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कैसे बचेगा पारंपरिक शास्त्रीय शिक्षण का अस्तित्त्व ?

*कैसे बचेगा पारंपरिक शास्त्रीय शिक्षण का अस्तित्त्व ?* प्रो अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली  समयसार ,रत्नकरंड श्रावकाचार ,द्रव्यसंग्रह ,तत्त्वार्थसूत्र,आचारांग,उत्तराध्ययन और कल्पसूत्र - ये ग्रंथ तो मंदिरों ,स्थानकों ,शिविरों में भी पढ़े और पढ़ाये जाते हैं । आधुनिक रीति से MA जैन विद्या में भी यत्किंचित इनका या इनके विषयों का अध्ययन अध्यापन हो जाता है । लेकिन प्रवचनसार, आप्तमीमांसा,प्रमेयरत्नमाला,न्यायदीपिका,परीक्षामुखसूत्र , प्रमाणमीमांसा,प्रमेयकमल मार्त्तण्ड,स्याद्वाद मंजरी,षड्दर्शनसमुच्चय, अष्टसहस्त्री जैसे ग्रंथ मूल रूप से शास्त्री और आचार्य की कक्षाओं में संस्कृत और प्राकृत भाषा की रीति से पढ़े और पढ़ाये जाते हैं ।  इनके बिना विद्यार्थी प्रवचनकार,विधानाचार्य,प्रतिष्ठाचार्य आदि तो बन सकता है लेकिन जैन दर्शन का अधीत अधिकारी विद्वान् दार्शनिक मनीषी  नहीं बन सकता - यह एक यथार्थ तथ्य है ।  परंपरागत संस्कृत शिक्षा में रुचिवंत विद्यार्थियों की निरंतर कमी के कारण अध्यापकों और विद्यार्थियों के अभ्यास की कमी के चलते  अष्टसहस्री,प्रमेयकमल मार्त्तण्ड,तत्त्वार्थश्ल...