सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

पर्यटन से पर्यावरण और पवित्रता दोनों का नुकसान


पर्यटन से पर्यावरण और पवित्रता दोनों का नुकसान

प्रो अनेकान्त कुमार जैन 

हम सभी इस बात के प्रत्यक्ष गवाह हैं कि वे तीर्थ क्षेत्र जहाँ जहाँ पर्यटन विकसित होता है वहाँ आमदनी में भले ही कुछ इज़ाफ़ा होता हो पर पर्यावरण का काफी नुकसान होता है । 
उत्तराखंड के जोशी मठ की समस्या हमारे सामने दिख ही रही है । वहाँ के शंकराचार्य ये कह रहे हैं कि तीर्थ क्षेत्र को भोग क्षेत्र न बनाएं । तीर्थ क्षेत्रों को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने का दुष्परिणाम जोशी मठ की वर्तमान दशा के रूप में हमारे सामने दिख रहा है । 

वहाँ का विकास आज विनाश का रूप ले रहा है । 

लगभग सभी पर्यटन स्थलों पर चिप्स कुरकरे के पैकेट,गुटखे तम्बाकू सिगरेट के पैकेट आदि तथा शराब की बोतलें ,पानी की प्लाटिक बोतलें आदि अत्यधिक मात्रा में फैली दिखती हैं ।  नदी नाले पहाड़ आदि में इनका कचड़ा दिखाई देता है । 
होटलों रेस्टोरेंटों में शराब और मांसाहार मुख्य रूप से होता । 
जीव जंतु जो इको सिस्टम को संतुलित रखते हैं उन्हें मारा जाता है और भोजन बनाया जाता है । 

जैसे ड्रग्स का व्यापार समाज और मनुष्य के लिए हानिकारक है इसलिए प्रतिबंधित है और अपराध की श्रेणी में आता है । 
आय,
व्यापार और रोज़गार का तर्क यदि इतना ही महत्त्वपूर्ण है तो ड्रग्स के व्यापार की छूट भी होनी चाहिए क्यों कि वह आय और रोज़गार का बहुत बड़ा साधन है । 

इसी तरह सिर्फ जैन ही नहीं किन्हीं भी धर्म स्थलों को उनकी पवित्र मान्यताओं के विपरीत सिर्फ़ आय के लिए पर्यटन स्थल बनाना भी धर्म संस्कृति मूल्य और त्याग तपस्या की सनातन परंपरा को अपवित्र करना है । जिस धर्म के साधु और भक्त अपने तीर्थ स्थल को अपनी आत्मा मानते हों और साधना, त्याग तपस्या की प्रेरणा मानते हों उसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करके उसकी पवित्र परंपराओं को नष्ट करना धर्म और पर्यावरण दोनों को नष्ट करना है । 

https://youtu.be/fQ4NDvpeu5o

हम पर्यटन के नाम पर जिसे विकास कहते हैं वह हमारी सनातन परंपराओं और पर्यावरण के लिए यदि ह्रास है तो तीर्थ स्थलों पर ही इतनी जिद क्यों ? 

पहाड़ पर स्थित तीर्थों और मैदानी इलाको में स्थित तीर्थों की स्थिति में भी बहुत बड़ा फर्क होता है । पहाड़ पर परिस्थितियों पर कंट्रोल करना कठिन होता है । 

सम्मेद शिखर ,मधुबन,गिरिडीह आदि आसपास के स्थानों पर बसने वाले स्थानीय अजैन समुदाय से यदि पूछा जाए तो वे बताएंगे कि सदियों से जैन तीर्थ यात्री उनकी आजीविका के प्रमुख स्रोत रहे हैं । वहाँ स्थापित सैकड़ों जैन संस्थाएं निःशुल्क अस्पताल, विद्यालय तथा नौकरियां आदि देकर वहाँ की स्थानीय जाति और समाज की सेवा करती आई है । मानव सेवा और प्राणी रक्षा की भावना से काफ़ी कार्य इस क्षेत्र में जैन समाज के द्वारा किये जाते हैं । पर्वत पर वन्य जीव इस तीर्थयात्रा से स्वयं को सुरक्षित और आज़ाद महसूस करते हैं । व्यसन मुक्त और अत्यंत संवेदनशील जैन तीर्थयात्री पर्वत पर थूकना भी पाप मानते हैं ,वे इसके कण कण की पूजा करते हैं । वे प्लास्टिक और धुंए का प्रदूषण वहां नहीं फैलाते । इन सबके साथ शुद्ध आध्यात्मिक भावना और पूजा ,ध्यान ,स्तुतियाँ वहाँ के वातावरण और पर्यावरण को शुद्ध बनाते हैं ।

इसके विपरीत पर्यटन क्षेत्र बनने पर यहाँ रोप वे बनेगा तो जैन तीर्थयात्रियों को भले ही सुविधा हो जाएगी पर उन्हें डोली या गोदी लेकर पहाड़ की यात्राएं कराने वाले हजारों  स्थानीय जनजाति के कहार बेरोजगार हो जाएंगे । होटल रेस्टोरेंट बनेंगे तो पहाड़ काटेंगे ,पेड़ काटेंगे और स्थानीय लोगों की दुकानें बंद हो जाएंगी । 

पर्यटक बढ़ने से वहाँ के प्रदूषण का असर स्थानीय खेती पर भी पड़ेगा जिसका खामियाजा वहाँ के स्थानीय किसानों को उठाना पड़ेगा । 

अतः हमारा मानना है कि प्रकृति के सौंदर्य को पर्यटन के नाम पर भुनाना पर्यावरण की सुरक्षा और पारंपरिक पवित्रता पर भी सबसे बड़ी सेंध है । 

*सैरगाह मत कहो खुदा के दर को शहंशाह* 
*हम वहां इबादत को जाते हैं सैर को नहीं*

टिप्पणियाँ

R DAYACHAND SAVANSUKHA ने कहा…
Very beautifully written.. Very true and good ✅. Nice analysis.
बेनामी ने कहा…
Wonderful article
बेनामी ने कहा…
सही कहा आपने

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?

  युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?                                      प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली    युवावस्था जीवन की स्वर्णिम अवस्था है , बाल सुलभ चपलता और वृद्धत्व की अक्षमता - इन दो तटों के बीच में युवावस्था वह प्रवाह है , जो कभी तूफ़ान की भांति और कभी सहजता   से बहता रहता है । इस अवस्था में चिन्तन के स्रोत खुल जाते हैं , विवेक जागृत हो जाता है और कर्मशक्ति निखार पा लेती है। जिस देश की तरुण पीढ़ी जितनी सक्षम होती है , वह देश उतना ही सक्षम बन जाता है। जो व्यक्ति या समाज जितना अधिक सक्षम होता है। उस पर उतनी ही अधिक जिम्मेदारियाँ आती हैं। जिम्मेदारियों का निर्वाह वही करता है जो दायित्वनिष्ठ होता है। समाज के भविष्य का समग्र दायित्व युवापीढ़ी पर आने वाला है इसलिए दायित्व - ...

कुंडलपुर के तीर्थंकर आदिनाथ या बड़े बाबा : एक पुनर्विचार

*कुंडलपुर के तीर्थंकर आदिनाथ या बड़े बाबा : एक पुनर्विचार* प्रो अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com मैं कभी कभी आचार्य समन्तभद्र के शब्द चयन पर विचार करता हूँ और आनंदित होता हूँ कि वे कितनी दूरदर्शिता से अपने साहित्य में उत्कृष्ट से उत्कृष्ट शब्द चयन पर ध्यान देते थे । एक दिन मैं अपने विद्यार्थियों को उनकी कृति रत्नकरंड श्रावकाचार पढ़ा रहा था । श्लोक था -  श्रद्धानं परमार्थानामाप्तागमतपोभृताम् । त्रिमूढापोढमष्टांङ्गं सम्यग्दर्शनमस्मयम् ॥ इसकी व्याख्या के समय एक छात्रा ने पूछा कि गुरुजी ! देव ,शास्त्र और गुरु शब्द संस्कृत का भी है , प्रसिद्ध भी है ,उचित भी है फिर आचार्य ने उसके स्थान पर आप्त,आगम और तपस्वी शब्द का ही प्रयोग क्यों किया ? जब  कि अन्य अनेक ग्रंथों में ,पूजा पाठादि में देव शास्त्र गुरु शब्द ही प्रयोग करते हैं । प्रश्न ज़ोरदार था । उसका एक उत्तर तो यह था कि आचार्य साहित्य वैभव के लिए भिन्न भिन्न पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग करते हैं जैसे उन्होंने अकेले सम्यग्दर्शन के लिए भी अलग अलग श्लोकों में अलग अलग शब्द प्रयोग किये हैं ।  लेकिन...

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन- डॉ अनेकांत कुमार जैन

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन डॉ अनेकांत कुमार जैन जीवन की परिभाषा ‘ धर्म और कर्म ’ पर आधारित है |इसमें धर्म मनुष्य की मुक्ति का प्रतीक है और कर्म बंधन का । मनुष्य प्रवृत्ति करता है , कर्म में प्रवृत्त होता है , सुख-दुख का अनुभव करता है , और फिर कर्म से मुक्त होने के लिए धर्म का आचरण करता है , मुक्ति का मार्ग अपनाता है।सांसारिक जीवों का पुद्गलों के कर्म परमाणुओं से अनादिकाल से संबंध रहा है। पुद्गल के परमाणु शुभ-अशुभ रूप में उदयमें आकर जीव को सुख-दुख का अनुभव कराने में सहायक होते हैं। जिन राग द्वेषादि भावों से पुद्गल के परमाणु कर्म रूप बन आत्मा से संबद्ध होते हैं उन्हें भावकर्म और बंधने वाले परमाणुओं को द्रव्य कर्म कहा जाता है। कर्म शब्दके अनेक अर्थ             अंग्रेजी में प्रारब्ध अथवा भाग्य के लिए लक ( luck) और फैट शब्द प्रचलित है। शुभ अथवा सुखकारी भाग्य को गुडलक ( Goodluck) अथवा गुडफैट Good fate कहा जाता है , तथा ऐसे व्यक्ति को fateful या लकी ( luckey) और अशुभ अथवा दुखी व्यक्ति को अनलकी ( Unluckey) कहा जाता...