सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कुरआन में अहिंसा सम्बन्धी आयतें

 

कुरआन में अहिंसा सम्बन्धी आयतें 

प्रो अनेकांत कुमार जैन 

मुझे कुरान देखने एवं पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। मक्तबा अल-हसनात, रामपुर (.प्र.) से सन् १९६८ में हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित कुरआन मजीद, जिनके मूल संदर्भों का प्रयोग मैंने किया है, को ही मैंने पढ़ा है। इसी ग्रन्थ से मैंने कुछ आयतें चयनित की हैं जो अहिंसा की भावना को व्यक्त करती हैं। प्रस्तुत हैं वे चयनित आयतें -

. अल्लाह ने काबा को शान्ति का स्थान बनाया है। (२८:५७)

. नाहक खून न बहाओ और लोगों को घर से बेघर मत करो। (:८४)

. दूसरे के उपास्यों को बुरा न कहो। (:१०८)

. निर्धनता के भय से औलाद का कत्ल न करो। (१७:३१)

.नाहक किसी को कत्ल न करो। मानव के प्राण लेना हराम है। (१७:३३)

. यतीम पर क्रोध न करो। (९३:)

. गुस्सा पी जाया करो और लोगो को क्षमा कर दिया करो। (:१३४),(२४:२२)

. बुराई का तोड़ भलाई से करो। (१३:२२), (२८:५४,५५), (४१:३५)

. कृतज्ञता दिखलाते रहो। (१४:)

१०. सब्र करना और अपराध को क्षमा करना बड़े साहस के काम हैं। (४२:४३)

११. दो लड़ पड़ें तो उनमें सुलह-सफाई करा दो। (४९:,१०)

१२. दुश्मन समझौता करना चाहे तो तुम समझौते के लिए हो जाओ। (:६१)

१३. जो तुमसे न लड़ें और हानि न पहुँचाये उससे, उसके साथ भलाई से व्यवहार करो। (६०:)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कुंडलपुर के तीर्थंकर आदिनाथ या बड़े बाबा : एक पुनर्विचार

*कुंडलपुर के तीर्थंकर आदिनाथ या बड़े बाबा : एक पुनर्विचार* प्रो अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com मैं कभी कभी आचार्य समन्तभद्र के शब्द चयन पर विचार करता हूँ और आनंदित होता हूँ कि वे कितनी दूरदर्शिता से अपने साहित्य में उत्कृष्ट से उत्कृष्ट शब्द चयन पर ध्यान देते थे । एक दिन मैं अपने विद्यार्थियों को उनकी कृति रत्नकरंड श्रावकाचार पढ़ा रहा था । श्लोक था -  श्रद्धानं परमार्थानामाप्तागमतपोभृताम् । त्रिमूढापोढमष्टांङ्गं सम्यग्दर्शनमस्मयम् ॥ इसकी व्याख्या के समय एक छात्रा ने पूछा कि गुरुजी ! देव ,शास्त्र और गुरु शब्द संस्कृत का भी है , प्रसिद्ध भी है ,उचित भी है फिर आचार्य ने उसके स्थान पर आप्त,आगम और तपस्वी शब्द का ही प्रयोग क्यों किया ? जब  कि अन्य अनेक ग्रंथों में ,पूजा पाठादि में देव शास्त्र गुरु शब्द ही प्रयोग करते हैं । प्रश्न ज़ोरदार था । उसका एक उत्तर तो यह था कि आचार्य साहित्य वैभव के लिए भिन्न भिन्न पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग करते हैं जैसे उन्होंने अकेले सम्यग्दर्शन के लिए भी अलग अलग श्लोकों में अलग अलग शब्द प्रयोग किये हैं ।  लेकिन...

युवा पीढ़ी का धर्म से पलायन क्यों ? दोषी कौन ? युवा या समाज ? या फिर खुद धर्म ? पढ़ें ,सोचने को मजबूर करने वाला एक विचारोत्तेजक लेख ••••••••••••👇​

युवा पीढ़ी का धर्म से पलायन क्यों ? दोषी कौन ? युवा या समाज ? या फिर खुद धर्म ? पढ़ें ,सोचने को मजबूर करने वाला एक विचारोत्तेजक लेख ••••••••••••👇​Must read and write your view

युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?

  युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?                                      प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली    युवावस्था जीवन की स्वर्णिम अवस्था है , बाल सुलभ चपलता और वृद्धत्व की अक्षमता - इन दो तटों के बीच में युवावस्था वह प्रवाह है , जो कभी तूफ़ान की भांति और कभी सहजता   से बहता रहता है । इस अवस्था में चिन्तन के स्रोत खुल जाते हैं , विवेक जागृत हो जाता है और कर्मशक्ति निखार पा लेती है। जिस देश की तरुण पीढ़ी जितनी सक्षम होती है , वह देश उतना ही सक्षम बन जाता है। जो व्यक्ति या समाज जितना अधिक सक्षम होता है। उस पर उतनी ही अधिक जिम्मेदारियाँ आती हैं। जिम्मेदारियों का निर्वाह वही करता है जो दायित्वनिष्ठ होता है। समाज के भविष्य का समग्र दायित्व युवापीढ़ी पर आने वाला है इसलिए दायित्व - ...