*जिन धर्म छोड़ना आसान है*
- *डॉ रुचि जैन*
.......पर मिलना कठिन है । प्रायः ऐसा होता है कि जो चीज बचपन से ही सुलभ हो उसकी प्राप्ति की दुर्लभता समझना बहुत कठिन हो जाता है ।
यही दशा आज कई जिन धर्म के युवा अनुयायियों की हो रही है ।सोशल मीडिया के कंपैन से प्रभावित होकर उदारता के नाम पर अजैन देवी देवताओं और साधुओं की भक्ति करते मैंने अनेक बेवकूफ आधुनिक युवाओं को देखा है ।
ये वे हैं जिन्होंने पहले जैन धर्म इसलिए नहीं सीखा क्यों कि धर्म से चिढ़ थी और अब मिथ्यात्व ,पाखंड, राग द्वेष से युक्त देवताओं और साधुओं की भक्ति कर रहे हैं ।
जो प्रश्न ये जैन धर्म से करने की हिम्मत रखते थे , अब वे ही प्रश्न अजैन धर्म से करने की इनकी हिम्मत नहीं है ।
कभी अजैन प्रेमी या प्रेमिकाओं के प्यार के चक्कर में तो कभी गलत संगति के कारण ये अनेक जन्मों के बाद दुर्लभता से प्राप्त महान वैज्ञानिक जैन धर्म और कुल के त्याग करने का दुस्साहस कर रहे हैं और इसी भव में भव सागर से पार होने की नौका मिलने के बाद भी अज्ञानता में उसे त्याग कर अपने अनंत भवभ्रमण का इंतजाम कर रहे हैं ।
जैन धर्म और कुल का त्याग करना बहुत आसान है । आप किसी अजैन कुल में विवाह कर लें,आप जाने अनजाने धीरे धीरे जैनतत्त्वज्ञान ,सिद्धांत ,आचार से स्वतः ही दूर होते जाते हैं । बहुत कम ऐसे होते हैं जो अपने जीवन साथी को जैन परंपरा में परिवर्तित कर पाते हैं । उसका कारण यह है कि जिस तरह प्रलोभन और सस्ते धर्म की शिक्षा वे देते हैं , वो जैन धर्म में नहीं है ।
जैन धर्म मिथ्यात्व , मिथ्या प्रलोभन , लौकिक लाभ आदि को धर्म के मुख्य केंद्र में कभी नहीं रखता ,और दूसरे इसी से सारा काम चलाते हैं ।
दुनिया में हज़ारों किस्म के धर्म है , आपको आपकी रुचि के अनुकूल धर्म और अध्यात्म तो कहीं भी मिल सकता है लेकिन वास्तविक धर्म और अध्यात्म के लिए आपको अनेक त्याग करने होते हैं और दृढ़ता रखनी होती है ,जो अधिकांश लोग नहीं रखते हैं ।
मेरी एक जैन सहेली का अविवाहित पुत्र अक्सर मुझसे धर्म और अध्यात्म को लेकर चर्चा करता था ।वो अक्सर मेरे घर आता था । मैं उससे पास के जैन मंदिर में दर्शनार्थ चलने को कहती तो कहता कि धर्म तो आत्मा से ,मन से होता है ,मंदिर से और मूर्ति से नहीं होता । बड़ी बड़ी बातें करता था । फिर पता चला कि उसने एक अजैन कन्या से प्रेम विवाह कर लिया और अब वो मंदिर रोज जाता है ,लेकिन जैन मंदिर नहीं ,अजैन मंदिर ।
एक दिन मिला तो मैंने उससे कहा कि कम से कम तुम्हें अपने सिद्धांत पर कायम रहना चाहिए था । जब मंदिर मूर्ति में धर्म नहीं होता तो किसी भी मंदिर नहीं जाना चाहिए । उसने कहा कि पत्नी बहुत आस्थावान है और उसकी आस्था की रक्षा के लिए मुझे उसके साथ वहां जाने में कोई आपत्ति नहीं लगती ।
यह दशा आज अनेक युवाओं की है । सारे सिद्धांत और नियम जैन मंदिर और मूर्ति के लिये और अन्यत्र कुछ भी चलेगा ।
जिन्हें कुछ क्रियाओं के कारण अपनी परंपरा का सम्यक्त्व रास नहीं आता था, उन्हें अजैन परंपरा की औचित्य हीन और अज्ञान पूर्ण प्रचंड मिथ्यात्व युक्त क्रियाओं का ढ़ेर कैसे रास आ जाता है ? - ये मेरी आज तक समझ नहीं आया ।
इसे कहते हैं अपने ही पैर को स्वयं कुल्हाड़ी में दे मारना । घर में सुबह की बनी शुद्ध आटे की रोटी यदि गरम करके शाम को परोस दी जाए तो उसे बासी कहकर ठुकराने वाली युवा पीढ़ी बाजार में कई दिन पुराने अशुद्ध आटे/मैदे से बने बन ,ब्रैड और सैंडविच बड़े चाव से खा रहे हैं ,और महंगे दाम चुका कर खुशी खुशी बताते हैं कि ये इस बड़े ब्रांड के हैं और शुद्ध हैं ।
ठीक यही हाल जैन धर्म के साथ हो रहा है । घर में पर्युषण और अष्टमी चौदस के स्व इच्छा से किये जाने वाले आत्मकल्याण युक्त,कर्म क्षय कारक उपवास को मिथ्या कर्मकांड घोषित करने वाले युवा ,अजैन कुल में ब्याह कर जबरजस्ती पति,पुत्र के उम्र के लिए व्रत रखने में ,अजैन तीर्थों पर मन्नते मांगने में और कुल देवी देवता को बिना तर्क के पूजने में कोई हर्ज नहीं समझते हैं ।
इसे तो दुर्भाग्य ही कहा जायेगा ।
इसलिए इस लेख को हर जैन युवा युवती तक पहुंचाएं । ताकि उन्हें समझ आये कि जिन चीजों से बचने के लिए आप अपना धर्म छोड़ते हैं , दूसरी जगह जाकर और भी ज्यादा विकृत चीजों में फंस जाते हैं ।
कई जन्मों के महान पुण्य एकत्रित होते हैं तब जाकर मनुष्य जन्म मिलता है और हज़ारों जन्मों के सातिशय पुण्य एकत्रित होते हैं तब जाकर जैन धर्म कुल और परिवार मिलता है । इसे छोड़ना बहुत आसान है लेकिन इसे पाने में फिर लाखों जन्म लग जाएं और फिर भी न मिले तो समझो हमारे उद्धार के सारे रास्ते बंद हो जाएंगे । मनुष्यों का
प्रेम प्यार ,मिलना जुलना, बिछुड़ना तो हमेशा लगा रहता है । हमें इन क्षणिक मोह और आसक्ति ,भोग या वासना में अपने वैभवशाली धर्म ,कुल और परंपरा का नाश नहीं करना चाहिए । जो कांच के पत्थर के लिए हीरे को ठुकराता है वह अपना ही घाटा करता है कांच का या हीरे का नहीं - विचार तो करना ही ।
*प्राकृत विद्या भवन*,छत्तरपुर एक्सटेंशन,नई दिल्ली
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