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मार्च, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अस्त हो गया जैन संस्कृति का एक जगमगाता सूर्य

अस्त हो गया जैन संस्कृति का एक जगमगाता सूर्य प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली कर्मयोगी स्वस्ति श्री चारुकीर्ति भट्टारक स्वामी जी की समाधि उनके लोकोत्तर जीवन के लिए तो कल्याणकारी है किंतु हम सभी के लिए जैन संस्कृति का एक महान सूर्य अस्त हो गया है ।  स्वामी जी  के जीवन और कार्यों को देखकर लगता है कि वो सिर्फ जैन संस्कृति के लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति और समाज का सर्व विध कल्याण कर रहे थे ।  वे सिर्फ जैनों के नहीं थे वे सभी धर्म ,जाति और प्राणी मात्र के प्रति करुणा रखते थे और विशाल हृदय से सभी का कल्याण करने का पूरा प्रयास करते थे ।  उनके साथ रहने और कार्य करने का मुझे बहुत करीब से अनुभव है । मेरा उनसे अधिक संपर्क तब हुआ जब 2006 में महामस्तकाभिषेक के अवसर पर पहली बार श्रवणबेलगोला में विशाल जैन विद्वत सम्मेलन का आयोजन उन्होंने करवाया था । उसका दायित्व उन्होंने मेरे पिताजी प्रो फूलचंद जैन प्रेमी ,वाराणसी को  सौंपा।उस समय पिताजी अखिल भारतीय दिगंबर जैन विद्वत परिषद के अध्यक्ष थे ।  मेरे लिए यह अविश्वसनीय था कि उन्होंने मुझे...

भारतीय भाषाओं की जड़ों को बचाने का प्रयास होना चाहिए

भारतीय भाषाओं की जड़ों को बचाने का प्रयास होना चाहिए प्रो अनेकान्त कुमार जैन  आचार्य - जैनदर्शन विभाग ,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,नई दिल्ली  दिनाँक 21-23 मार्च 2023 तक भारतीय भाषा समिति (शिक्षा मंत्रालय) एवं श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,नई दिल्ली के संयुक्त तत्त्वावधान में प्राकृत भाषा विभाग द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय प्राकृत कार्यशाला में परिचर्चा में भाग लेने के अनंतर कुछ चिंतन स्वरूप निष्कर्ष बिंदु निम्नलिखित प्रकार से समझ में आये हैं - 1. भारतीय भाषाओं को सुरक्षित रखने का एक कारगर तरीका है उसकी जड़ों को सुरक्षित करना ।  2. निश्चित रूप से भारत की लगभग सभी भाषाओं की जड़ सर्वप्राचीन प्राकृत और संस्कृत भाषा में सन्निहित हैं । 3.संस्कृत भाषा के संरक्षण और संवर्धन में जैनाचार्यों का महनीय योगदान रहा है और वर्तमान में लगभग सभी परंपराएं संस्कृत भाषा का यत्किचित संरक्षण और संवर्धन कर भी रहीं हैं किंतु प्राकृत भाषा के संरक्षण और संवर्धन के लिए वो प्रयास अभी तक नहीं हो सके जो होने चाहिए थे । 4. भारत सरक...

तीर्थंकर भगवान् महावीर का जीवन और सन्देश

 तीर्थंकर भगवान् महावीर का जीवन और सन्देश  (This article is for public domain and any news paper and magazine can publish this article with the name of the author and without any change, mixing ,cut past in the original matter÷ जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर चौबीसवें एवं अंतिम तीर्थंकर महावीर तक तीर्थंकरों की एक सुदीर्घ परंपरा विद्यमान है । भागवत् पुराण आदि ग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख है कि इन्हीं ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश को ' भारत '   नाम प्राप्त हुआ । सृष्टि के आदि में कर्म भूमि प्रारम्भ होने के बाद यही ऋषभदेव जैनधर्म के प्रथम प्रवर्त्तक माने जाते हैं जिन्होंने अपनी पुत्री ब्राह्मी को लिपि विद्या और सुंदरी को गणित विद्या सिखाकर स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति की थी । इसी परंपरा के अंतिम प्रवर्त्तक तीर्थंकर भगवान् महावीर का जन्म चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन विश्व के प्रथम गणतंत्र वैशाली गणराज्य के कुंडग्राम में ईसा की छठी शताब्दी पूर्व हुआ था ।युवा अवस्था में ही संयम पूर्वक मुनि दीक्षा धारण कर कठोर तपस्या के बाद उन्होंने केवलज्ञान(...

योग विद्या के प्रवर्तक हैं ऋषभदेव

योग विद्या के प्रवर्तक हैं ऋषभदेव  प्रो.डॉ. अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com         भारत में प्रागैतिहासिक काल के एक शलाका पुरुष हैं- ऋषभदेव,  जिन्हें इतिहास काल की सीमाओं में नहीं बांध पाता है किंतु वे आज भी भारत की सम्पूर्ण भारतीयता तथा जन जातीय स्मृतियों में पूर्णत:सुरक्षित हैं । इतिहास में इनके अनेक नाम मिलते हैं जिसमें आदिनाथ,वृषभदेव,पुरुदेव आदि प्रमुख हैं | भारत देश में ऐसा विराट व्यक्तित्व दुर्लभ रहा है जो एक से अधिक परम्पराओं में समान रूप से मान्य व पूज्य रहा हो । जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव उन दुर्लभ महापुरुषों में से एक हुए हैं। जन-जन की आस्था के केंद्र तीर्थकर ऋषभदेव का जन्म अयोध्या में हुआ था तथा इनका निर्वाण कैलाशपर्वत से हुआ था । आचार्य जिनसेन के आदिपुराण में तीर्थकर ऋषभदेव के जीवन चरित का विस्तार से वर्णन है।              भागवत पुराण में उन्हें विष्णु के चौबीस अवतारों में से एक माना गया है । वे आग्नीघ्र राजा नाभि के पुत्र थे । माता का नाम मरुदेवी था। दोनो परम्...

जिनवाणी के युवा सपूतों का अकस्मात वियोग : कारण सोचना तो पड़ेगा

प्रिय मित्र पंडित संजीव गोधा के अनंतर 11/03/23 की रात्रि प्रिय अनुज पंडित धर्मेंद्र शास्त्री,कोटा के वियोग का यह अत्यंत दुखद प्रसंग हमें  वैराग्य के साथ साथ पुनः अनुसंधान पर विवश कर रहा है ।  कहना नहीं चाहते लेकिन कहना पड़ रहा है । दोनों ही विद्वानों का युवा अवस्था में वियोग का साक्षात निमित्त अस्वस्थ्यता है ।  ऐसी स्थिति में मैं स्वयं के प्रति संबोधन को सम्मिलित करते हुए अपने सभी विद्वान साथियों से कुछ कहना चाहता हूं । ये जो कुछ हो रहा है अप्रत्याशित है । इसलिए हमें कई चीजें नए तरीके से व्याख्यायित करनी पड़ेंगी ।  यह इक्कीसवीं सदी का चमत्कार ही है कि आज मात्र कुछ संस्थाओं की बदौलत मूल शास्त्रों को पढ़कर प्रतिभाशाली शास्त्री विद्वान जैन समाज को मिल रहे हैं ।  ये वो पीढ़ी है जो अपने जीवन का दांव लगाकर भी शास्त्र सेवा में अपने अपने स्तर पर लगी है ।  समाज से ज्यादा अपेक्षा न करें । वो जितना कर सकते हैं उतना करते हैं ,उन्हें कोसने से कोई फायदा नहीं है । इसलिए आप भी जितना कर सकते हैं उतना ही करें । अभी हम सभी को चाहिए कि अपने स्वास्थ्य की अनदेखी न करें ।...

भारतीय संस्कृति के आराध्य तीर्थंकर ऋषभदेव

ऋषभदेव नवमी (जन्मकल्याणक -चैत्र कृष्णा नवमी )पर विशेष *भारतीय संस्कृति के आराध्य तीर्थंकर ऋषभदेव* प्रो. अनेकान्त कुमार  जैन drakjain2016@gmail.com मनुष्य के अस्तित्व के लिए रोटी, कपड़ा, मकान जैसे पदार्थ आवश्यक हैं, किंतु उसकी आंतरिक सम्पन्नता केवल इतने से ही नहीं होती । उसमें अहिंसा, सत्य, संयम, समता, साधना और तप के आध्यात्मिक मूल्य भी जुड़ने चाहिए ।  भगवान् ऋषभदेव ने भारतीय संस्कृति को जो कुछ दिया है, उसमें असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प इन छह कर्मो के द्वारा उन्होंने जहां समाज को विकास का मार्ग सुझाया वहीं अहिंसा, संयम तथा तप के उपदेश द्वारा समाज की आंतरिक चेतना को भी जगाया ।  जन-जन की आस्था के केंद्र तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म चैत्र कृष्णा नवमी को अयोध्या में हुआ था  तथा  माघ कृष्णा चतुर्दशी को इनका निर्वाण कैलाश पर्वत से हुआ था ।इन्हें आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है .इनके पिता का नाम नाभिराय तथा इनकी माता का नाम मरुदेवी था. कुलकर नाभिराज से ही इक्क्षवाकू कुल की शुरुआत मानी जाती है । इन्हीं के नाम पर भारत का एक प्राचीन नाम अजनाभवर्ष भी प्रसिद्ध है . ...

तीर्थंकर महावीर निर्वाण महामहोत्सव 2550

तीर्थंकर महावीर निर्वाण महामहोत्सव 2550 जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर चौबीसवें एवं अंतिम तीर्थंकर महावीर तक तीर्थंकरों की एक सुदीर्घ परंपरा विद्यमान है ।  भागवत पुराण आदि ग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख है कि इन्हीं ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश को 'भारत'  नाम प्राप्त हुआ । सृष्टि के आदि में कर्म भूमि प्रारम्भ होने के बाद यही ऋषभदेव जैनधर्म के प्रथम प्रवर्तक माने जाते हैं जिन्होंने अपनी पुत्री ब्राह्मी को लिपि विद्या और सुंदरी को गणित विद्या सिखाकर स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति की थी । इसी परंपरा के  अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन विश्व के प्रथम गणतंत्र वैशाली गणराज्य के कुंडग्राम में ईसा की छठी शताब्दी पूर्व हुआ था ।युवा अवस्था में ही संयम पूर्वक मुनि दीक्षा धारण कर कठोर तपस्या के बाद उन्होंने केवलज्ञान( सर्वज्ञता ) प्राप्त की और अहिंसा,सत्य,अनेकान्त,अपरिग्रह , सर्वोदय आदि सिद्धांतों का उपदेश देते हुए जन जन को कल्याण का मार्ग बताया । उन्होंने 72 वर्ष की अवस्था में वर्तमान के बिहार राज्य के पावा...