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विश्व का पहला गणतंत्र ‘वैशाली’ और अशोक स्तंभ

विश्व का पहला गणतंत्र  ‘वैशाली’ और अशोक स्तंभ

-प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली 


गणतंत्र अर्थात् वह राज्य या राष्ट्र जिसमें समस्त राज्यसत्ता जनसाधारण के हाथ में हो और वे सामूहिक रूप से या अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के द्वारा शासन और न्याय का विधान करते हों । इसे ही जनतंत्र ,प्रजातंत्र या लोकतंत्र भी कहते हैं ।

भारत का गणतंत्र पूरे विश्व में प्रसिद्ध है | मगर यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि पूरे विश्व को सर्वप्रथम जनतंत्र का उपदेश देने वाला वैशाली गणराज्य भारत में ही  स्थित था | 

आज विश्व के अधिकांश  देश गणराज्य हैं, और इसके साथ-साथ लोकतान्त्रिक भी । भारत स्वयं एक लोकतान्त्रिक गणराज्य है । ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र कायम किया गया था। आज वैशाली बिहार प्रान्त के वैशाली जिला में स्थित एक ऐतिहासिक स्थल है| 

इसके अध्यक्ष लिच्छवी संघ नायक महाराजा चेटक थे | इन्हीं महाराजा चेटक की ज्येष्ठ पुत्री का नाम ‘प्रियकारिणी त्रिशला’था जिनका विवाह वैशाली गणतंत्र के सदस्य एवं ‘क्षत्रिय कुण्डग्राम’ के अधिपति महाराजा सिद्धार्थ के साथ हुआ था और इन्हीं के यहाँ 599 ईसापूर्व बालक वर्धमान का जन्म हुआ जिसने अनेकान्त सिद्धांत के माध्यम से पूरे विश्व को लोकतंत्र की शिक्षा दी और तीर्थंकर महावीर के रूप में विख्यात हुए | 

भगवान महावीर की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म के मानने वालों के लिये वैशाली एक पवित्र स्थल है। वज्जिकुल में जन्मे भगवान महावीर यहाँ २२ वर्ष की उम्र तक रहे थे।    

पढमे खलु गणतंते वेसालीए होही जस्स जम्मं ।
धम्मदंसणे ठवीअ वि गणतंतं य महावीरो  ।।

अर्थात्  विश्व के प्रथम गणतंत्र वैशाली में जिनका जन्म हुआ उन भगवान् महावीर ने धर्म दर्शन के क्षेत्र में भी गणतंत्र की स्थापना की ।

अप्पा सो परमप्पा णत्थि कोवि एगो इस्सवरो लोए ।
णत्थि कोवि कत्ता खलु लोअस्स य केवलं णाया ।।

उन्होंने कहा कि प्रत्येक आत्मा परमात्मा है ,लोक में कोई एक ईश्वर नहीं है ,निश्चित ही इस लोक का कोई भी कर्त्ता नहीं है और वह परमात्मा केवल ज्ञाता (दृष्टा) है ।

जीवसयमेव कत्ता,सुहदुक्खाणं य सयं कम्माणं ।
सव्वकम्मनस्सिदूण, भत्तो वि य भगवन्तो हवइ ।।

(उन्होंने समझाया कि) अपने सुख-दुखों का और अपने कर्मों का जीव स्वयमेव कर्त्ता है, अपने सभी कर्मों का नाश करके भक्त भी भगवान् हो जाता है ।
          साहित्य से ज्ञात होता है कि भगवान महावीर के काल में अनेक गणराज्य थे। तिरहुत से लेकर कपिलवस्तु तक गणराज्यों का एक छोटा सा गुच्छा गंगा से तराई तक फैला हुआ था। गौतम बुद्ध शाक्यगण में उत्पन्न हुए थे। लिच्छवियों का गणराज्य इनमें सबसे शक्तिशाली था, उसकी राजधानी वैशाली थी। 

 लिच्छीवियों के संघ (अष्टकुल) द्वारा गणतांत्रिक शासन व्यवस्था की शुरूआत वैशाली से की गई थी।

 लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व में यहाँ का शासक जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाने लगा और गणतंत्र की स्थापना हुई। अत: दुनियाँ को सर्वप्रथम गणतंत्र का ज्ञान कराने वाला स्थान वैशाली ही है। आज वैश्विक स्तर पर जिस लोकतंत्र को अपनाया जा रहा है वह यहाँ के लिच्छवी शासकों की ही देन है|

गौतम बुद्ध का तीन बार इस पवित्र स्थल पर आगमन हुआ।गौतम बुद्ध ने इस गणराज्य की सफलता के सात कारण बतलाए- 

(1) सभी संघों की जल्दी- जल्दी सभाएं करना और उनमें अधिक से अधिक सदस्यों का भाग लेना|

(2) राज्य के कामों को मिलजुल कर पूरा करना |

(3) कानूनों का पालन करना तथा समाज विरोधी कानूनों का निर्माण न करना| 

(4) वृद्ध व्यक्तियों के विचारों का सम्मान करना| 

(5) महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार न करना| 

(6) स्वधर्म में दृढ़ विश्वास रखना |

(7) अपने कर्तव्य का पालन करना।

        इन सात कारणों पर आज भी विचार करने की आवश्यकता है | उस समय 16 महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्वपूर्ण था। जैन तथा बौद्ध धर्मों के अनुयायियों के अलावा ऐतिहासिक पर्यटन में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए भी वैशाली महत्वपूर्ण है।

यहाँ के अशोक स्तंभ को अभी तक भगवान् बुद्ध से जोड़कर देखा जाता रहा है किंतु अभिनव अनुसंधान इसे भगवान् महावीर से जोड़ रहे हैं ।
यहाँ सम्राट अशोक द्वारा स्थापित एक स्तंभ है जिस पर सिंह बना हुआ है कई विद्वानों का अभिमत है कि  सम्राट अशोक पहले जैन धर्म का अनुयायी था और तीर्थंकर भगवान् महावीर की स्मृति में उनके चिन्ह सिंह को उनके प्रतीक के रूप में स्तंभ पर स्थापित किया था ।

इतिहासकार सच्चिदानंद चौधरी के अनुसार महावीर ने ज्ञातृ वन में 12 वर्ष तप के बाद राजा बकुल के भवन में प्रथम आहार किया था। इस भवन के अवशेष इस एक सिंह वाले स्तंभ के पास मिले हैं।उन्होंने दावा किया है कि अशाेक ने महावीर की स्मृति में यह स्तंभ बनवाया था।

इसके पीछे
विद्वानों का एक तर्क यह भी है कि भगवान महावीर का प्रतीक चिह्न एक सिंह है और वैशाली के प्रसिद्ध अशोक स्तंभ में भी एक ही सिंह है। जबकि बुद्ध से जुड़े स्थलों पर प्रतीक चिह्नों में सिंह की संख्या चार है। 

भगवान् महावीर के इस जन्म स्थल की मिट्टी काे अहिल्य माना जाता है। यानी ऐसी भूमि जहां हल नहीं चलाया जा सकता। अतः भगवान् के सम्मान में इसके आसपास की भूमि पर पर कभी हल नहीं चलाया गया।

 वैशाली की यह भूमि न केवल ऐतिहासिक रूप से समृद्ध है वरन कला और संस्कृति के दृष्टिकोण से भी काफी धनी है।फिर बाद में हमने राजतंत्र का भी दृश्य देखा और अंग्रेज तंत्र का भी दंश सहा | एक लंबे अंतराल के बाद आज हमने जो यह नई गणतंत्रीय व्यवस्था प्राप्त की है, वह मूलत: हमारे लिए अपरिचित नहीं है, आवश्यकता बस उस पुरानी स्मृति को फिर से जगाने की है।

राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तियाँ हमें अपने कर्तव्यों का बोध कराती हैं –

वैशाली जन का प्रतिपालक, विश्व का आदि विधाता,
जिसे ढूंढता विश्व आज, उस प्रजातंत्र की माता॥
रुको एक क्षण पथिक, इस मिट्टी पे शीश नवाओ,
राज सिद्धियों की समाधि पर फूल चढ़ाते जाओ||

वर्तमान में वैशाली में भगवान् महावीर का एक विशाल मंदिर बना हुआ है तथा सरकार द्वारा एक शोध संस्थान तथा एक विशाल पुस्तकालय भी संचालित है ।
दैनिक आधुनिक राजस्थान ,जयपुर 26/1/24

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