अनेकांत कुमार जैन जी की एक प्राकृत कविता के संस्कृत अनुवाद का प्रयास मातृदिवस पर नैव कल्याणमेवास्ति, जीवश्वासश्च यां विना | या च लोकत्रयाचार्या, तस्यै मात्रे नमो नमः || *णमो माआअ* ............. *जेण विणा जीवणस्स ,सासो वि कल्लाणो वि खलु ण हवइ।* *तस्स भुवणेक्कं गुरु,पढमो णमो णमो माआअ ।।* भावार्थ - जिसके बिना जीवन का श्वास भी नहीं चलता और निश्चित रूप से जीवन का कल्याण भी नहीं होता ,उस तीनों लोकों में पहली शिक्षिका , मां ( माता) को नमन है नमन है । कौशल तिवारी