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संदेश

प्रिय मित्र ( स्व.)डॉ संजीव गोधा के नाम एक पत्र

प्रिय संजीव  सब कुछ क्रम नियमित है  आयु निश्चित है  राजा राणा क्षत्रपति हाथन के असवार  मरना सबको एक दिन अपनी अपनी बार  आदि आदि  ये सब मुझे पता है ,इन्हें मैं भी सबसे बड़ा सत्य मानता हूँ । फिर भी.....कुछ चीजें मुझे स्वीकार नहीं हो रहीं हैं  जैसे   तुम्हारा इस तरह जाना । तुम्हारी शोक सभाएं सुन रहा हूँ , मुझे ये भी स्वीकार नहीं हो रहीं हैं ।  कई बार सोचा कि तुम्हारी याद में मैं भी कुछ कहूँ ,वीडियो बनाऊं ...पर ये हो न सका ।  तुम्हारा जाना मुझे मंजूर ही नहीं है ।  इसीलिए तुम्हारी किसी भी शोकसभा में उपस्थित न हो सका ,कुछ कह न सका ।  लोग तुम्हारी और टोडरमल जी की आयु एक जैसी बताकर तुलना कर रहे हैं ,मुझे ये भी स्वीकार नहीं है ।  टोडरमल जी मरे नहीं थे ,उन्हें मरवाया गया था ।  तुम्हारे यू ट्यूब पर हजारों प्रवचन , ऑनलाइन कक्षाएं , तुम्हारा देश दुनिया में अथक लगातार प्रचार ,अब मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते ,क्यों कि तुम नहीं हो ।  तुम इतना ज्यादा ऑनलाइन क्यों रहे कि अब ऑफलाइन भी नहीं हो ?  क्या...

ढोर गंवार शूद्र पशु नारी सकल मुक्ति के अधिकारी

*ढोर गंवार शूद्र पशु नारी सकल मुक्ति के अधिकारी* प्रो अनेकान्त https://youtu.be/aLlW5mx3TEk

प्राचीन जैन तीर्थ किन्द्रह की खोज

मध्य प्रदेश के दमोह जिले के पथरिया के पास एक छोटा सा गांव है किन्द्रह (स्थानीय बुंदेली में बोला जाने वाला किनरौ ) पिताजी (प्रो फूलचंद जैन प्रेमी जी ) माता जी (डॉ मुन्नी पुष्पा जैन) लगभग 40 वर्ष पहले अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ इस गाँव में आए थे ,सो उन्हें अभी विरागोदय तीर्थ ,पथरिया की वंदना के समय इसकी याद आ गई । पिताजी को यह भी याद आया कि यहाँ एक प्राचीन जैन मंदिर था औ र एक तालाब था । तालाब में नहाते वक्त 40  वर्ष पहले उन्हें जैन मूर्तियों के अवशेष मिले थे ।  उनकी बड़ी गहरी और आत्मीय जिज्ञासा थी इस गाँव में पुनः जाने की और उस तालाब को और पुरातत्व को देखने की ।  12 फरवरी 2023 को सुबह सुबह  हमने एक ऑटो रिक्शा किया और माता पिता एवं श्रीमती सीमा जैन (महिला बाल विकास अधिकारी,पथरिया) के साथ वहाँ पहुंच गए , 40 वर्ष पहले की याद करते वे यहाँ इतनी आत्मीयता से घूमे जैसे कोई पूर्व जन्म का स्मरण कर अपने पुराने गाँव जा कर करता है ।  पता चला अब यहाँ वह जैन मंदिर नहीं है । जैन समाज भी अब यहाँ नहीं रहती । इन...

ताड़न के अधिकारी..........

ताड़न के अधिकारी.......... का एक समकालीन अर्थ यह भी किया जा सकता है कि अब उन्हें भी ताड़न करने का अधिकार है ।  #womenempowement  #animalrights  #dalitshakti  #ramcharitmanas #नारीशक्ती  यह अर्थ करने के बाद अब इन पंक्तियों को हटाने की मांग को न सिर्फ वापस ले लिया जाएगा बल्कि इसे मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित करने की मांग की जाएगी ।  प्रो अनेकान्त

अधूरे जिनालय

हमारे अधूरे जिनालय प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com अभी कुछ दिन पहले  किसी निमित्त दिल्ली में वैदवाडा स्थित जैन मंदिर के दर्शनों का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ । बहुत समय बाद इतने भव्य , मनोरम और प्राचीन जिनालय के दर्शन करके धन्य हो गए ।  दिल्ली के प्राचीन मंदिरों में जाओ तो लगता है हम फिर वही शताब्दियों पूर्व उसी वातावरण में पहुंच गए जब पंडित दौलतराम जी जैसे जिनवाणी के उपासक अपनी तत्वज्ञान की वाणी से श्रावकों का मोक्षमार्ग प्रशस्त करते थे ।  वैदवाडा के उस मंदिर में एक माली सामग्री एकत्रित कर रहा था । हमने सहज ही उससे पूछा - भाई , यहां नियमित शास्त्र स्वाध्याय होता है ? नहीं... कभी नहीं होता - उसका स्पष्ट उत्तर था । मुझे आश्चर्य हुआ । मैने कहा- ऐसा क्यों कहते हो भाई , दशलक्षण पर्व में तो होता होगा ?  बोला - हां ,उसी समय होता है - बस । मैंने उसे समझाते हुए कहा - तो ऐसा क्यों कहते हो कि कभी नहीं होता ? कोई भी पूछे तो बोला करो होता है , मगर कभी कभी विशेष अवसरों पर होता है । मैंने उसे तो समझा दिया , लेकिन मेरा मन आंदोलित हो उठा ? ये क्या हो...

सम्मेद शिखर के रोचक तथ्य : जो आपको ज्ञात होना चाहिए

सम्मेद शिखर के रोचक तथ्य : जो आपको ज्ञात होना चाहिए                                 प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली   ·          जैन भूगोल के अनुसार अढ़ाई द्वीप में कुल  170  सम्मेद शिखर हैं  , उसमें जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र का सम्मेद शिखर वही है जो वर्तमान में भारतवर्ष के झारखंड राज्य में स्थित है तथा पार्श्वनाथ हिल के नाम से विख्यात है । ·          आचार्य कुन्दकुन्द( 1  शती) ने निर्वाण भक्ति में  , आचार्य यतिवृषभ ( 2-3 शती) ने तिलोयपण्णत्ति  के चौथे महाधिकार में  , आचार्य गुणभद्र ने उत्तरपुराण में , आचार्य रविषेण ने पद्मपुराण में  , आचार्य जिनसेन ने हरिवंशपुराण में तथा अन्य अनेक आचार्यों ने अनेक ग्रंथों में सम्मेद शिखर जी को  20  तीर्थंकरों सहित करोड़ों मुनियों की निर्वाण स्थली कहा है । ·   ...

संस्कृत बुरी क्यों है ?

  संस्कृत बुरी क्यों है ? प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com हम चाहे संस्कृत को देव वाणी कहें पर आज संस्कृत इतनी व्यापक और उपादेय होने के बाद भी बुरी क्यों लगती है ? इसका एक वाकया सामने आया | अभी कुछ समय पूर्व दिल्ली के एक नामी स्कूल में पढ़ने वाले मेरे बेटे ने एक फॉर्म लाकर मुझे दिया | यह क्या है ? पूछने पर उसने मुझसे कहा कि अब मुझे अगली कक्षा में फ्रेंच या संस्कृत में से एक भाषा का चुनाव करना है अतः अभिभावक के हस्ताक्षर सहित , भाषा चुनकर यह फॉर्म मुझे जमा करना है | मैंने बिना किसी पूर्वाग्रह के उससे पूछा तुम कौन सी भाषा पढ़ना चाहते हो ? ‘फ्रेंच’- उसका भोला सा उत्तर था | संस्कृत क्यों नहीं ? मैंने आश्चर्य से पूछा | उस अबोध बालक ने जो मुझे उत्तर दिया उसने हमारे द्वारा चलाये जा रहे सभी आन्दोलनों पर पानी फेर दिया | उसने कहा - फ्रेंच बहुत अच्छी है और संस्कृत बहुत बुरी | मैंने उसे समझाते हुए पूछा- बेटा, फ्रेंच का तो तुमने नाम भी अभी सुना है ,और अभी पढ़ी भी नहीं है ,फिर वह अच्छी है ऐसा कैसे निर्णय किया ? और संस्कृत तो तुमने पढ़ी है उसके कई श्लोक भी तुम्हें या...

पर्यटन से पर्यावरण और पवित्रता दोनों का नुकसान

पर्यटन से पर्यावरण और पवित्रता दोनों का नुकसान प्रो अनेकान्त कुमार जैन  हम सभी इस बात के प्रत्यक्ष गवाह हैं कि वे तीर्थ क्षेत्र जहाँ जहाँ पर्यटन विकसित होता है वहाँ आमदनी में भले ही कुछ इज़ाफ़ा होता हो पर पर्यावरण का काफी नुकसान होता है ।  उत्तराखंड के जोशी मठ की समस्या हमारे सामने दिख ही रही है । वहाँ के शंकराचार्य ये कह रहे हैं कि तीर्थ क्षेत्र को भोग क्षेत्र न बनाएं । तीर्थ क्षेत्रों को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने का दुष्परिणाम जोशी मठ की वर्तमान दशा के रूप में हमारे सामने दिख रहा है ।  वहाँ का विकास आज विनाश का रूप ले रहा है ।  लगभग सभी पर्यटन स्थलों पर चिप्स कुरकरे के पैकेट,गुटखे तम्बाकू सिगरेट के पैकेट आदि तथा शराब की बोतलें ,पानी की प्लाटिक बोतलें आदि अत्यधिक मात्रा में फैली दिखती हैं ।  नदी नाले पहाड़ आदि में इनका कचड़ा दिखाई देता है ।  होटलों रेस्टोरेंटों में शराब और मांसाहार मुख्य रूप से होता ।  जीव जंतु जो इको सिस्टम को संतुलित रखते हैं उन्हें मारा जाता है और भोजन बनाया जाता है ।  जैसे ड्रग्स का व्यापार समा...

सिद्धभूमि सम्मेद शिखर के आगम प्रमाण

               सिद्धभूमि श्री सम्मेद शिखर के आगम प्रमाण                           प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,आचार्य - जैन दर्शन विभाग ,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय , नई दिल्ली  णमो सम्मेयसिहरस्स तीर्थराज सम्मेद शिखर शाश्वत तीर्थ है । यह जैन परंपरा के 20 तीर्थंकरों की निर्वाण स्थली है । जैन प्राकृत आगम साहित्य में इस बात के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं ।  प्रथम शती में आचार्य कुन्दकुन्द लिखते हैं -   वीसं तु जिणवरिंदा, अमरासुरवंदिदा धुव्वकिलेसा। संमेदे गिरिसिहरे, णिव्‍वाणगया णमो तेसिं।।२।। अर्थात् जो देव और असुरों के द्वारा वंदित हैं तथा जिन्‍होंने समस्‍त क्‍लेशों को नष्‍ट कर दिया है ऐसे बीस जिनेंद्र( तीर्थंकर) सम्‍मेदाचल के शिखर पर निर्वाण को प्राप्‍त हुए हैं, उन सबको नमस्‍कार हो।(आचार्य कुन्दकुन्द ,निर्वाण भक्ति ,1st A.D ) दूसरी - तीसरी शताब्दी में आचार्य यतिवृषभ लिखते हैं -        चेत्तस्स सुद्ध-...

सम्मेद शिखर में ‘सम्मेद’ शब्द का अर्थ विमर्श

           सम्मेद शिखर में ‘सम्मेद’शब्द का अर्थ विमर्श       प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली©   सम्मेद शिखर की चर्चा आज अपने चरम पर है | कई स्थलों पर यह भी पूछा जा रहा कि इस शब्द का अर्थ क्या है ? अतः मैं कुछ रिसर्च के माध्यम से इस शब्द का अर्थ खोजने और बताने का एक विनम्र प्रयास कर रहा हूँ | सम्मेद शिखर में शिखर शब्द स्पष्ट है गिरी या पर्वत ,इसके लिए जैन साहित्य में सम्मेद शैल शब्द भी आया है और उसके बाद शिखर शब्द का प्रयोग है ,ऐसा लगता है अंग्रेजों के बाद से ही इसे पार्श्वनाथ हिल भी कहा जाने लगा है | इसका जो पूर्ववर्ती पद है - सम्मेद ,इस पर विमर्श करना आवश्यक है |काफी विमर्श के बाद हम निम्नलिखित निष्कर्षों पर पहुंचे हैं – 1.सम्मेद शब्द भी इस पर्वत की भांति अनादि से है और जो इसकी संज्ञा के रूप में जुड़ा हुआ है,अतः यह संज्ञा भी शाश्वत है |मूलतः यह नाम निक्षेप ही प्रतीत होता है ,इसके शाब्दिक अर्थ की मीमांसा मुझे अभी तक कहीं देखने में नहीं आई है,लगता है अनादि नाम निक्षेप होने से और आर्ष प्रयोग होने से इसकी शब्द मीमांसा को आवश्यक...