तत्कालीन भारतीय धर्म तथा समाज में व्याप्त हिंसा , छुआछूत, जातिवाद आदि कुरीतियों की समीक्षा की और प्रत्येक वर्ग को धर्म और संस्कृति से जोड़ा और सर्वप्रथम अहिंसक राष्ट्र निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया । 

भगवान महावीर के सिद्धांतों और जैन जीवन शैली पर चलकर पर्यावरण प्रदूषण , आतंकवाद , महामारी,युद्ध आदि अनेक वैश्विक समस्याओं का समाधान प्राप्त किया जा सकता है ।

हमारा विश्वास है कि भारतीय संस्कृति के इन महान परोपकारी तीर्थंकर का 2550 वां निर्वाणकल्याणक महामहोत्सव भारत सरकार तथा भारतीय समाज के सभी वर्ग अनेक उपलब्धियों के साथ राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे मनाएंगे ।

प्रो अनेकान्त कुमार जैन
आचार्य - जैनदर्शन विभाग,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,नई दिल्ली 
09/03/2023
9711397716

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?

  युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?                                      प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली    युवावस्था जीवन की स्वर्णिम अवस्था है , बाल सुलभ चपलता और वृद्धत्व की अक्षमता - इन दो तटों के बीच में युवावस्था वह प्रवाह है , जो कभी तूफ़ान की भांति और कभी सहजता   से बहता रहता है । इस अवस्था में चिन्तन के स्रोत खुल जाते हैं , विवेक जागृत हो जाता है और कर्मशक्ति निखार पा लेती है। जिस देश की तरुण पीढ़ी जितनी सक्षम होती है , वह देश उतना ही सक्षम बन जाता है। जो व्यक्ति या समाज जितना अधिक सक्षम होता है। उस पर उतनी ही अधिक जिम्मेदारियाँ आती हैं। जिम्मेदारियों का निर्वाह वही करता है जो दायित्वनिष्ठ होता है। समाज के भविष्य का समग्र दायित्व युवापीढ़ी पर आने वाला है इसलिए दायित्व - ...

कुंडलपुर के तीर्थंकर आदिनाथ या बड़े बाबा : एक पुनर्विचार

*कुंडलपुर के तीर्थंकर आदिनाथ या बड़े बाबा : एक पुनर्विचार* प्रो अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com मैं कभी कभी आचार्य समन्तभद्र के शब्द चयन पर विचार करता हूँ और आनंदित होता हूँ कि वे कितनी दूरदर्शिता से अपने साहित्य में उत्कृष्ट से उत्कृष्ट शब्द चयन पर ध्यान देते थे । एक दिन मैं अपने विद्यार्थियों को उनकी कृति रत्नकरंड श्रावकाचार पढ़ा रहा था । श्लोक था -  श्रद्धानं परमार्थानामाप्तागमतपोभृताम् । त्रिमूढापोढमष्टांङ्गं सम्यग्दर्शनमस्मयम् ॥ इसकी व्याख्या के समय एक छात्रा ने पूछा कि गुरुजी ! देव ,शास्त्र और गुरु शब्द संस्कृत का भी है , प्रसिद्ध भी है ,उचित भी है फिर आचार्य ने उसके स्थान पर आप्त,आगम और तपस्वी शब्द का ही प्रयोग क्यों किया ? जब  कि अन्य अनेक ग्रंथों में ,पूजा पाठादि में देव शास्त्र गुरु शब्द ही प्रयोग करते हैं । प्रश्न ज़ोरदार था । उसका एक उत्तर तो यह था कि आचार्य साहित्य वैभव के लिए भिन्न भिन्न पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग करते हैं जैसे उन्होंने अकेले सम्यग्दर्शन के लिए भी अलग अलग श्लोकों में अलग अलग शब्द प्रयोग किये हैं ।  लेकिन...

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन- डॉ अनेकांत कुमार जैन

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन डॉ अनेकांत कुमार जैन जीवन की परिभाषा ‘ धर्म और कर्म ’ पर आधारित है |इसमें धर्म मनुष्य की मुक्ति का प्रतीक है और कर्म बंधन का । मनुष्य प्रवृत्ति करता है , कर्म में प्रवृत्त होता है , सुख-दुख का अनुभव करता है , और फिर कर्म से मुक्त होने के लिए धर्म का आचरण करता है , मुक्ति का मार्ग अपनाता है।सांसारिक जीवों का पुद्गलों के कर्म परमाणुओं से अनादिकाल से संबंध रहा है। पुद्गल के परमाणु शुभ-अशुभ रूप में उदयमें आकर जीव को सुख-दुख का अनुभव कराने में सहायक होते हैं। जिन राग द्वेषादि भावों से पुद्गल के परमाणु कर्म रूप बन आत्मा से संबद्ध होते हैं उन्हें भावकर्म और बंधने वाले परमाणुओं को द्रव्य कर्म कहा जाता है। कर्म शब्दके अनेक अर्थ             अंग्रेजी में प्रारब्ध अथवा भाग्य के लिए लक ( luck) और फैट शब्द प्रचलित है। शुभ अथवा सुखकारी भाग्य को गुडलक ( Goodluck) अथवा गुडफैट Good fate कहा जाता है , तथा ऐसे व्यक्ति को fateful या लकी ( luckey) और अशुभ अथवा दुखी व्यक्ति को अनलकी ( Unluckey) कहा जाता...