पिता की सीख पर्यावरण की सीख उन दिनों स्कूलों में पर्यावरण का कोई पाठ कोर्स में नहीं होता था ,लेकिन पर्यावरण के प्रति जागरूकता का पाठ मेरे पिताजी मुझे अपने आचरण से देते रहते थे । वो रोज सुबह पार्क में घुमाने ले जाते,अक्सर रास्ते में कहीं कोई सार्वजनिक नल व्यर्थ चलता दिखता तो खुद उसे बंद करते या मुझसे बंद करवाते । पार्क में व्यर्थ घास पर चलने को और टहनियाँ तोड़ने को मना करते , फूल तोड़ना तो उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं था । मैं छुपकर तोड़ लूं तो कहते कि ये पौधे में ही जीवित सुंदर और उपयोगी होता है ,तोड़ने पर मर जाता है । एक बार हम पार्क की एक बेंच पर बैठे थे ,पास में गंदगी पड़ी थी और उस पर मक्खियां बैठी थीं ,मैंने अपना क्रिकेट बैट बिना देखे वहां जोर से पटक दिया ,उन्होंने तुरंत मेरे गाल पर एक तमाचा जड़ा और बैट उठाने को कहा । मैंने जैसे ही बैट उठाया तो देखा कि करीब 20-25 मक्खियां मर गईं थीं । मैं बहुत दुखी हुआ । उन्होंने मुझे बहुत करुणा से समझाया बेटा ! देखो तुम्हारी एक लापरवाही से कितनी मक्खियों का जीवन चला गया। ये भी हमारे इको सिस्टम का हिस्सा हैं । थोड़ा बैट हिला देते तो ये खुद उड़ जातीं...