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तीर्थ क्षेत्र पर सुविधा : जरूरत या विलास ?

वर्तमान में यदि सुविधाएं न हों तो आने वाली पीढ़ी तीर्थ जाएगी ही नहीं ,हमें घटती शक्ति और भक्ति दोनों में  संतुलन की दृष्टि से देखना चाहिए ।  यदि आप सुविधाएं नहीं देंगे तो दूसरे तो असुविधा में भी तीर्थ जाएंगे और कब्जा करेंगे ।  सुविधावादी जैन जाएंगे ही  नहीं, असुविधाओं के कारण जाने वाले जैनों की संख्या आप चाह कर भी नहीं बढ़ा सकते ।  अगर आप रोप वे का विरोध करते हैं , एयरपोर्ट का विरोध करते हैं तो ठीक है ,फिर आने वाले समय में जैन नहीं सिर्फ अजैन ज्यादा जाएंगे ।  आज यदि राजधानी ट्रैन का ठहराव हुआ है तो जैन की यात्रा यात्री और आवृत्ति संख्या में ही बढ़ोत्तरी हुई है । वक्त के अनुसार विकास और सुविधा भी बहुत आवश्यक है ।  कभी कभी अति आदर्शवाद स्वयं अपने लिए ही घातक बन जाता है ।  विचारना प्रोफ अनेकांत जैन  28/03/24 नए जैन तीर्थों की दुर्दशा  https://youtu.be/hoPvz_gvKr4?si=dvNTJNxmCuglCGyn

मेरा क्षयोपशम ज्यादा नहीं है

प्रिय संजय  जय जिनेन्द्र  तुमने बहुत आत्मीयता से मुझे शेयर आदि के बारे में समझाया है । मैं आर्थिक रूप से सुदृढ़ बन सकूं ,यही तुम्हारी शुभकामना है ।  किन्तु मैं क्या करूँ ? मैंने अपनी समस्त गतिविधियों को जिनवाणी में ही सीमित कर लिया है । मेरा क्षयोपशम ज्यादा नहीं है और ज्यादा तेज तर्रार स्वभाव भी नहीं है । अपने अल्प क्षयोपशम को और सीमित शक्ति को मात्र विद्या तक सीमित करके जो कुछ कर पा रहा हूँ ,वह कर रहा हूँ ।  कॅरोना काल के बाद से मेरे जीवन के उद्देश्य बदल गए हैं । अपना काम चलाने को पर्याप्त संसाधन भी हैं । शेयर आदि में कमाई तो होती है लेकिन मन बहुत अस्थिर होता है और उपयोग भी भ्रमित होता है ।  अब जो है सो है ...इसे व्यापारी बुद्धि के लोग अकर्मण्यता भी कह सकते हैं । कहते हैं तो कहें ।  संभवतः मेरे भाग्य में इतना ज्यादा धन नहीं है जिससे मैं भ्रमित हो सकूं ।  अतः क्षमा प्रार्थी हूँ ,कभी आवश्यकता हुई तो तुम्हारी सलाह पर विचार करूँगा ।  शेष शुभ । तुम्हारा  अनेकांत 27/03/24

सूक्ति संचय

लोगों ने समझाया,कि वक्त बदलता है! और वक्त ने समझाया,कि लोग भी बदलते हैं। अक्सर जिन्दगी के रिश्ते इसलिए सुलझ नहीं पाते हैं क्योंकि लोग गैरो की बातों में  आकर आपनो से उलझ जाते हैं क्रोध आने पर "चिल्लाने" के लिए ताकत नहीं चाहिए मगर क्रोध आने पर "चुप" रहने के लिए बहुत ताकत चाहिए ज़िंदगी की रेस में जो लोग आपको ‘दौड़ कर’ नहीं हरा पाते... वही लोग आपको ‘तोड़ कर’ हराने की कोशिश करते हैं...! समय और जीवन दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शिक्षक हैं,    जीवन समय का सदुपयोग सिखाता है,              और समय जीवन की कीमत सिखाता है                                                                   दूसरों की मदद करने का समय किसी के पास नहीं है,                                                    पर दूसरे के काम में अड़ंगे डालने का समय सबके पास है *वो इक नज़र में जाएज़ा ले लेते हैं मेरा* *जिन को समझने में मुझे इक उम्र कम लगे*

जैन विद्या अनुसंधान की दिशाएं और संभावनाएं

जैन विद्या अनुसंधान की दिशाएं और संभावनाएं  प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली प्रायः अनेक शोधार्थियों द्वारा जैन विद्या के क्षेत्र में अनुसंधान पीएचडी आदि हेतु विषय की तलाश बनी रहती है । सही मार्गदर्शन के अभाव में या तो वे यह क्षेत्र ही छोड़ देते हैं या फिर ऐसे विषयों का चुनाव कर लेते हैं जिन पर पूर्व में अनुसंधान कार्य हो चुके हैं । यहाँ इस विषय पर कुछ विचार प्रस्तुत किये जा रहे है जिसके आधार पर विद्यार्थी लाभ उठा सकते हैं । जैन विद्या के क्षेत्र में नवीन अनुसंधान करने को उत्सुक शोधार्थियों के लिए निम्नलिखित बिंदु विचारणीय हैं -  1.  जैनाचार्यों द्वारा रचित प्राचीन पांडुलिपियों की खोज कर के उसका संपादन और अनुवाद  2. प्रकाशित प्राचीन जैन  साहित्य पर,जिसपर अभी तक कोई शोधकार्य न हुआ हो ,उसे केंद्रित करके साहित्य आधारित शोधकार्य । 3.दार्शनिक समस्याओं पर आधारित विषयगत अनुसंधान । इसके हज़ारों  विषय हो सकते हैं । सबसे पहले समस्याओं का सूत्रीकरण और फिर उस पर प्रामाणिक विमर्श हो सकता है । 4. जैन सिद्धांतों पर आधारित आधुनिक विज्ञान से तुलनात्मक अनुसंधान ।इसमें बहुत विभाग हैं फिर भी मु

तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विश्वविद्यालय Teerthanker Rishabhdeva Jain University

                      तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विश्वविद्यालय : एक परिकल्पना   प्रो० अनेकान्त कुमार जैन , नई दिल्ली s/o प्रो फूलचंद जैन प्रेमी 18फरवरी 2024 को जन जन की आस्था के सागर पूज्य आचार्य विद्यासागर महाराज समाधिस्थ हो गए | इसे एक महान संयोग ही समझा जायेगा कि ठीक दो वर्ष पूर्व 18 फरवरी 2022 को सांध्य महालक्ष्मी अखबार ने कुण्डलपुर महामहोत्सव के अवसर पर वहां एक जैन विश्वविद्यालय की स्थापना के मेरे प्रस्ताव को प्रकाशित किया था |मगर उस समय किसी ने इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया | इसके पूर्व जैन विश्वविद्यालय की एक परिकल्पना मैंने 2004 में लिखी थी जिसको जिनभाषित सहित 2005 में श्री स्याद्वाद महाविद्यालय,वाराणसी की शताब्दी महोत्सव की स्मारिका में भी प्रकाशित किया था | जैन विश्वविद्यालय एक बहु प्रतीक्षित पुरानी अवधारणा है - पूज्य वर्णीजी की " मेरी जीवन गाथा " पुस्तक के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि उन्होंने जबलपुर में एक जैन विश्वविद्यालय की स्थापना की भी परिकल्पना की थी और इस दिशा में कुछ प्रयास भी किये थे।बैरिस्टर चम्पत राय जी ने भी एक जैन विश्वविद्यालय की परिकल्पना प्रस्त