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प्रिय सुनय

प्रिय सुनय 

आज तुम्हारा जन्मदिन है । बहुत बहुत आशीर्वाद और बधाई । 

आज तुम पूरे 20 वर्ष के हो गए हो । आज से ठीक बीस वर्ष पहले 2005 को प्रातः लगभग 5:30 पर तुम्हारे जन्म की शुभ सूचना तुम्हारे मामा जी ने मुझे फोन पर दी थी । मुझे याद है वो दिन । उस दिन एक नए पिता का ,एक माता का , एक दादा जी का ,एक दादी जी का ,एक नाना- नानी जी का ,एक चाचा जी का ,एक बुआ जी -फूफा जी का , एक मामा- मामी जी का ,एक मौसा-मौसी जी का जन्म भी हुआ था । 

तुम्हारे होने से सगे रिश्तों की बगिया भी उत्पन्न हुई थी । तुम्हारा यह बहुत बड़ा भाग्य था कि तुम्हें एक एक ही सही मगर सगे बुआ, चाचा,मामा,मौसी मिल गए । चचेरे और ममेरे रिश्ते तो बहुत ज्यादा मिल गए । 
रिश्तों से समृद्ध एक जैन परिवार ,जैन कुल में जन्म लेकर तुमने जन्म से ही यह सिद्ध कर दिया कि तुम पूर्व जन्म में कोई बहुत बड़े पुण्यात्मा थे । 

मनुष्य जन्म मिलना और फिर तीर्थंकरों के महान् देश भारत में जन्म मिलना  और फिर जैन कुल मिलना उत्तरोत्तर महा महा दुर्लभ होता है और तुम्हारे महान् भाग्य से ये तुम्हें प्राप्त हो गया है । 

सोचो ! यदि तुम्हें मानव जन्म मिल भी गया होता और भारत में नहीं होता तो क्या होता ? दुनिया के तमाम देश और उनके नागरिक जन्म से ही मांसाहार को अपना भोजन समझते हैं और पूरा जीवन विभिन्न पाप कार्यों में व्यतीत कर डालते हैं उन्हें सही गलत जैसा कुछ भेद ही पता नहीं होता है । वे जीवन जीते हैं ,भोग भोगते हैं और मर जाते हैं । खुद से,आत्मा से और धर्म से बेखबर । 

अरे ! यही दशा तो भारत में भी जन्म लेने वाले अन्यान्य लोगों की है । लेकिन यहाँ एक बात तो है ,वास्तविक स्वरूप और सही मार्ग का भले ही पता न हो किंतु आत्मा ,धर्म और अध्यात्म को जानते अधिकांश लोग हैं । समझे भले न पर मुक्ति,मोक्ष का नाम तो कम से कम लेते हैं । माने भले न पर शाकाहार के बारे में तो जानते ही हैं और एक बड़ा वर्ग इसका अनुसरण भी करता है । 

भारत जैसे महान् आध्यात्मिक देश में जन्म लेने के बाद भी लोग धर्म और अध्यात्म के नाम पर मिथ्यात्व से ग्रसित हो जाते हैं । मिथ्या पाखंडों में ही धर्म मानने लगते हैं । अधिकांश ऐसा ही है ।

लेकिन तुमने महान् भाग्य से उस जैन कुल में जन्म लिया हैं जहाँ मिथ्यात्व का नाम और निशान भी नहीं है । जो मात्र वस्तु स्वभाव का वास्तविक स्वरूप समझाता है  और निःस्वार्थ भाव से सिर्फ तुम्हें तुम्हारे कल्याण का मार्ग बतलाता है । 

उसमें भी तुम्हें जो सगे संबंधी प्राप्त हुए वे जिन धर्म दर्शन के विशेषज्ञ और धर्मात्मा हैं - ये तो गज़ब ही हो गया । 

जन्म से ही तुमने जैन आचार्यों का सान्निध्य मिला है । तुमने गर्भावस्था में ही आचार्य विद्यानंद मुनिराज के मुखारवृन्द से पूरा रत्नकरंड श्रावकाचार जैसा ग्रंथ सुना है । अनेक मुनिराजों और आर्यिका माता जी के दर्शन किये हैं । अनेक तीर्थ यात्राएं की हैं । अनेक बड़े विद्वानों का सान्निध्य और आशीर्वाद प्राप्त किया है ।

कभी अपने सौभाग्य पर विचार करोगे तो तुम्हें लगेगा का जो तुमने वैभव प्राप्त किया है वो किसी चक्रवर्ती से कम नहीं है । 

हमेशा इसी आत्म वैभव के साथ जीना और जितना हो सके अपने जीवन का उपयोग निज पर के कल्याण में करना - यही मेरा आशीर्वाद है । 
 
दुनिया को कितना भी जान लो - कभी पूरा नहीं जान पाओगे । जितना जानने की कोशिश करोगे वो उतना ही उलझेगी । संसार का ज्ञान ज्यादा से ज्यादा इस संसार को ही बढ़ाता है । आंखें बंद होने के बाद किसी काम का नहीं । इसलिए अपने ज्ञान की सीमित शक्ति को व्यर्थ की चीजें जानने से बचाना और उसका उपयोग सार्थक चीजों को जानने में करना और खुद की शुद्धात्मा को जानने की मुख्य कोशिश हमेशा करते रहना । क्यों कि यह कोशिश तुम्हें तुम्हारे वास्तविक स्वरूप से मिलवायेगी जहाँ तुम अनंत सुखी हो सकते हो ।

अभी 20 वर्ष दुनिया को जानने में लगाये हैं शेष जीवन खुद को जानने में लगाओ - यही मेरी शुभकामनाएं हैं ।

तुम्हारे पिताजी

अनेकान्त कुमार जैन
7/2/2025
प्रातः 5:35

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