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जैन स्तोत्र साहित्य अनुशीलन संगोष्ठी : एक झलक


जैन स्तोत्र साहित्य अनुशीलन संगोष्ठी : एक झलक 

●पूज्य निर्यापक श्रमण मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी मुनिराज के ससंघ सान्निध्य में अभिनंदनोदय तीर्थ ,क्षेत्रपाल जी ,ललितपुर (उ.प्र.) में श्री अखिल भारत वर्षीय दिगंबर जैन विद्वतपरिषद के तत्त्वावधान में दिनांक 11 से 13 नवंबर 2022 तक जैन स्तोत्र साहित्य अनुशीलन विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ । 

● संगोष्ठी में तीनों दिन विद्वानों ने प्रातः 6 बजे से रात्रि 10 बजे तक जिनेन्द्र पूजन अभिषेक , प्रातःकालीन तकनीकी सत्र, दोपहर तकनीकी सत्र,शंका समाधान कार्यक्रम ,रात्रि तकनीकी सत्र में लगातार भाग लिया ।  सुबह से रात तक जैन स्तोत्र साहित्य ही चर्चा का विषय बना रहा । 

● पूज्य मुनि श्री ने सभी सत्रों में अपना सान्निध्य प्रदान किया तथा आवश्यकतानुसार  मध्य में एवं अंत में अपने अनुसन्धानयुक्त समीक्षात्मक उद्बोधनों से सभी विद्वानों का मार्ग प्रशस्त किया । 
● विशेषता यह रही कि शोध पत्रों की संख्या अधिक थी फिर भी लगभग 10 मिनट सभी को प्रस्तुति हेतु दिए गए और उसके बाद उस शोध लेख पर चर्चा का पूरा अवसर दिया गया । 

● स्तोत्र साहित्य में वर्णित विषय को लेकर काफी उहा पोह हुआ । यह भी बात आई कि स्तोत्र को सत्य सिद्धांत के साथ ही सभ्यता और साहित्य की दृष्टि से भी देखना चाहिये तभी उसका सही अभिप्राय समझा जा सकता है और सही मूल्यांकन किया जा सकता है । 

● भक्ति और स्तोत्र साहित्य की मूल विशेषता यह है कि उसकी भाषा प्रायः कर्तृत्त्व की ही होती है किंतु मान्यता में कर्तृत्त्व बुद्धि नहीं होती है । यही कारण है कि वे आचार्य जो अन्य ग्रंथों में अकर्तृत्त्व के सिद्धांत समझाते हैं , वे ही आचार्य स्तुति करते समय कर्तृत्त्व की भाषा प्रयोग करने लगते हैं। 

● जैन स्तोत्र साहित्य की एक सबसे बड़ी विशेषता यह भी है कि यहां तीर्थंकर एवं सिद्धों की स्तुति के समय गूढ़ दार्शनिक तत्त्वों का भी प्रतिपादन किया गया है । 

● जैन स्तोत्र के सभी भाषाओं में प्रकाशित और अप्रकाशित साहित्य की यदि सूची मात्र भी बनाई जाए तो उसकी संख्या हज़ारों में जा सकती है । 

● संगोष्ठी में वरिष्ठ विद्वानों का सान्निध्य,उनके ज्ञान और अनुभव का लाभ तो मिला ही ,साथ ही अनेक युवा प्रतिभाओं से भी परिचय हुआ । 

● विशिष्ट योगदान के लिए जिन चार विद्वानों को विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया उनमें एक वरिष्ठ विदुषी एवं तीन युवा मनीषी सम्मिलित थे । 

● विद्वतपरिषद का महत्त्वपूर्ण अधिवेशन एवं चुनाव भी सम्पन्न हुआ जिसमें अत्यंत गरिमापूर्ण एवं सौहार्द पूर्ण वातावरण में सर्वसम्मति से प्रमुख रूप से प्रो अशोक कुमार जैन,वाराणसी को अध्यक्ष ,डॉ सुरेंद्र जैन भारती ,बुरहानपुर को उपाध्यक्ष तथा प्रो विजय कुमार जैन ,लखनऊ को महामंत्री चुना गया । 

● संगोष्ठी के मुख्य संयोजक डॉ सुरेंद्र भारती जी तथा अन्य सह संयोजकों ने परिश्रम पूर्वक गोष्ठी को सुव्यवस्थित रूप से संचालित किया एवं आयोजक एवं प्रायोजक स्थानीय कमेटी ने सुंदर एवं सुविधाजनक आवास और भोजन द्वारा सभी का भरपूर आतिथ्य और स्वागत सम्मान किया । 

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