सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संस्कृत बुरी क्यों है ?

 




संस्कृत बुरी क्यों है ?

प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली

drakjain2016@gmail.com

हम चाहे संस्कृत को देव वाणी कहें पर आज संस्कृत इतनी व्यापक और उपादेय होने के बाद भी बुरी क्यों लगती है ? इसका एक वाकया सामने आया | अभी कुछ समय पूर्व दिल्ली के एक नामी स्कूल में पढ़ने वाले मेरे बेटे ने एक फॉर्म लाकर मुझे दिया | यह क्या है ? पूछने पर उसने मुझसे कहा कि अब मुझे अगली कक्षा में फ्रेंच या संस्कृत में से एक भाषा का चुनाव करना है अतः अभिभावक के हस्ताक्षर सहित , भाषा चुनकर यह फॉर्म मुझे जमा करना है | मैंने बिना किसी पूर्वाग्रह के उससे पूछा तुम कौन सी भाषा पढ़ना चाहते हो ? ‘फ्रेंच’- उसका भोला सा उत्तर था | संस्कृत क्यों नहीं ? मैंने आश्चर्य से पूछा | उस अबोध बालक ने जो मुझे उत्तर दिया उसने हमारे द्वारा चलाये जा रहे सभी आन्दोलनों पर पानी फेर दिया | उसने कहा - फ्रेंच बहुत अच्छी है और संस्कृत बहुत बुरी |

मैंने उसे समझाते हुए पूछा- बेटा, फ्रेंच का तो तुमने नाम भी अभी सुना है ,और अभी पढ़ी भी नहीं है ,फिर वह अच्छी है ऐसा कैसे निर्णय किया ? और संस्कृत तो तुमने पढ़ी है उसके कई श्लोक भी तुम्हें याद हैं ? फिर वह बुरी है यह निर्णय किस आधार पर किया ? बहुत खोद खोद कर पूछने पर उसने मुझे जो कारण बताया उसने मुझे इस दिशा में एक अलग ही प्रकार से अनुसन्धान करने पर विवश कर दिया | उसने भोलेपन से  कहा – फ्रेंच की मैडम बहुत अच्छी है ...बहुत प्यार से बोलती है .....डांटती नहीं है .....स्मार्ट भी हैं .....इसलिए हमें फ्रेंच बहुत अच्छी लगती है | मेरे अधिकतर दोस्त भी यही विषय ले रहे हैं | मेरी संस्कृत की मैडम बहुत जिद्दी टाइप की है ...हमेशा क्रोध में रहती है......बहुत डांटती है....हमसे कुछ न कुछ अपना खुद का काम करवाती रहती है........स्मार्ट भी नहीं है अतः हमें संस्कृत अच्छी नहीं लगती | मुझे पहली बार पता लगा कि बच्चों की दृष्टि में विषय अच्छा या बुरा , अध्यापक अच्छे हैं या बुरे , पर निर्भर करता है |

अपनी संस्कृत ,प्राकृत आदि  प्राचीन भाषाएँ  पिछड़ने के अनेक कारणों में से एक बहुत बड़ा कारण पहली बार मेरी समझ में आया | अध्यापक के स्वभाव,बोलचाल और ड्रेसिंग सेन्स के आधार पर भी विषय अच्छे या बुरे होते हैं ?

बंधुओं ! संस्कृत पढ़ने वाले विद्यार्थी हमारे नौकर नहीं हैं | वो हमारी प्राचीन धरोहर की रक्षा करने वाले वीर सैनिक और योद्धा हैं , क्या हम उनसे अच्छा वर्ताव नहीं कर सकते ? क्या हम उन्हें अपने मधुर स्वभाव और अच्छे पहनावे से आकर्षित नहीं कर सकते ? उन्हें संस्कृत विद्या पढ़ा कर सिर्फ हम ही उन पर उपकार नहीं कर रहे हैं बल्कि वे ये विद्याएँ पढ़कर हम पर , समाज पर ,राष्ट्र पर , वे भी बहुत बड़ा उपकार कर रहे हैं |

ऐसा नहीं है कि संस्कृत के सभी अध्यापक ऐसे हैं ,कठोर स्वभाव वाले बहुत कम ही होते हैं लेकिन यदि एक भी इस तरह के हैं तो सोचिये कितना बड़ा नुकसान हो रहा है | अन्य विषयों में कठोरता होने पर भी बात इसलिए चल जाती है क्यों कि वहां भीड़ है , मना करने पर भी लोग धन खर्च करके , सोर्स लगाकर और अनेक कष्ट सहन करके भी वह विषय सिर्फ रोजगार के लिए पढ़ते हैं , लेकिन संस्कृत विद्या का विद्यार्थी धर्म और राष्ट्र भावना से भी यह विद्या पढ़ता है ,उसे सामाजिक जीवन के साथ भी संघर्ष करना होता है और आजीविका की रिस्क भी उठानी पड़ती है | इसलिए संस्कृत विद्या के विद्यार्थियों को अपने पुत्र से भी ज्यादा स्नेह देकर उसका पालन पोषण करना होता है | हो सकता है मेरी बात आपको अच्छी न लगे या बहुत तार्किक न लगे लेकिन इस अनुभूत पहलु को आप नज़र अंदाज भी नहीं कर सकते | कुछ बुरा लगा हो तो क्षमा याचना सहित .............धन्यवाद     09/03/2019

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?

  युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?                                      प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली    युवावस्था जीवन की स्वर्णिम अवस्था है , बाल सुलभ चपलता और वृद्धत्व की अक्षमता - इन दो तटों के बीच में युवावस्था वह प्रवाह है , जो कभी तूफ़ान की भांति और कभी सहजता   से बहता रहता है । इस अवस्था में चिन्तन के स्रोत खुल जाते हैं , विवेक जागृत हो जाता है और कर्मशक्ति निखार पा लेती है। जिस देश की तरुण पीढ़ी जितनी सक्षम होती है , वह देश उतना ही सक्षम बन जाता है। जो व्यक्ति या समाज जितना अधिक सक्षम होता है। उस पर उतनी ही अधिक जिम्मेदारियाँ आती हैं। जिम्मेदारियों का निर्वाह वही करता है जो दायित्वनिष्ठ होता है। समाज के भविष्य का समग्र दायित्व युवापीढ़ी पर आने वाला है इसलिए दायित्व - ...

कुंडलपुर के तीर्थंकर आदिनाथ या बड़े बाबा : एक पुनर्विचार

*कुंडलपुर के तीर्थंकर आदिनाथ या बड़े बाबा : एक पुनर्विचार* प्रो अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com मैं कभी कभी आचार्य समन्तभद्र के शब्द चयन पर विचार करता हूँ और आनंदित होता हूँ कि वे कितनी दूरदर्शिता से अपने साहित्य में उत्कृष्ट से उत्कृष्ट शब्द चयन पर ध्यान देते थे । एक दिन मैं अपने विद्यार्थियों को उनकी कृति रत्नकरंड श्रावकाचार पढ़ा रहा था । श्लोक था -  श्रद्धानं परमार्थानामाप्तागमतपोभृताम् । त्रिमूढापोढमष्टांङ्गं सम्यग्दर्शनमस्मयम् ॥ इसकी व्याख्या के समय एक छात्रा ने पूछा कि गुरुजी ! देव ,शास्त्र और गुरु शब्द संस्कृत का भी है , प्रसिद्ध भी है ,उचित भी है फिर आचार्य ने उसके स्थान पर आप्त,आगम और तपस्वी शब्द का ही प्रयोग क्यों किया ? जब  कि अन्य अनेक ग्रंथों में ,पूजा पाठादि में देव शास्त्र गुरु शब्द ही प्रयोग करते हैं । प्रश्न ज़ोरदार था । उसका एक उत्तर तो यह था कि आचार्य साहित्य वैभव के लिए भिन्न भिन्न पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग करते हैं जैसे उन्होंने अकेले सम्यग्दर्शन के लिए भी अलग अलग श्लोकों में अलग अलग शब्द प्रयोग किये हैं ।  लेकिन...

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन- डॉ अनेकांत कुमार जैन

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन डॉ अनेकांत कुमार जैन जीवन की परिभाषा ‘ धर्म और कर्म ’ पर आधारित है |इसमें धर्म मनुष्य की मुक्ति का प्रतीक है और कर्म बंधन का । मनुष्य प्रवृत्ति करता है , कर्म में प्रवृत्त होता है , सुख-दुख का अनुभव करता है , और फिर कर्म से मुक्त होने के लिए धर्म का आचरण करता है , मुक्ति का मार्ग अपनाता है।सांसारिक जीवों का पुद्गलों के कर्म परमाणुओं से अनादिकाल से संबंध रहा है। पुद्गल के परमाणु शुभ-अशुभ रूप में उदयमें आकर जीव को सुख-दुख का अनुभव कराने में सहायक होते हैं। जिन राग द्वेषादि भावों से पुद्गल के परमाणु कर्म रूप बन आत्मा से संबद्ध होते हैं उन्हें भावकर्म और बंधने वाले परमाणुओं को द्रव्य कर्म कहा जाता है। कर्म शब्दके अनेक अर्थ             अंग्रेजी में प्रारब्ध अथवा भाग्य के लिए लक ( luck) और फैट शब्द प्रचलित है। शुभ अथवा सुखकारी भाग्य को गुडलक ( Goodluck) अथवा गुडफैट Good fate कहा जाता है , तथा ऐसे व्यक्ति को fateful या लकी ( luckey) और अशुभ अथवा दुखी व्यक्ति को अनलकी ( Unluckey) कहा जाता...