कृत्रिम प्राकृत रचनाएं प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली प्राकृत भाषा प्राचीन भारत की स्वाभाविक लोक भाषा थी । यही कारण है कि उसमें सहज रसपूर्ण काव्य लिखे गए । साहित्यिक रूपक , मनोरंजक और मूल्यपरक कथाएं ,गूढ़ दार्शनिक सिद्धांत आदि गद्य और पद्य दोनों में रचे गए । भारतीय इतिहास के गवाह रूप अभिलेख गढ़े गए । कुछ परिवर्तन के साथ फिर अपभ्रंश का दौर आया ,उसमें भी ऐसी ही रचनाएं हुईं । साथ ही प्राकृत की रचनाएं भी होती रहीं । फिर पुरानी हिंदी का दौर आया । उसमें पहले पद्य साहित्य आया फिर गद्य का विकास हुआ और आज जो कुछ भी हम हिंदी के नाम पर खड़ी बोली या जो कुछ भी बोल सुन रहे हैं ,रचनाएं कर रहे हैं वो स्वाभाविक रूप से वक्त के अनुसार परिवर्तित और संवर्धित होती हुई स्वाभाविक भाषा लोक भाषा के रूप में हमारे प्रयोग में है । ये प्राकृत का ही नया रूप है । आज की हमारी स्वाभाविक बोलने की प्रकृति हमारी बोलचाल की आम भाषा हिंदी आदि ही हैं । ये आज की प्राकृत है । अब हमें पुराना साहित्य पढ़ने समझने के लिए जो प्राकृत भाषा में है - पुरानी प्राकृत भाषा,उसकी प्रकृति,उसकी व्य...