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दिल्ली के दिल दहला देने वाले रेप कांड के बाद आंदोलन की दिशा

                                                                लीक से हटें मगर भटकें नहीं 
                                                                  डॉ अनेकांत कुमार जैन
दिल्ली के युवाओं का जोश अच्छा है, काबिले तारीफ है,भारत के इतिहास में सामाजिक मुद्दों पर बिना किसी नेता या पार्टी के ये पहला आंदोलन है जब युवाओं ने अपना आक्रोश प्रगट किया है.किन्तु जोश के साथ होश भी रखना होगा .नहीं तो आंदोलन भटक जायेगा.युवा दुविधा में है.अहिंसक प्रतिकार को कोई सुनता नहीं.और प्रतिकार हिंसक होता है तो चारो तरफ से इन्हें ही दोषी करार दिया जाता है .फिर भी मैं अपने सभी आंदोलन कारी मित्रों से ये अनुरोध कर्ता हूँ कि अहिंसा का शाश्वत रास्ता ना छोड़े.हम सभी धैर्य से विचार करें -
१.कानून में रेप की कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिए.और वो मिलनी चाहिए .इसकी शरुआत रेप आरोपी नेताओं और पुलिस वालों से होना चाहिए.
२.फांसी जैसी सजा में तो आरोपी मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा और कहानी समाप्त.इसलिए सजा कड़ी से कड़ी हो यह मांग रखी जाये.
३.हिंसा के लिए भी सरकार दोषी है .यदि वह अहिंसक आन्दोलन से ही बात मान ले.हमारी सुन ले.चिंतित हो जाये.तो फिर लोग हिंसा क्यूँ करेंगे.अहिंसक प्रतिकार पर लाठी चलाएंगे तो हिंसा की शुरुआत कौन कर रहा है ?
४.अन्ना अब बूढ़े हो गए ,अरविन्द भी अब भरोसे का ना रहा.वो अब आम आदमी ना रहा.हमें अब कौन राह दिखाए ? अतः अब हममे से कोई नेता आना चाहिए जो इन सामाजिक आंदोलनों की अगुआई कर सके और राजनीति में ना जाये .
५.आंदोलन बंद नहीं होना चाहिए .लेकिन भटकना भी नहीं चाहिए .जो चुप हैं इस पीड़ा को भोगने का अगला क्रम उनका है . 'दिनकर'के शब्दों में - 

समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध। 
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध ।।  

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