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तीर्थंकर महावीर का पूर्ण स्वतंत्रता का संग्राम

स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव पर विशेष - 

तीर्थंकर महावीर का पूर्ण स्वतंत्रता का संग्राम*

प्रो अनेकान्त कुमार जैन 
आचार्य - जैन दर्शन विभाग , श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ,नई दिल्ली
drakjain2016@gmail.com 

हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं । भारत में अंग्रेजों की गुलामी से राजनैतिक रूप से स्वतंत्रता प्राप्ति का यह अमृत महोत्सव है । किंतु आज से लगभग 2600 वर्ष पूर्व भारत की इस पवित्र धरा पर एक ऐसे महामानव का जन्म हुआ जिसने वास्तविक स्वतंत्रता की खोज की । वैशाली गणराज्य विश्व का पहला गणराज्य माना जाता है जहां जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म हुआ था । पूरे विश्व को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाले वैशाली में जिन भगवान महावीर का जन्म हुआ उन्होंने आध्यात्मिक क्षेत्र में भी पूर्ण स्वतंत्रता और लोकतंत्र की स्थापना की । 

भगवान महावीर स्वतंत्रता की यह लड़ाई तब लड़ रहे थे जब धर्म और अध्यात्म की दृष्टि लगभग पूरा विश्व मात्र ईश्वर की इच्छा के आधीन था । ईश्वर की इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता - यह दुनिया के लगभग सभी सेमेटिक धर्म अलग अलग भाषाओं में स्वीकार कर चुके थे । ऐसे वक्त में भगवान महावीर ने आत्म पुरुषार्थ द्वारा आत्मानुभूति,  पूर्ण वीतरागता और सर्वज्ञता की प्राप्ति की और पूरी दुनिया को स्वतंत्रता का संदेश दिया । उन्होंने कहा कि ईश्वर जगत का मात्र ज्ञाता दृष्टा है कर्त्ता धर्त्ता नहीं है ।

उन्होंने बताया कि वास्तविकता यह है कि सिर्फ जीव ही नहीं प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र है । एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का परिणमन करवाने में समर्थ नहीं है । यह सृष्टि भी स्वतंत्र है और उत्पत्ति विनाश रूप स्वतः परिणमित होती है । इसका कर्त्ता धर्त्ता  कोई नहीं है । कोई किसी के आधीन नहीं है । जब हम स्वतंत्रता की खोज कर रहे थे तब उन्होंने इस बात का रहस्योद्घाटन किया कि तुम परतंत्र हो ही नहीं । तुम अपने सुख दुख के कर्त्ता धर्त्ता  स्वयं हो , पर द्रव्य तो इसका निमित्त मात्र है और निमित्त को कर्त्ता व्यवहार में कह दिया जाता है ,वह वास्तव में कर्त्ता होता नहीं है । 

जिस दिन तुम्हें यह यथार्थ बोध हो जाएगा उस दिन से जो तुम्हें हितकर लग रहे हैं उनसे तुम्हारा राग और जो अहितकर लग रहे हैं उनसे तुम्हारा द्वेष तत्क्षण छूट जाएगा । 

*अप्पा कत्ता विकत्ता य सुहाण य दुहाण य*

आत्मा अपने सुख और दुख का कर्त्ता धर्त्ता स्वयं है ।

ईश्वर या किसी अन्य ने मुझे सुखी या दुखी किया , किसी अन्य ने मेरा काम बनाया या बिगाडा , कोई और मेरा कल्याण कर सकता है आदि ये सभी मान्यताएं परतंत्रता का बोध करवाती हैं अतः मिथ्या हैं । 

जब तक पर पदार्थ को अपने सुख दुःख का कर्त्ता मानोगे तुम कभी मुक्त नहीं हो सकते ।

उन्होंने आध्यात्मिक स्वतंत्रता की पराकाष्ठा यहां तक व्यक्त की कि इस जगत का कोई एक भगवान या ईश्वर नहीं है बल्कि प्रत्येक जीव अपने स्वरूप को जानकर ,साधना पूर्वक अपने सभी कर्मों का नाश कर स्वयं परमात्मा बन सकता है और पूर्ण सुखी हो सकता है ।इस दृष्टि से उन्होंने 
आध्यात्मिक लोकतंत्र की स्थापना की और ईश्वर के वास्तविक स्वरूप को समझाया ।

भगवान महावीर के इस स्वतंत्रता संग्राम ने पूरे विश्व को पुनर्विचार पर मजबूर कर दिया।

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