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प्राकृत भाषा के मसीहा आचार्य विद्यानंद

प्राकृत भाषा के मसीहा आचार्य विद्यानंद

प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली ,
drakjain2016@gmail.com

जब किसी प्राचीन भाषा और संस्कृति की उपेक्षा सरकार और समाज दोनों करने लग जाएं तो उसके उद्धार के लिए किसी न किसी मसीहा को जन्म लेना पड़ता है । 

भगवान् महावीर के उपदेशों की भाषा जिसमें सम्पूर्ण मूल जिनागम रचा गया ऐसी भारत की सर्व प्राचीन और सर्व भाषाओं की जननी प्राकृत भाषा जब अपने ही भारत में ही इतनी  उपेक्षित होने लगी कि लोग यह भी भूल गए कि   नमस्कार मंत्र किस भाषा में रचित है तब उस जननी जन भाषा प्राकृत के उद्धार के लिए सिद्धांत चक्रवर्ती आचार्य विद्यानंद ने मसीहा का कार्य किया और आज ऐसा दिन आ गया है कि लोग प्राकृत भाषा का महत्व समझने लगे हैं ,उसे पढ़ना लिखना सीख रहे हैं , कई मुनि और विद्वान् इस भाषा में रचनाएं कर रहे हैं ।

प्राकृत भाषा को एक सामान्य झोपड़ी से निकाल कर राष्ट्रपति भवन तक पहुंचाने का कार्य यदि किसी ने किया तो वो हैं आचार्य विद्यानंद मुनिराज ।

प्राकृत भाषा के संरक्षण और संवर्धन में उनकी प्रेरणा से संपन्न कुछ अद्वितीय कार्यों का यहां बिंदुवार विवरण प्रस्तुत है -

१. प्राकृत भवन की  स्थापना ९ जुलाई १९७९ को कुंदकुंद भारती ,नई दिल्ली में की जिसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री राजीव गांधी जी ने किया ।

२. १६ अक्टूबर १९८८ को दिल्ली के फिक्की सभागार में तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा जी के मुख्य आतिथ्य में आचार्य कुंदकुंद द्विसहस्राब्दी समारोह का उद्घाटन जिसके बाद वर्ष भर अनेकों प्राकृत संगोष्ठियों का आयोजन ।

३. १९८९ से शोध पत्रिका ' प्राकृत विद्या ' का अभूतपूर्व प्रकाशन जो प्राकृत भाषा को समर्पित अद्वितीय रिसर्च जनरल कहलाया ।

४. १९९५ से श्रुत पंचमी पर्व को प्राकृत भाषा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा ।

५. प्रथम बार प्राकृत कवि सम्मेलन की शुरुआत ।

६. सन् २००० में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा *प्राकृत जैन विद्या* विषय हटाने पर एक विद्यार्थी अनेकांत जैन के अनुरोध पर प्राकृत भाषा को स्वतंत्र रूप से यूजीसी की नेट परीक्षा में सम्मिलित करवाना जो आज तक जारी है ।

७. २२ अप्रैल १९९५ को अखिल भारतीय शौरसेनी प्राकृत संसद की स्थापना ।

८. श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ,नई दिल्ली में १९९५ से आचार्य कुंदकुंद स्मृति व्याख्यान माला की स्थापना ।

९.श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ,नई दिल्ली में १९९८-९९ से स्वतंत्र प्राकृत भाषा विभाग की स्थापना ।

१०. प्राकृत भाषा में योगदान हेतु आचार्य कुंदकुंद प्राकृत पुरस्कार की स्थापना जिसमें एक लाख की पुरस्कार राशि से विद्वानों  को पुरस्कृत किया जाता है ।

११. प्राकृत भाषा में उत्कृष्ट योगदान हेतु वरिष्ठ तथा युवा राष्ट्रपति पुरस्कार की स्थापना ।दिल्ली सरकार में प्राकृत अकादमी की स्थापना हेतु प्रयत्न ।

१२. प्राकृत भाषा के प्रथम अख़बार *पागद- भासा* प्रारंभ करने हेतु २०१४ में डॉ अनेकांत कुमार जैन को आशीर्वाद एवं प्रेरणा ।

१३. अनेक प्राकृत भाषा की पांडुलिपियों का प्रकाशन एवं शोधकार्य ।

इसके अलावा भी सैकड़ों कार्य उन्होंने प्राकृत भाषा के संरक्षण के लिए किए हैं जिनका उल्लेख कम शब्दों में कर पाना संभव नहीं है ।

आज प्राकृत भाषा के उन्नयन में उन्होंने जो अभूतपूर्व कार्य किया हम सभी का दायित्व है कि उनके कार्य को आगे बढ़ाएं और कुछ नया करें  । कुछ नया न कर सकें तो इतना तो करें कि उनके द्वारा प्रारंभ किए गए कार्य चलते रहें बंद न हों ।

यही उनके प्रति हमारी गुरु दक्षिणा होगी ।

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