सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

हमारे अध्यात्म की हकीकत

हमारे अध्यात्म की हकीकत

प्रायः दर्शन और अध्यात्म में अत्यंत डूबने वाले श्रावकों को सामान्य पूजा पाठ, जाप, अभिषेक ,विधि विधान ,क्रियाएं आदि हल्की लगने लगती हैं ।

इस विचार का प्रभाव उनकी क्रियाओं पर भी पड़ता है । या तो वे बहुत औपचारिक हो जाती हैं या वे इनसे कुछ नहीं होता ,कोई आनंद नहीं आता फिर भी समाज परिवार के दिखाने को करना पड़ता है .. ऐसा भाव विकसित होने लगता है ।

जब तक मनोबल मजबूत रहता है , लौकिक अनुकूलता रहती है तब तक यह सब ठीक भी बैठ जाता है ।

लेकिन कभी कभी वास्तविकता यह रहती है कि हम जितना ऊंचा बोलते हैं या पढ़ते हैं उतनी गहराई में रहते नहीं हैं ।

कभी कभी विकट उतार चढ़ाव मनोबल भी कमजोर कर देते हैं , उस समय मानसिक स्थिति ही ठीक नहीं रहती तो तत्त्व चिंतन भी नहीं कर पाता है । समय ,ग्रह, नक्षत्र , कर्मोदय आदि अनेक निमित्त भारी पड़ने लगते हैं , ऐसे समय में पंच परमेष्ठि की शरण , उनकी भक्ति पूजा अभिषेक जाप आदि उसके उपयोग को अन्यत्र भ्रमण करने से रोकती है । उसके जीवन में प्रतिकूलता की बारिश में छतरी का कार्य करती हैं । उसका मनोबल मजबूत करने में निमित्त बनती है ।

यह उसी प्रकार है जिस प्रकार IIT में ऑटो मोबाइल इंजीनियरिंग का प्रोफेसर अपनी कार या स्कूटर सुधरवाने के लिए नुक्कड़ पर बैठे १६ साल के अनपढ़ छोटू मैकेनिक पर आश्रित इसलिए रहता है क्यों कि वह कार या स्कूटर का दर्शन अध्यात्म आविष्कार तो जानता है लेकिन उसे तत्काल ठीक करना हो तो प्रायोगिक रूप से अनुभवी छोटू की जुगाड़ू तकनीक ही काम आती है ।

प्रो अनेकांत कुमार जैन

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?

  युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?                                      प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली    युवावस्था जीवन की स्वर्णिम अवस्था है , बाल सुलभ चपलता और वृद्धत्व की अक्षमता - इन दो तटों के बीच में युवावस्था वह प्रवाह है , जो कभी तूफ़ान की भांति और कभी सहजता   से बहता रहता है । इस अवस्था में चिन्तन के स्रोत खुल जाते हैं , विवेक जागृत हो जाता है और कर्मशक्ति निखार पा लेती है। जिस देश की तरुण पीढ़ी जितनी सक्षम होती है , वह देश उतना ही सक्षम बन जाता है। जो व्यक्ति या समाज जितना अधिक सक्षम होता है। उस पर उतनी ही अधिक जिम्मेदारियाँ आती हैं। जिम्मेदारियों का निर्वाह वही करता है जो दायित्वनिष्ठ होता है। समाज के भविष्य का समग्र दायित्व युवापीढ़ी पर आने वाला है इसलिए दायित्व - ...

कुंडलपुर के तीर्थंकर आदिनाथ या बड़े बाबा : एक पुनर्विचार

*कुंडलपुर के तीर्थंकर आदिनाथ या बड़े बाबा : एक पुनर्विचार* प्रो अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com मैं कभी कभी आचार्य समन्तभद्र के शब्द चयन पर विचार करता हूँ और आनंदित होता हूँ कि वे कितनी दूरदर्शिता से अपने साहित्य में उत्कृष्ट से उत्कृष्ट शब्द चयन पर ध्यान देते थे । एक दिन मैं अपने विद्यार्थियों को उनकी कृति रत्नकरंड श्रावकाचार पढ़ा रहा था । श्लोक था -  श्रद्धानं परमार्थानामाप्तागमतपोभृताम् । त्रिमूढापोढमष्टांङ्गं सम्यग्दर्शनमस्मयम् ॥ इसकी व्याख्या के समय एक छात्रा ने पूछा कि गुरुजी ! देव ,शास्त्र और गुरु शब्द संस्कृत का भी है , प्रसिद्ध भी है ,उचित भी है फिर आचार्य ने उसके स्थान पर आप्त,आगम और तपस्वी शब्द का ही प्रयोग क्यों किया ? जब  कि अन्य अनेक ग्रंथों में ,पूजा पाठादि में देव शास्त्र गुरु शब्द ही प्रयोग करते हैं । प्रश्न ज़ोरदार था । उसका एक उत्तर तो यह था कि आचार्य साहित्य वैभव के लिए भिन्न भिन्न पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग करते हैं जैसे उन्होंने अकेले सम्यग्दर्शन के लिए भी अलग अलग श्लोकों में अलग अलग शब्द प्रयोग किये हैं ।  लेकिन...

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन- डॉ अनेकांत कुमार जैन

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन डॉ अनेकांत कुमार जैन जीवन की परिभाषा ‘ धर्म और कर्म ’ पर आधारित है |इसमें धर्म मनुष्य की मुक्ति का प्रतीक है और कर्म बंधन का । मनुष्य प्रवृत्ति करता है , कर्म में प्रवृत्त होता है , सुख-दुख का अनुभव करता है , और फिर कर्म से मुक्त होने के लिए धर्म का आचरण करता है , मुक्ति का मार्ग अपनाता है।सांसारिक जीवों का पुद्गलों के कर्म परमाणुओं से अनादिकाल से संबंध रहा है। पुद्गल के परमाणु शुभ-अशुभ रूप में उदयमें आकर जीव को सुख-दुख का अनुभव कराने में सहायक होते हैं। जिन राग द्वेषादि भावों से पुद्गल के परमाणु कर्म रूप बन आत्मा से संबद्ध होते हैं उन्हें भावकर्म और बंधने वाले परमाणुओं को द्रव्य कर्म कहा जाता है। कर्म शब्दके अनेक अर्थ             अंग्रेजी में प्रारब्ध अथवा भाग्य के लिए लक ( luck) और फैट शब्द प्रचलित है। शुभ अथवा सुखकारी भाग्य को गुडलक ( Goodluck) अथवा गुडफैट Good fate कहा जाता है , तथा ऐसे व्यक्ति को fateful या लकी ( luckey) और अशुभ अथवा दुखी व्यक्ति को अनलकी ( Unluckey) कहा जाता...