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सम्मेद शिखर हमारी आत्मा है ,उसे नष्ट न करें






णमो सम्मेयसिहरस्स



सम्मेद शिखर हमारी आत्मा है ,उसे नष्ट न करें





*वीसं तु जिणवरिंदा, अमरासुरवंदिदा धुव्‍वकिलेसा।*
*संमेदे गिरिसिहरे, णिव्‍वाणगया णमो तेसिं।।२।।*

जो देव और असुरों के द्वारा वंदित हैं तथा जिन्‍होंने समस्‍त क्‍लेशों को नष्‍ट कर दिया है ऐसे बीस जिनेंद्र( तीर्थंकर) सम्‍मेदाचल के शिखर पर निर्वाण को प्राप्‍त हुए हैं, उन सबको नमस्‍कार हो।।

(आचार्य कुन्दकुन्द ,निर्वाण भक्ति ,प्रथम शताब्दी )

जिस प्रकार हिन्दू धर्म के लिए सबसे पवित्र चार धाम हैं , मुस्लिमों के लिए हज है ,सिक्खों के लिए स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारा है  इसी प्रकार वर्तमान में झारखंड राज्य में स्थित सम्मेद शिखर जैन धर्म के लिए सबसे अधिक पवित्र पर्वत है जहाँ से जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकर निर्वाण को प्राप्त हुए थे । 

जैन आगमों के अनुसार यह शाश्वत पवित्र तीर्थ क्षेत्र है और अनादि से है । प्रत्येक जैन के लिए यहाँ की पवित्र यात्रा जीवन में अनिवार्य बनाई गई है । शास्त्रों में यहाँ की यात्रा के लिए कहा है - 

*एक बार बंदे जो कोई ,ताहि नरक पशु गति नहीं होई* 

अर्थात् जीवन में यदि किसी ने भाव पूर्वक एक बार भी इस पवित्र तीर्थ की वंदना कर ली तो वह कभी भी नरक और पशु योनि में नहीं जाता है । 

वर्तमान में इस पर्वत पर अनेक जैन मंदिर ,चरण चिन्ह,कूट, स्थापित हैं । इस पर्वत की तलहटी में हज़ारों जैन मूर्तियां विभिन्न मंदिरों में स्थापित हैं । सैकड़ों धर्मशालाएं और समाज सेवा के केंद्र हैं । 

परंपरा अनुसार अहिंसक जैन तीर्थ शराब,मांस,अंडा,प्याज लहसुन आदि अभक्ष्य पदार्थों से रहित होते हैं और यह जैन तीर्थों की न्यूनतम अनिवार्य शर्त होती है । 

जैन धर्मावलंबी नंगे पैर ,व्रत उपवास पूर्वक इस पवित्र पर्वत की वंदना करते हैं और यह अपवित्र न हो इस भावना से पर्वत पर कोई गंदगी नहीं फैलाते हैं । 

वर्तमान में सरकार ने पर्यटन उद्योग की दृष्टि से अधिक रेवेन्यू एकत्रित करने के उद्देश्य से इस पवित्र पर्वत को   पर्यटन क्षेत्र घोषित करने का नोटिफिकेशन जारी किया है । जिससे यहाँ शराबी कबाबी होटल,रेस्टोरेंट और असंयमी और व्यभिचारी टूरिस्टों का जमावड़ा लगने का रास्ता साफ हो गया है । 

पूरे विश्व के जैन धर्मावलंबी इस निर्णय से काफी आहत हैं और अहिंसक और शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन भी कर रहे हैं । 

जैन धर्म भारत की हिन्दू संस्कृति का एक अभिन्न अंग है । मात्र आमदनी के लिए इस तरह के निर्णय एक अल्पसंख्यक हिन्दू संस्कृति को नष्ट भ्रष्ट करने का कारण बन रहा है । हमारा विनम्र अनुरोध है कि सम्मेद शिखर जैनों की आत्मा है ,उसे नष्ट न करें ।

हमारी सरकार से गुजारिश है कि इस तरह की अधिसूचना को जैन अल्पसंख्यक समुदाय की भावना और उनके तीर्थ की पवित्रता का संरक्षण करते हुए ,रद्द करके अपनी उदारता का परिचय अवश्य दें ।


*सैरगाह मत कहो खुदा के दर को शहंशाह*. 
*हम वहां इबादत को जाते हैं सैर को नहीं*

*प्रो अनेकान्त कुमार जैन*
संपादक - *पागद- भासा*
(प्राकृत भाषा का प्रथम अखबार)
एवं
 डॉ रुचि जैन,प्रकाशक
प्राकृत विद्या भवन ,जिन फाउंडेशन ,छत्तरपुर एक्सटेंशन,नई दिल्ली 

#savesammedshikar

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