प्रश्न पूछा गया है कि जैन लड़कियां जैन लड़कों से विवाह क्यों नहीं कर रहीं ? या क्यों नहीं करना चाह रहीं हैं ?
अपने अनुभव के आधार पर
मैं इस प्रश्न की एक समुचित समीक्षा करना चाहता हूँ ।
अव्वल तो यह कि इस प्रश्न में मैं लड़कियां शब्द के पहले ' कुछ ' जोड़ना चाहता हूं । क्यों कि सभी जैन लड़कियाँ ऐसी नहीं हैं ।
दूसरा उस 'कुछ' में जो आती हैं उनकी मनोदशा की बात भी सोचनी चाहिए । मुझे एक जैन लड़के ने बताया कि जब वह इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ता था तो उसके बैच में और होस्टल में वह अकेला जैन था । पढ़ने में होशियार और सुंदर स्मार्ट भी था । संगीत और स्पोर्ट्स में उसकी खासी उपलब्धियां थीं ।
अच्छे संस्कारी जैन परिवार का होने से वह हॉस्टल से
जैन मंदिर बहुत दूर होने के बाद भी रोज न सही वह हर रविवार दर्शन हेतु वहाँ जाता था । दशलक्षण - पर्युषण में तो रोज जाता था । शुद्ध शाकाहारी भोजन करता था और शराब-
सिगरेट से वह दूर रहता था।
उसकी इस दृढ़ता के कारण उसके सहपाठी उससे अंदर से तो प्रभावित थे ,किंतु अपनी इस हीन भावना की पूर्ति के लिए वे उसका मज़ाक भी बनाते रहते थे और उसे साधु महात्मा और पिछड़ा भी घोषित करते रहते थे ।
किंतु
उसके इस सदाचरण के कारण कॉलेज की कुछ लड़कियां उससे खासी प्रभावित थीं और उसके साथ रहना ,मिलना बैठना ,पढ़ना पसंद करती थीं ।
उसने बताया कि उसके कॉलेज में एक दो खूबसूरत जैन जूनियर लड़कियां भी पढ़ती थीं । किंतु वे उससे बात भी नहीं करती थीं । यद्यपि साधर्मी वात्सल्य के कारण वह उनकी मदद आदि भी करना चाहता था लेकिन वे उसे सम्मान और महत्त्व न के बराबर ही देती थीं ।
बाद में उसने ध्यान देना छोड़ दिया और अपने कार्य में ही लग गया ।
उसने बताया कि कुछ समय बाद उसे पता लगा कि वे कन्याएं दर असल स्वयं व्यसनी थीं और देव दर्शन आदि से उन्हें स्वयं कोई मतलब नहीं था ,घर परिवार में धार्मिक वातावरण होने से वे उन्हें कई मामलों में झूठ बोलती थीं । उन्हें मुझसे यह भय था कि अगर मुझे उनकी पोल पता चल जाएगी तो सामाजिक संबंधों के चलते कहीं किसी तरह मेरे माध्यम से उनके घर तक ये बातें न पहुंच जाएं । इसलिए वे मुझसे दूर रहती थीं । बाद में उनमें से एक ने कॉलेज के ही एक पंजाबी और बिहारी लड़के से संबंध बनाए और घर वालों के विरुद्ध प्रेम विवाह भी किये ।
ये कहानी उल्टी भी हो सकती है । इसलिए इसमें पक्षपात जैसा कुछ न देखें ,मुद्दे पर बात करें ।
जो लड़की धार्मिक आडंबरों की आड़ में जैन मंदिर नहीं जाती थी ,विवाह बाद में वह गुरुद्वारा और छठ पूजा में भाग लेने लगी ।
जैनों की जनसंख्या में बहुत कमी आने के कारण भी लोगों में अपनी समाज में बहुत कम विकल्प मिलने से भी अजैन भा रहे हैं ।हज़ारों विद्यार्थियों में दो चार ही जैन दिखाई देते हैं ।
दूसरा तथ्य यह है कि मैं ऐसी अनेक जैन कन्यायों को जानता हूँ कि जो पढ़ी लिखी सभ्य और संस्कारी हैं और जैन परिवार में ही विवाह करना चाहती हैं किंतु उन्हें अपने अनुरूप जैन वर नहीं मिल रहे । कई वर्षों तक उचित परिवार और उचित वर न मिलने से और अधिक उम्र होने से वे जिस संस्था / कंपनी आदि में कार्य करती हैं वहाँ रात दिन साथ में कार्य करने वाला अनुकूल स्वभाव का कोई अच्छा लड़का समझ आ जाता है ,कई वर्षों से जान परखा भी है तो जीवन निर्वाह के लिये वे उसे अपना जीवन साथी बना लेती हैं ।
स्पष्ट है कि शैक्षिक और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर एक युवती सिर्फ अपने भले के लिए विवाह का निर्णय करती है न कि कुल,खानदान, समाज या धर्म के लिए ।
इसके बाद भी अन्तोगत्वा आज नहीं तो कल उसे किसी न किसी परिवार,समाज या धर्म की शरण में तो जाना ही पड़ता है,चाहे वह पति का ही क्यों न हो । तब यदि अपने अंदर की आस्था मजबूत न हो और शाकाहार आदि की दृढ़ता न हो तो जो वहाँ चलता है धीरे धीरे वह ही स्वीकार हो जाता है ।
अरेंज मैरिज में विधर्मी विवाह का प्रतिशत आज भी कम है । लव मैरिज में ही प्रायः ऐसा होता है ।
तीसरी बात यह है कि
कोई जैन जीवन साथी हो और अच्छा ही हो यह जरूरी नहीं है और कोई अजैन हो और बुरा हो यह भी जरूरी नहीं है । जिसे अच्छे की तलाश है वह अच्छा और अनुकूल खोजता है - जैन या अजैन नहीं ।
चौथी बात प्रोफेशन की है । डॉक्टर को डॉक्टर चाहिए न कि जैन या जैन ।
ये सभी बातें तब की हैं जब विवाह को मात्र व्यक्तिगत भोग समझा जाता है ।
वास्तविकता यह है कि
विवाह सिर्फ अपने लिए नहीं किया जाता ।आपको सिर्फ एक पत्नी नहीं चाहिए । मां बाप को एक बहू भी चाहिए । किसी को भाभी चाहिए,किसी को चाची,किसी को ताई,किसी को कुल की रोशनी चाहिए ,किसी को परिवार । किसी को धर्म वृद्धि ।
ये दो कुल ,खानदान और परिवार के रिश्तों की भी शुरुआत होती है । जो इतना सोचता है वह उसी हिसाब से जीवनसाथी का चयन करता है । जो इतना नहीं सोचता वह कुछ भी करता है ।
समाधान :
अब जो परिस्थितियां हैं तो हैं ,आगे और भी खराब परिस्थितियां होने वाली हैं - इसके लिए तैयार रहिए ।
हां ,कुछ सामाजिक सोच में बदलाव करके हम कुछ हद तक समाधान कर सकते हैं ।
अब समय आ गया है कि जाति उपजाति आदि के आग्रह से भी मुक्त हुआ जाय । जैन जैन से विवाह कर रहा है तो इसे सौभाग्य समझिए ,इसमें जाति उपजाति आदि का ज्यादा आग्रह रखेंगे तो विकल्प और भी कम होंगे ।
जैनों के आपस में मिलने के भी अवसर बहुत कम हैं ,जो हैं युवा उसमें जाना पसंद नहीं करते ।
जैसे हम समाज में कोई भी कार्यक्रम करते हैं तो उसमें धार्मिकता की प्रधानता होती है ,बुजुर्गों का ही ज्यादा जमावड़ा होता है । धार्मिक माहौल में कोई लड़का किसी लड़की से परिचय करना चाहे - तो इस पर प्रतिबंध है ,पाप समझा जाता है । अब कोई जैन किसी जैन से कैसे परिचय करेगा ?
जब जीवन साथी खुद ही खोजने का प्रचलन है तो , जैन युवक युवतियों के फ़्रेंड्स क्लब बनने दीजिये । उन्हें एक साथ मिलकर चर्चाएं करने के अवसर प्रदान कीजिये ।
उस क्लब में सभी प्रोफेशनल जैन लड़के लड़कियां सदस्य हों । महानगरों में जो जैन युवा जॉब के लिए भटकते हैं इस क्लब के सदस्य उनकी योग्यता के अनुसार उन्हें जॉब दिलाने में मदद करें । जैन बच्चों को लगे कि इस क्लब में जुड़ने से हमें मदद और सुरक्षा मिलती है । मीटिंग में चार करियर कॉउंसलिंग , मैनजमेंट,व्यक्तित्त्व विकास के सेशन रखें तो उसी में एक व्याख्यान जैन संस्कृति,धर्म और परिवार के महत्त्व पर भी रखें ।
जैन युवक युवती आपस में मिलेंगे तो एक दूसरे को पहचानेंगे । अपने अनुकूल जीवन साथी भी खोज लेंगे ।
परिवार,समाज और धर्म परंपरा का रक्षण भी होगा ।मगर इतना उदार बनना होगा ।
प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली
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